जैन दर्शन में विन्रमता ही सबसे बड़ा मंत्र : भाव भूषण

विश्व की सुख शांति एवं समृद्धि के लिए हस्तिनापुर स्थित कैलाश पर्वत मंदिर में आयोजित 48 दिवसीय भक्तामर विधान एवं पाठ के दसवें दिन गुरुवार को भगवान आदिनाथ के अभिषेक के साथ शांतिधारा की मांगलिक क्रियाएं की गई।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 25 Feb 2021 07:01 PM (IST) Updated:Thu, 25 Feb 2021 07:01 PM (IST)
जैन दर्शन में विन्रमता ही सबसे बड़ा मंत्र : भाव भूषण
जैन दर्शन में विन्रमता ही सबसे बड़ा मंत्र : भाव भूषण

मेरठ, जेएनएन। विश्व की सुख, शांति एवं समृद्धि के लिए हस्तिनापुर स्थित कैलाश पर्वत मंदिर में आयोजित 48 दिवसीय भक्तामर विधान एवं पाठ के दसवें दिन गुरुवार को भगवान आदिनाथ के अभिषेक के साथ शांतिधारा की मांगलिक क्रियाएं की गई। विधान में 201 परिवारों ने भाग लेकर धर्म लाभ अíजत किया।

मुनि भाव भूषण महाराज के पावन सानिध्य में चल रहे भक्तामर विधान में भगवान का नित्य नियम पूजन किया गया। विधान के मध्य महाराज श्री ने मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि जैन दर्शन में प्रणाम ही सबसे बड़ा मंत्र है। मन, वचन व कार्य से समर्पित होकर किया गया नमस्कार ही फलदायी है। जब तक नमस्कार नहीं तब तक परमात्मा का पुरस्कार भी संभव नहीं है। प्रणाम का तात्पर्य विनम्रता से होता है, खुद को प्रभु के आगे नतमस्तक करने से है। विनम्रता मनुष्य को आयु, विद्या, यश और बल को प्रदान करता है। इसलिए जैन ग्रंथों व शास्त्रों में सबसे पहले पंच परमेष्ठी को प्रणाम किया गया है। जिससे प्रभु की कृपा सभी पर बनी रहे। शांतिधारा करने का सौभाग्य ब्रह्माचारी चंदन व सलिल जैन को प्राप्त हुआ। वहीं स्वर्ण कलश अभिषेक नरेंद्र जैन ने किया। आरती का दीप प्रज्वलन स्वीटी जैन ने किया। इस मौके पर श्रद्धालुओं ने भगवान को अ‌र्घ्य भी समर्पित किए। सायं काल मे मंगल आरती के पश्चात भजन संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने मे विधान संयोजक मोती लाल जैन, महामंत्री मुकेश जैन सर्राफ, कोषाध्यक्ष राजेंद्र जैन व महाप्रबंधक मुकेश जैन, सुभाष, राजीव, विनोद, प्रेमचंद जैन, विपिन व गुरुकुल के विद्यार्थियों का सहयोग रहा।

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