सफाई वाला : स्वच्छता की क्रांति के लिए प्रेरक तो बनिए, बदलेगी सूरत Meerut News
मेरठ में नगर निगम ने रात्रिकालीन सफाई शुरू की है। व्यवस्था नई है जाहिर सी बात है कि कुछ लोगों को पसंद आएगी कुछ विरोध करेंगे। हालांकि जिन पर शहर को स्वच्छ बनाने का जुनून सवार हो वे हमेशा प्रेरक का काम ही करेंगे।
मेरठ, [दिलीप पटेल]। Special Column नगर निगम ने रात्रिकालीन सफाई शुरू की है। व्यवस्था नई है, जाहिर सी बात है कि कुछ लोगों को पसंद आएगी, कुछ विरोध करेंगे। हालांकि जिन पर शहर को स्वच्छ बनाने का जुनून सवार हो, वे हमेशा प्रेरक का काम ही करेंगे। वार्ड 29 के पार्षद पवन चौधरी, जो सफाई के लिए नाले में कई बार उतर चुके हैं, वह फिर से रात्रिकालीन सफाई में झाड़ू लगाकर सफाई कर्मचारियों का उत्साह बढ़ा रहे हैं। यह बात सही है कि उनके एक-दो दिन झाड़ू लगाने से शहर साफ नहीं हो जाएगा, लेकिन स्वच्छता की क्रांति लाने के लिए यह सोच बहुत जरूरी है। दरअसल, सड़क पर फैली गंदगी के लिए निगम के अधिकारी-कर्मचारी जिम्मेदार तो हैं ही, लेकिन वे लोग भी उतने ही जिम्मेदार हैं जो घर या दुकान का कचरा सड़क पर फेंकने में हिचकिचाते नहीं हैं। कूड़ा डस्टबिन में भी रख सकते हैं।
रामनगर का स्वच्छता संदेश
शहर में अगर गंदगी से अटे मोहल्ले हैं तो साफ-सुथरे मोहल्ले भी हैं। बस, इनमें फर्क तलाशने की जरूरत है। कुछ दिनों पहले स्वच्छता अभियान के सिलसिले में कंकरखेड़ा के वार्ड 21 के रामनगर मोहल्ले जाना हुआ। जिस तरह राम का नाम लेने से मन को शांति मिलती है, ठीक वैसे ही इस मोहल्ले की नालियों और चमचमाती सड़कों को देखकर सुकून मिला। यहां के निवासी नालियों और सड़क को साफ रखना जानते हैं। देखने वाली बात ये है कि यहां ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवार रहते हैं, लेकिन वे स्वच्छता के प्रति इतने जागरूक हैं कि घर का कूड़ा सड़क पर नहीं फेंकते हैं। उनकी नालियां पॉलीथिन से चोक नहीं होती हैं। खाली प्लॉट में गंदगी नहीं दिखती। सुबह निगम के सफाई कर्मी पहुंचते हैं, उससे पहले लोग अपने-अपने घर के सामने आधी-आधी सड़क साफ कर चुके होते हैं। इस जज्बे को सौ सलाम।
यह पहल इंदौर वाली
नगर निगम ने हर घर गीले कचरे की होम कंपोस्टिंग के लिए प्लान बनाया है। वार्ड पुरस्कार से लेकर व्यक्तिगत पुरस्कार तक दिए जाएंगे। एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ तक के विकास कार्य कराने का वादा है। बस, अब नागरिकों को होम कंपोङ्क्षस्टग के तय मानकों पर खरा उतरना है। कुल मिलाकर शहर के नागरिकों की यह एक परीक्षा है, जिससे तय होगा कि स्वच्छता के प्रति नागरिक कितने सजग हैं। शहर को साफ-सुथरा बनाने में नागरिकों का कितना योगदान है, पास होना और फेल होना दोनों ही नागरिकों के हाथ में है। वैसे यह पहल इंदौर वाली है। इंदौर नगर निगम ने होम कंपोस्टिंग के लिए ऐसा ही किया था। वहां के नागरिकों ने इसे अपनाया। 52000 घरों में होम कंपोस्टिंग होती है, इसीलिए इंदौर देश में स्वच्छता का सिरमौर है। अब स्वच्छता में आगे बढऩा है तो सोच इंदौर जैसी करनी होगी।
बाजार है, कचराघर नहीं
नगर निगम ने तय कर दिया है कि प्रत्येक दुकानदार सुबह आठ बजे से रात नौ बजे तक अपनी दुकान के बाहर कचरा नहीं फेंकेगा। अगर ऐसा पाया जाता है तो जुर्माना देना होगा। अब दुकानदारों को तय करना है कि जुर्माना लगने की नौबत ही न आए। बाजार साफ-सुथरे और सजे-धजे ही अच्छे लगते हैं। लोगों को चौपाटी भी वही सुहाती है, जहां गंदगी नहीं होती है। देखा जाए तो दुकानों को सजाने में दुकानदार अच्छा-खासा खर्च करते हैं। यह सब ग्राहकों को लुभाने के लिए ही होता है। बस, अब एक काम और कर लीजिए। कचरे को सुबह आठ से रात नौ बजे तक छुपाने के लिए एक-एक डस्टबिन रख लीजिए। सड़क पर कचरा फेंकना अच्छी बात नहीं है। आखिर बाजार है, कोई कचराघर नहीं। डस्टबिन में कचरा रहेगा तो निगम को उठाने में आसानी होगी और सफाई भी दिखेगी।