सफाई वाला : मेरठ में आबादी के बीच कूड़े के पहाड़ आखिर खत्‍म कैसे हो, सिर्फ बैठकों में चर्चा

मेरठ में सफाई के नाम पर नगर निगम ने करोड़ों रुपये खर्च कर दिए लेकिन सफाई शहर में नजर नहीं आती। मंगतपुरम कंकरखेड़ा मार्शल पिच अब्दुल्लापुर लोहिया नगर आदि क्षेत्र कचरे की गंदगी से बीमार हैं। कूड़े के पहाड़ों की चर्चा सिर्फ बैठकों में ही होती है।

By Prem BhattEdited By: Publish:Tue, 24 Nov 2020 01:30 PM (IST) Updated:Tue, 24 Nov 2020 01:30 PM (IST)
सफाई वाला : मेरठ में आबादी के बीच कूड़े के पहाड़ आखिर खत्‍म कैसे हो, सिर्फ बैठकों में चर्चा
मेरठ में लग रहे कूड़े ढेर से लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।

मेरठ, [दिलीप पटेल]। स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहर को स्वच्छ व सुंदर बनाने के नाम पर नगर निगम ने करोड़ों रुपये खर्च कर दिए, लेकिन सफाई शहर में नजर नहीं आती। मंगतपुरम, कंकरखेड़ा मार्शल पिच, अब्दुल्लापुर, लोहिया नगर, आदि क्षेत्र कचरे की गंदगी से बीमार हैं। इन क्षेत्रों का भूजल भी दूषित हो रहा है और आबोहवा भी। प्रदूषित वातावरण के चलते पुराने पेड़ों की हरियाली गायब हो गई है और नए पौधे अंगड़ाई नहीं ले पा रहे। लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। शहर में वायु प्रदूषण अनियंत्रित हो गया है। वजह, आबादी के बीच कचरे के पहाड़ ही हैं। यह बात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से लेकर नगर निगम और जिला प्रशासन तक को मालूम है। टाउन हाल और बचत भवन की बैठकों में चर्चा भी होती है, लेकिन कूड़े के ये पहाड़ कब खत्म होंगे, पूरे शहर को इसका सालों से इंतजार है।

अभी बंगले-कार्यालय हो रहे स्मार्ट

शहर को स्मार्ट सिटी बनाने की जिम्मेदारी नगर निगम के पास है। कार्ययोजना कागजों पर बन चुकी है। क्या-क्या स्मार्ट होगा, यह भी तय हो चुका है। बस, अभी साहबों के बंगले-कार्यालय स्मार्ट हो रहे हैं। इंतजार करिए, शहर भी स्मार्ट होगा। दरअसल, इन दिनों अपर नगर आयुक्त का कार्यालय चर्चा के केंद्र में है। जिस कार्यालय में कुछ दिन पहले तक दीवार पर लकड़ी की डिजाइन होती थी, अब वहां फाइबर वर्क हो चुका है। यही नहीं, अपर नगर आयुक्त सिविल लाइंस स्थित जिस बंगले में रहती हैं, उसका भी हुलिया बदल गया है। मैडम को सफाई पसंद है, सो उम्मीद की जा सकती है कि बंगले-कार्यालय की तरह शहर को भी स्मार्ट बनाएंगी। फिलहाल नव नियुक्त नगर आयुक्त ने भी विशेष सफाई अभियान की कमान उन्हीं को सौंप दी है। अब देखना है कि शहर कितना साफ होता है।

खुलने लगी हैं भ्रष्टाचार की परतें

मुख्यमंत्री की प्राथमिकता वाली गोवंश संरक्षण योजना में भी भ्रष्टाचार का दीमक लगेगा, यह किसी ने कल्पना नहीं की थी। हालांकि अब भ्रष्टाचार की परतें खुलने लगी हैं। कान्हा उपवन में पीली ईंट के इस्तेमाल पर नवनियुक्त नगर आयुक्त की नजरें क्या पड़ीं, उनके निशाने पर पूरा निर्माण महकमा आ गया है। मामला कान्हा उपवन से जुड़ा है। यहां हुए निर्माण दो साल भी नहीं चल सके। ईंटे उखड़ गई और गेट टूट गए। 450 गोवंश गोशाला में पहुंच गए, लेकिन उनका भूसा सुरक्षित रखने के लिए भूसा कक्ष तक नहीं बना, जबकि दो करोड़ रुपये खर्च हो गए। पिछले दिनों बैठक में नवनियुक्त नगर आयुक्त ने यह संकेत दे दिया है कि अब गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं होगा। साइट पर जाकर निर्माण की गुणवत्ता चेक होगी। गोशाला तो उदाहरण है, रोहटा रोड नाला और आबूनाला दो के निर्माण भी चेक कीजिए।

सपने दिखाइए तो पूरे भी करिए

शहर को एक साल पहले सपना दिखाया गया कि कचरे से बिजली बनेगी। नगर निगम ने प्रयास भी शुरू किये। मेरठ की ही एक कंपनी से अनुबंध कर लिया। कंपनी ने साल भर के भीतर संयंत्र भी तैयार कर लिया, लेकिन बिजली कब बननी शुरू होगी, यह अभी शहर के लिए सपने जैसा ही है। इसी तरह एक और सपना, तीन बड़े नालों का गंदा पानी बायोरेमेडिएशन तकनीक से शुद्ध करने का दिखाया गया। निगम ने शासन को पांच करोड़ रुपये का प्रस्ताव भी भेजा। शासन के निर्देश पर एक संस्था बायोरेमेडिएशन तकनीक का प्रशिक्षण भी दे गई, लेकिन इसके बाद कुछ नहीं हुआ। दोनों ही सपने सफाई से जुड़े हैं। बात कचरा निस्तारण की हो या फिर सीवेज ट्रीटमेंट की, मेरठ शहर को दोनों ही व्यवस्थाओं की दरकार है। यह व्यवस्थाएं तभी सुधरेंगी जब दिखाए जा रहे सपने धरातल पर हकीकत का रूप लेंगे।

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