कोरोना आपदा में ढाल बन गई फेफड़ों की ताकत

कोरोना महामारी के दौरान सर्वाधिक मौतें फेफड़ों में संक्रमण होने के कारण हुई है

By JagranEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 07:10 AM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 07:10 AM (IST)
कोरोना आपदा में ढाल बन गई फेफड़ों की ताकत
कोरोना आपदा में ढाल बन गई फेफड़ों की ताकत

मेरठ,जेएनएन। कोरोना महामारी के दौरान सर्वाधिक मौतें फेफड़ों में संक्रमण होने के कारण हुई हैं। विशेषज्ञों के अनुसार फेफड़े तक वायरस के पहुंचते ही आक्सीजन का लेवल घटने लगता है और मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है। दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने श्वास संबंधी योग और अभ्यास को जारी रखते हुए अपने फेफड़ों को मजबूत रखा। ऐसे लोगों को कोरोना छू भी नहीं पाया, यदि किसी को हुआ भी तो उसकी हालत गंभीर नहीं हुई। ऐसे लोगों में संगीत साधकों के साथ ही शहनाई, ब्रास और बेस वादक भी शामिल हैं।

गंगानगर स्थित मिलन बैंड के संचालक मोहम्मद साजिद की बैंड टीम में 15 कलाकार हैं। इनमें से आठ कलाकार शहनाई और ब्रास जैसे वाद्य यंत्र बजाते हैं। कोरोना काल में, जबकि इनके पास बहुत कम काम था तब भी इन सबका नियमित रियाज जारी था। साजिद बताते हैं कि हम लोग घटों रियाज करते हैं। यही वजह है कि बीते एक साल के कोरोना काल में न तो कभी गला खराब हुआ और न ही किसी साथी को कोई बीमारी ही हुई। सामान्य खानपान के बावजूद कोरोना संक्रमण इस टीम के सदस्यों को छू भी नहीं सका। साजिद बताते हैं कि ड्रम बजाने वाले साथियों में भी फेफड़ों की जोरदार वíजश होती है क्योंकि लगातार ड्रम बजाने से सास तेज गति से आती-जाती है। यही वजह है कि टीम के सभी सदस्य कोरोना से सुरक्षित रहे।

पुरानी मोहनपुरी स्थित अजंता बैंड के संचालक हैं रोहताश वर्मा। उनकी बैंड टीम में 18 लोग हैं। इनमें नौ कलाकार ऐसे हैं जो अपना साज मुंह से बजाते हैं और जिसके लिए फेफड़ों का दम और सासों की लयबद्धता महत्वपूर्ण है। रोहताश बताते हैं कि उन सभी को आज तक फेफड़ों से संबंधित कोई बीमारी नहीं हुई और नियमित दिनचर्या के बीच कोरोना काल में भी उन्हें कुछ नहीं हुआ।

मोहनपुरी स्थित मिलन बैंड लाइट में ब्रास बजाने वाले 40 वर्षीय आस मोहम्मद कोरोना काल में काम न होने के बावजूद विभिन्न गानों की धुन बजाकर नियमित घटों रियाज करते हैं। इसी टीम के 60 वर्षीय कलवा पिछले 20 वर्षो से शादियों में ब्रास बजा रहे हैं, कोरोना काल में भी उनका रियाज नियमित जारी रहा। इसी टीम के 20 वर्षीय राहुल की अभी ट्रेनिंग चल रही है, इसलिए वह सुबह-शाम दोनों ही समय शहनाई की धुन में खोए रहते हैं और घटों रियाज करते हैं। आस मोहम्मद, कलवा और राहुल वह साज बजाते हैं जिसका सास और फेफड़ों से सीधा संबंध है। इस बैंड पार्टी में भी किसी सदस्य को कोरोना नहीं हुआ, और न ही इन्हें सास संबंधी किसी परेशानी का सामना करना पड़ा। इन्होंने कहा-

कोरोना वायरस का हमला फेफड़ों पर होता है। यही वजह है कि बार-बार फेफड़ों को मजबूत करने की सलाह दी जाती है। श्वास संबंधी योग और क्रियाओं से फेफड़े मजबूत होते हैं। मजबूत फेफड़ों को कोरोना अगर संक्रमित भी कर दे तो भी वह मरीज को गंभीर नुकसान नहीं पहुंचा सकता। शहनाई या ब्रास बैंड आदि वाद्य यंत्र पूरी तरह सासों पर ही निर्भर होते हैं। इनका प्रयोग करने वालों का फेफड़ा आम लोगों की तुलना में ज्यादा मजबूत होता है। शंख की ही बात करें तो इसे फूंकने से पीछे तक के एल्युलायी खुल जाते हैं। सांस रोकने से इन छोटी-छोटी एल्युलायी तक आक्सीजन धीरे-धीरे पहुंचती है। ठीक उसी तरह जिस तरह सी-पैप मशीन काम करती है। अगर सांस की वर्जिश नहीं करेंगे तो यही बंद हो जाएंगी, जिससे फेफड़े कमजोर हो जाएंगे, क्षमता घट जाएगी।

- डा. वीरोत्तम तोमर, वरिष्ठ छाती एवं श्वास रोग विशेषज्ञ

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