रेबीज-डे पर विशेष : यहां हर गली में रेबीज के डंक, कैसे बचोगे, जानिए करना क्या है Meerut News
गली-गली में आवारा कुत्तों और बंदरों की उछल-कूद रेबीज बढ़ा रही है। हालात ऐसे हैं कि खुद ही बचना होगा। पिछले दशक के दौरान बड़ी संख्या में मरीजों की जान जा चुकी है। प्रदेश सरकार ने एंटी-रेबीज इंजेक्शन की आपूर्ति कम कर दी है।
मेरठ, जेएनएन। Special on rabies day दुनिया की सबसे असाध्य बीमारी और मेरठ की हर गली में खतरा...लेकिन प्रशासन एक कदम तक नहीं उठा सका। जिले में आवारा कुत्तों की वजह से रेबीज का खतरा बढ़ता जा रहा है। गली-गली में आवारा कुत्तों और बंदरों की उछल-कूद रेबीज बढ़ा रही है। हालात ऐसे हैं कि खुद ही बचना होगा। पिछले दशक के दौरान बड़ी संख्या में मरीजों की जान जा चुकी है। प्रदेश सरकार ने एंटी-रेबीज इंजेक्शन की आपूर्ति कम कर दी है।
पांच हजार वायल एंटी रेबीज का इंजेक्शन
जिला अस्पताल में हर माह करीब पांच हजार वायल एंटी रेबीज का इंजेक्शन लगते हैं। 12 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी एआरवी लगाई जाती है। नगर निगम क्षेत्र में गंदगी, मीट कटान और अन्य तमाम वजहों से कुत्तों की संख्या बेतहाशा बढ़ी। कुत्तों की नसबंदी का अभियान सफल नहीं हुआ। पशु चिकित्सकों का मानना है कि पर्यावरण में बदलाव की वजह से कुत्तों में काटने की प्रवृत्ति बढ़ी है। शहर से लेकर गांव तक बंदरों की संख्या बढ़ती जा रही है।
इन क्षेत्रों के लोग चपेट में
सेंचुरी से बंदर भागकर मानव आबादी में पहुंच रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक मवाना, परीक्षितगढ़, सरधना और हस्तिनापुर के क्षेत्रों में ज्यादा लोग कुत्तों का शिकार हुए। इनकी चपेट में ज्यादातर गलियों में खेलते बच्चे आए। हस्तिनापुर वाइललाइफ सेंचुरी की वजह लोमड़ी, कुत्ते, लंगूर, बंदर, नेवले द्वारा काटने की घटनाएं भी बढ़ीं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में करीब दस हजार वायल प्रति माह की खपत है। इंजेक्शन की कमी से जिला अस्पताल प्रशासन ने पहचान पत्र देखकर इलाज करना शुरू किया।
इनसे है रेबीज का खतरा
- पालतू कुत्ते, आवारा कुत्ते, बंदर, लोमड़ी, भेडि़ए, बिल्ली, नेवला और कई बार दुधारू पशुओं के काटने पर भी रेबीज का खतरा है।
- रेबीज संक्रमण वाले कुत्ते बदहवाश रहते हैं। हर चीज पर झपटते हैं। उसे देखकर दूसरे कुत्ते भागने लगते हैं। इसे पहचानना चाहिए।
कुत्ता व बंदर काट ले तो ये करें
- कुत्ता या बंदर काट ले तो जीरो आवर यानी 24 घंटे में एक इंजेक्शन लगवाएं। टिटनेस का भी इंजेक्शन लें
- अगर कुत्ता 15 दिन तक जिंदा है तो डाक्टरों के परामर्श से इंजेक्शन लेना बंद कर सकते हैं।
- काटने के स्थान को बहते पानी में साबुन के साथ धोएं। इससे वायरस कम या खत्म हो जाएंगे
- जिला अस्पताल, या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पांच इंजेक्शन लगवाएं।
इनका कहना है
रेबीज से संक्रमित कुत्ता देखकर पहचाना जा सकता है, लेकिन आवारा कुत्तों के काटने पर भी इंजेक्शन लगवाएं। कई बार वायरस उनमें साइलेंट हो सकता है। इंजेक्शन ही एकमात्र इलाज है। जिला अस्पताल में रेबीज कक्ष और इमरजेंसी में भी इंजेक्शन लगाया जाता है। रेबीज का वायरस ब्लड में संक्रमित होकर दिमाग में पहुंचकर हाइड्रोफोबिया बना देता है। इससे मरीज की मौत तय है।
- डा. यशवीर, इमरजेंसी मेडिकल अफसर, जिला अस्पताल