दुश्मन को ललकारते हुए राजपूतों ने ढहाया इस्लामगढ़

वर्ष 1971 के युद्ध में एक ओर जहां पूरब में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के गुरूर को तोड़ा वहीं पश्चिम में राजपूताना राइफल्स के लड़ाकों ने दुश्मन किले को ध्वस्त कर दिया था।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 13 Dec 2019 04:00 AM (IST) Updated:Fri, 13 Dec 2019 06:04 AM (IST)
दुश्मन को ललकारते हुए राजपूतों ने ढहाया इस्लामगढ़
दुश्मन को ललकारते हुए राजपूतों ने ढहाया इस्लामगढ़

जागरण संवादाता, मेरठ : वर्ष 1971 के युद्ध में एक ओर जहां पूरब में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के गुरूर को तोड़ा वहीं पश्चिम में राजपूताना राइफल्स के लड़ाकों ने दुश्मन किले को ध्वस्त कर दिया था। हवाई हमले के बाद हुए पाकिस्तानी सेना के हमलों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए सेना ने हर मोर्चे पर दुश्मन को पस्त किया। लोंगेवाला में हुए विश्व प्रसिद्ध टैंक बैटल से महज 30 किलोमीटर दूर थार डेजर्ट के इस्मालगढ़ में भारतीय सेना के राजपूत सूरवीरों ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटा कर देश के माथे पर लगाए गए विजय तिलक में अपना नाम भी स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा दिया था।

ध्वस्त किया दुश्मन का किला

राजपूताना राइफल्स के लड़ाकों ने बेहद सुरक्षित इस्लामगढ़ किले को बिना किसी आर्टीलरी व टैंक की मदद से जीत कर युद्ध के इतिहास में एक और बड़ी उपलब्धि अपने नाम दर्ज कर दी थी। वीर राजपूतों ने चार दिसंबर की शाम साढ़े पांच आगे बढ़ना शुरू किया। उसी रात लोंगेवाला में पाकिस्तानी हमला होने के कारण डिवीजन की डिफेंसिव फोर्स उस ओर चली गई थी। कमान अधिकारी ले. कर्नल एमएमके बकाया की अगुवाई में जवान अलग-अलग दिशाओं से आगे बढ़े। सेकेंड-इन-कमांड मेजर रामचंद्र ने आर्टीलरी मदद मांगी तो पता चला कि रेंज से दूर होने के कारण हमला नहीं हो सकता। ऑटोमेटिक हथियार और आर्टीलरी के साथ दुश्मन की दो कंपनियों ने भारतीय सेना पर आगे बरसानी शुरू कर दी।

किला ढहा कर घुसे दुश्मन के घर में

आजादी के पूर्व इस किले को 'लाइन ऑफ कम्यूनिकेशन' को दुरुस्त रखने के उद्देश्य से बनाया गया था। पाकिस्तान के पंजाब में बहावलपुर स्थित इस्लामगढ़ से उत्तर में पाकिस्तान के रहिम यार खान की ओर और भारत में जैसलमेर की ओर रास्ता जाता है। पाक सेना ने इसके चारों ओर माइनफील्ड बिछाकर बेहद सुरक्षित घेरे में ले रखा था। टैंकों के भी पीछे रह जाने पर राजपूतों ने फायरिग की दिशा में ही चढ़ाई शुरू की और चौतरफा हमले में पांच दिसंबर की सुबह फोर्ट पर कब्जा कर लिया। यहां से आगे बढ़ते हुए रेजिमेंट के वीरों ने पश्चिमी पाकिस्तान में सिंद में भाई खान वाला खू पर भी कब्जा किया और पाकिस्तान की 12 हजार स्क्वायर किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया।

30 किलोमीटर जाकर किया हमला

युद्ध छिड़ते ही तीन राजपुताना राइफल्स को पांच दिसंबर सुबह तक इस्लामगढ़ को कब्जा करने का टास्क मिला। उस समय यह रेजिमेंट 12 इंफैंट्री डिवीजन के साथ राजस्थान सेक्टर के किशनगढ़ में तैनात थी। तीन दिसंबर की ही रात रेजिमेंट 30 किलोमीटर का सफर तय कर इस्लामगढ़ पहुंची और दुश्मन पर कहर बनकर टूट पड़े। यहीं से राजपूतों ने 16 दिसंबर के युद्ध विराम तक पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई।

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अमित

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