Special Column: मुखिया का पारा अब चढ़ा है...कोरोना के बाद श्रीराम का पाठ Meerut News
जब से एमबीबीएस के नकलची छात्र पास हुए हैं तब से कुलपति का पारा चढ़ा हुआ है। अब इसमें किसकी लापरवाही व मिलीभगत रही है जांचने के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई गई है।
मेरठ, [विवेक राव]। जब से एमबीबीएस के नकलची छात्र पास हुए हैं, तब से चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति का पारा चढ़ा हुआ है। अब इसमें किसकी लापरवाही व मिलीभगत रही है, जांचने के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई गई है। अगले कुछ महीने में इसकी रिपोर्ट आएगी। कमेटी की रिपोर्ट में कौन दोषी होगा, पता नहीं। उससे पहले कर्मचारी कुलपति के तेवर से घबराए हुए हैं। अगला शिकार न बन जाएं, इस आशंका से फूंक- फूंककर कदम बढ़ा रहे हैं। कुलपति विश्वविद्यालय की गुणवत्ता सुधारने की कोशिश में जुटे हैं। वह इसमें सिस्टम को पलीता लगाने वाले को छोडऩे के मूड में नहीं है, लिहाजा उनके तेवर बताते हैं कि सच्चाई बाहर निकल कर आएगी। हालांकि विश्वविद्यालय में कई तरह की पुरानी जांच भी होती रही है, जिसके परिणाम का किसी को पता नहीं चला। उम्मीद है कि जांच को आंच नहीं लगेगी, सच सामने आएगा।
कोरोना के बाद श्रीराम का पाठ
वर्ष 2020 को दो वजह से याद किया जाएगा। इसमें एक वैश्विक महामारी बना कोरोना वायरस होगा, तो दूसरा शताब्दियों की प्रतीक्षा के बाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर का शिलान्यास। अब चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय इन दोनों घटनाओं को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहा है। कुछ समय पहले पर्यावरण विज्ञान के सिलेबस में कोरोना वायरस को शामिल किया गया। डिजास्टर मैनेजमेंट के प्रस्तावित कोर्स में भी वायरस के संत्रास को शामिल किया जा रहा है। अब राष्ट्र गौरव पाठ्यक्रम में श्रीराम को एक जननायक के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। छात्र अब राम के माध्यम से परिवार और प्रबंधन का पाठ पढ़ेंगे। राष्ट्र गौरव का प्रश्नपत्र स्नातक प्रथम वर्ष में छात्रों के लिए अनिवार्य है। अच्छी बात है कि ऐसे विषय को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की सोच रहे हैं। इससे युवा नैतिक मूल्यों के साथ सामाजिक दायित्व भी सीखेंगे।
सबको खबर है, सबको पता है
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय और उससे जुड़े महाविद्यालय, खासकर जो सरकार से वेतन लेते हैं, उन कॉलेजों में कुछ शिक्षकों की नींद उड़ी हुई है। अनामिका शुक्ला क्या पकड़ी गई, उसकी राह पर चलने वाले कुछ शिक्षकों की उलटी गिनती शुरू है। शिक्षकों की नियुक्तियों की जांच हो रही है। उनके शैक्षणिक प्रमाणपत्रों को भी परखा जा रहा है। मेरठ में शिक्षकों के परीक्षण में 30 से अधिक शिक्षक संदेह के घेरे में हैं। ऐसे शिक्षकों की बेचैनी बढ़ी हुई है। विश्वविद्यालय से लेकर बड़े कॉलेजों के कई बड़े नाम संदिग्ध हैं। विश्वविद्यालय में सभी शिक्षकों और कर्मचारियों का पता चल चुका कि गड़बड़ी कहां है। शिक्षकों के चेहरे की रंगत उड़ी है। अब वह चाहे जो जतन कर लें, शासन की सख्ती को देखते हुए जांच अधिकारी भी रियायत देने के मूड में नहीं हैं। देखना है इस लपेटे में आता कौन है।
एमफिल छोडि़ए, शोध की चिंता कीजिए
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एमफिल बंद करने को कहा गया है। कई विश्वविद्यालयों में यह पहले ही बंद हो चुका है। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में एमफिलकी अभी पढ़ाई चल रही है। वर्ष 2015 से कुलपति खुद एमफिल को निरर्थक मानते आए हैं। वह इसे न तो एमए समझते हैं, और न पीएचडी, फिर भी यह पाठ्यक्रम चल रहा है। विश्वविद्यालय के ज्यादातर विभागों में परास्नातक के साथ एमफिल की पढ़ाई हो रही है। इसमें कुछ विभाग ऐसे हैं जहां एमफिल में चार से पांच छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षक पूरे व्यस्त दिखते हैं। उधर, पीएचडी में सीधे प्रवेश लेने की चाहत में छात्र एमफिल में प्रवेश लेते हैं। अब जब अगले साल से एमफिल बंद करने की बात आ रही है तो कुछ शिक्षकों को इस पाठ्यक्रम की चिंता होने लगी है। शिक्षकों को अच्छे शोध की चिंता करनी चाहिए।