झरने की तरह तड़प रहा हूं, मुझको सूरज की किरणों में जलने दो

उर्वर दोआब वाले मेरठ परिक्षेत्र ने कला और साहित्य के फूल भी खिले हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 08:10 AM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 08:10 AM (IST)
झरने की तरह तड़प रहा हूं, मुझको सूरज की किरणों में जलने दो
झरने की तरह तड़प रहा हूं, मुझको सूरज की किरणों में जलने दो

मेरठ,जेएनएन। उर्वर दोआब वाले मेरठ परिक्षेत्र ने कला और साहित्य के फूल भी खिले हैं। हिदी साहित्य में अपनी अलग विधा के लिए प्रख्यात साहित्यकार शमशेर बहादुर सिंह हैं। महामारी का खौफ हो या कुछ और, लेकिन बुधवार को पुण्यतिथि पर साहित्यकारों ने उन्हें भुला दिया। वह पूर्व में मुजफ्फरनगर और वर्तमान में शामली जनपद के एलम के रहने वाले थे।

वर्तमान में जैसे हालात हैं, कमोबेश वैसी ही परिस्थितियों का शिकार शमशेर बहादुर अपने जीवन काल हुए थे। शमशेर बहादुर जब आठ वर्ष के थे, उनके सिर से मा प्रभुदेयी देवी का साया उठ गया। 24 वर्ष के थे तो उनकी पत्नी का निधन तपेदिक से हो गया। इसके बाद उन्होंने लंबा एकाकी जीवन व्यतीत किया। कवि यश मालवीय कहते हैं-साहित्यकार दूधनाथ सिंह का शमशेर बहादुर से लंबा संपर्क रहा। उन्होंने शमशेर से अपने संस्मरणों और उनकी रचनाओं की समीक्षा पर आधारित पुस्तक एक शमशेर भी है लिखी थी। यश मालवीय कहते हैं, मा और पत्नी को असमय खो देने की पीड़ा उनकी रचनाओं में महसूस होती है। उनकी लंबी कविता टूटी हुई बिखरी हुई आज के माहौल का स्पंदन महसूस किया जा सकता है।

वह पैदा हुआ है जो मेरी मत्यु संवारने वाला है।

इसी कविता दूसरा अंश है-

एक झरने की तरह तड़प रहा हूं।

मुझको सूरज की किरणों में जलने दो। खुद को वह मुजफ्फरनगरी कहते थे

'चुका भी हूं नहीं' में क्रांति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले कवि शमशेर सिंह कविता में बिंबों के माध्यम से अपनी बात कहते थे। मुजफ्फरनगर के विश्राति वशिष्ठ की पुस्तक शमशेर विमर्श पुस्तक में उन्हीं का लिखा शेर है-

जी को लगती है तेरी बात खरी है शायद,

वही शमशेर मुजफ्फरनगरी है शायद।

शमशेर बहादुर के संपर्क में आए लोग बताते हैं कि बोलचाल में अक्खड़पन और चरित्र में दृढ़ता थी। मेरठ में भी उनका कुछ समय गुजरा। उनकी बहन मेरठ में रहती थीं। कवि यश मालवीय बताते हैं कि नौचंदी मेले की एतिहासिकता से संबंध एक अध्ययन को लेकर वह मेरठ में सवा महीने रुके थे।

मोती प्रयाग निवासी प्रगति ने मेरठ कालेज से शमशेर बहादुर सिंह के साहित्य में समकालीन बोध विषय पर शोध किया है। बताती हैं कि वह मात्र प्रेम और सौंदर्य के कवि नहीं हैं। राजनीतिक स्थितियों, युद्ध शाति, गरीबी, दंगे, सामाजिक अव्यवस्था, मध्यम वर्ग की छटपटाहट को क्रांतियों में बखूबी उकेरा है। हिंदी-उर्दू और गंगा जमुनी तहजीब पर उनकी गद्य पुस्तक दोआब खासी चíचत रही है। उनकी यह कविताएं मानो वर्तमान परिस्थितियों को मुखर होकर व्यक्त करती हैं। उनकी कविताएं नेताओं और अधिकारियों की मानसिकता पर चोट करती है।

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