स्वाइन फ्लू से बचना है तो करें ये उपाय, समय पर कराएं इलाज
मेरठ में स्वाइन फ्लू के मरीज लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। हालांकि समय पर उपचार मिलने से यह घातक नहीं हो पाया है। इसका इलाज संभव है बस जरासी सावधानी की जरूरत है।
मेरठ, जेएनएन। स्वाइन फ्लू संक्रमण को रोकने के तमाम उपाय अब तक बेअसर रहे। शुक्रवार को मेडिकल कालेज की महिला डाक्टर समेत 12 नए मरीजों में वायरस की पुष्टि के साथ मेरठ में मरीजों की संख्या दो सौ पार पहुंच गई। स्वास्थ्य विभाग ने टेमीफ्लू टेबलेट के साथ ही मास्क भी मंगवाया है। उधर, संक्रमण से बचाव के लिए लोग आयुर्वेदिक नुस्खों को आजमा रहे हैं। जनवरी से अब तक चार मरीजों की मौत हो चुकी है।
10 और में पुष्टि
सीएमओ डा. राजकुमार ने बताया कि मेडिकल कालेज की माइक्रोबायोलोजी लैब ने शुक्रवार को 35 मरीजों में वायरस की जांच की, जिसमें 10 में बीमारी मिली। इसमें मेडिकल कालेज की पीजी हास्टल की एक छात्र भी शामिल है। जनवरी से अब तक मेरठ के मरीजों की संख्या 201 तक पहुंच गई, जबकि मेडिकल में कुल 287 मरीज पाजिटिव पाए गए हैं। स्कूलों में प्रार्थना सभा पर रोक लगाई गई है। उधर, बाजार से वैक्सीन नदारद होने से कई स्थानों पर दोगुना दाम में बेचा जा रहा है। हालांकि चिकित्सकों का कहना है कि अब वैक्सीन का कोई फायदा नहीं है। कारण, यह 21 दिन बाद शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बनाती है, और तब तक गर्मी बढ़ने से वायरस खुद ही खत्म हो जाएगा।
डरें नहीं, ठीक हो जाता है स्वाइन फ्लू
चिकित्सकों का कहना है कि स्वाइन फ्लू का वायरस शरीर में तीन से पांच दिन में खुद ही खत्म हो जाता है। अगर सर्दी, जुकाम, खांसी के साथ सांस फूलने का लक्षण उभरे को टेमीफ्लू टेबलेट एडवांस में खिलाई जा सकती है। संक्रमण के प्रथम स्टेज में यह दवा एच1एन1 वायरस को पूरी तरह खत्म कर देती है। मरीज को अलग कमरे में रखना चाहिए। टेमीफ्लू टेबलेट लेने के साथ ही मरीजों को खूब पानी पीना चाहिए। 90 फीसद मरीजों में कोई खतरा नहीं, किंतु शुगर, हार्ट, किडनी, कैंसर, टीबी के मरीज व बुजुर्ग हाई रिस्क जोन में होते हैं। वायरस फेफड़े में पहुंचने पर मरीज की जान जा सकती है। बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं में भी रिस्क होता है।
संदिग्ध मरीज भी खा सकते हैं दवा
टेमीफ्लू टेबलेट 75 मिलीग्राम, 45 एवं 30 मिलीग्राम के रूप में उपलब्ध है। चिकित्सकों का कहना है कि तेज नाक बहने, लगातार चल रही खांसी और सांस फूलने जैसे लक्षण पर दवा दे देनी चाहिए। इससे निमोनिया बनने से पहले मरीज को बचाया जा सकता है।
स्ट्रेन में हल्का चेंज बनाता है नए मरीज
एच1एन1 आठ टुकड़ों का वायरस होता है। जब ये सभी आठों आरएनए बदलते हैं तो स्ट्रेन पूरी तरह बदल जाता है। 2009 से एच1एन1 में हल्के बदलाव हो रहे हैं। माना जा रहा है कि 2009 से लोगों के बीच मौजूद एच1एन1 वायरस से 80 फीसद लोग इम्यून हो चुके हैं।
इनका कहना है
एच1एन1 वायरस में कुछ नए एमीनो एसिड जुड़ने से एंटीजेनिक डिफ्ट बनता है। इस हल्के बदलाव से ज्यादातर लोगों में हल्के बुखार, खांसी व थकान के लक्षणों के साथ उभरता और खुद ठीक हो जाता है। लैब में अब तक 287 मरीज मिल चुके हैं।
-डा. अमित गर्ग, विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलोजी विभाग, मेडिकल कालेज
सांस तेजी से फूले तो स्पष्ट है कि एच1एन1 वायरस का तेज अटैक हुआ है। छाती में जकड़न, दर्द, उल्टी, बुखार व लगातार खांसी गंभीर लक्षण हैं। शुगर, हार्ट, किडनी व कैंसर मरीज ही गंभीर स्थिति में पहुंचते हैं।
-डा. टीवीएस आर्य, प्रोफेसर, मेडिकल कालेज
ऐसे बनाएं सुरक्षा कवच हाई प्रोटीन खानपान जैसे दही, पनीर, दाल, सोयाबीन, अंडा, व मीट खाएं। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। प्राणायाम से फेफड़ों में ज्यादा आक्सीजन पहुंचने से निमोनिया का खतरा कम होगा। गिलोय, तुलसी, सोंठ का काढ़ा पिएं। यह संक्रमण से बचाएगा। छींकने वाले से दूर रहें। किसी टेबल, दरवाजे, हैंडल या ठोस वस्तु को न छुएं। एच1एन1 वायरस हवा में देर तक जिंदा रहता है। दिन में कई बार हाथ धोएं।
यह है इलाज का प्रोटोकॉल
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रलय नई दिल्ली ने मरीजों को तीन श्रेणी में रखा है। सिर्फ सी कटेगरी के मरीजों को ही जांच कराने की जरूरत है।
कटेगरी-ए
हल्का बुखार, कफ, गले में खराश, बदन दर्द, डायरिया वाले मरीजों की जांच जरूरी नहीं होगी। इन मरीजों को भीड़ में जाने के बजाय पर घर पर रखना है। इन मरीजों का 24 से 48 घंटे में फिर से जांच होगी।
कटेगरी-बी
उक्त लक्षणों के साथ तेज बुखार और गले में भारी खराश हो तो घर में ही टेमीफ्लू देना चाहिए। किंतु स्वाइन फ्लू की जांच जरूरी नहीं है। कम्युनिट एक्वायर्ड निमोनिया की गाइडलाइन के मुताबिक ब्राड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक दी जा सकती है।
कटेगरी-सी
उक्त सभी लक्षणों के साथ ही सांस फूलने, सीने में दर्द, निद्रा, रक्तचाप गिरने, खून के साथ बलगम और नाखून नीले पड़ें तो तत्काल जांच कराना चाहिए।