Story Of Emergency 1975: पुलिस ने उखाड़ दिया था पैर का नाखून, आपातकाल की घटनाओं को याद कर सिरह उठते हैं सेनानी
आपातकाल लागू होने के बाद पुलिस बर्बर हो गई थी। लोकतंत्र का गला दबाने वालों के खिलाफ जिसने भी आवाज उठाई उन्हें यातना की कोठरी में कैद कर दिया गया। पैर के नाखून उखाड़ दिए। किसी की इतनी पिटाई की गई कि सूजन से कपड़े छोटे पड़ गए।
जागरण संवाददाता, मेरठ। आपातकाल लागू होने के बाद पुलिस बर्बर हो गई थी। लोकतंत्र का गला दबाने वालों के खिलाफ जिसने भी आवाज उठाई, उन्हें यातना की कोठरी में कैद कर दिया गया। पैर के नाखून उखाड़ दिए। किसी की इतनी पिटाई की गई कि सूजन से कपड़े छोटे पड़ गए। जेल में गुजारे दिनों को याद कर सेनानी सिहर उठते हैं।
शास्त्रीनगर निवासी प्रदीप कंसल ने बताया कि मेरठ कालेज के तत्कालीन महामंत्री अरुण वशिष्ठ समेत अन्य सत्याग्रहियों के जेल जाने के बाद 29 जनवरी 1976 को मेरठ कालेज में अंतिम सत्याग्रह किया गया। इस पर तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट सतीश चंद नागर ने आक्रोशित होकर डीएसपी को लाठीचार्ज का आदेश दिया। तत्कालीन एडीएम कुलदीप सैनी ने कैंपस में छानबीन की और जिसे चाहा उसे पकड़ा। प्रदीप को पुलिस जिला कारागार ले गई, जहां 29 जनवरी 1976 से 12 फरवरी 1977 तक बंद रखा। बताते हैं कि आठ पुलिस वालों ने उन्हें थाना पुलिस लाइन में रातभर पीटा। आंख, नाक, मुंह और अंगुलियों से खून गिर रहा था। शरीर में इतनी सूजन आ गई कि कपड़े छोटे पड़ने लगे। दाएं पैर के अंगूठे का नाखून उखाड़ दिया जो आज तक नहीं पनपा। कोर्ट ले जाते समय पुलिस हथकड़ी इसलिए नहीं लगा सकी क्योंकि सूजन से यह छोटी पड़ गई थी। उन्हें पुलिस वालों ने जीप में ही बिठाकर रखा। मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया और वापस कारागार लाया गया। कंसल बताते हैं कि कारागार गेट पर जेलर पहले से स्ट्रेचर लेकर खड़ा था। उन्हें सीधे 14 नंबर बैरक में ले जाया गया। 14 दिन तन्हाई बैरक में रखा गया। कंसल ने जेल से छूटने के बाद आपातकाल में उत्पीड़न के मामलों की जांच करने वाले शाह आयोग को पत्र लिखा। बताया कि अब तक इस पर कोई कारवाई नहीं की गई, जबकि पुलिस विभाग से नियमित पत्र आते रहे हैं।
आपातकाल में हिस्सेदारी आज भी गर्व कराती है
अपातकाल के दिनों का याद करते हुए लोकतंत्र रक्षक सेनानी संघ के जिला महामंत्री सर्वेश नंदन गर्ग कहते हैं कि वो समय बहुत ही भयपूर्ण था। पर मन में दृढ़ विश्वास था कि गैर इरादतन थोपा हुआ कानून वापस होगा। इसके विरोध मे में अपने साथियों के साथ एक रणनीति के तहत सत्याग्रह करता था। 19 वर्ष की आयु में मुङो तीन महीने तक जेल की सजा दी गई, लेकिन इसे लेकर मन में कोई ग्लानि नहीं थी। बाल्यकाल से स्वयंसेवक होने की वजह से बचपन से ऐसे संस्कार थे की मातृभूमि के लिए अगर बलिदान भी होना पड़े तो कदम पीछे नहीं हटेंगे। जेल में हमको कड़ी यातनाएं दी जाती थीं। हमसे हमारे साथियों के नाम पूछे जाते थे पर हममें से किसी ने अपने साथियों के नाम नहीं बताए। भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलालजी उन दिनों मेरठ में प्रचारक थे। मेरे से भी उनके बारे में अनेकों बार पूछा गया, लेकिन उनका प्रयास विफल रहा। जब अपातकाल में अपनी हिस्सेदारी के बारे में सोचता हूं तो गर्व से छाती चौड़ी हो जाती है।