RIP RLD Chief Ajit Singh: जब एक सभा के दौरान बाल-बाल बच गए थे छोटे चौधरी, गोली लगने से समर्थक की हो गई थी मौत

RLD मुखिया चौ. अजित सिंह बागपत के छपरौली के गांव किशनपुर बराल में एक बार गोली लगने से बाल-बल बच गए थे लेकिन एक समर्थक की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद हालात बेकाबू हो गए थे।

By Himanshu DwivediEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 11:55 AM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 11:55 AM (IST)
RIP RLD Chief Ajit Singh: जब एक सभा के दौरान बाल-बाल बच गए थे छोटे चौधरी, गोली लगने से समर्थक की हो गई थी मौत
गोली लगने से बाल-बाल बच गए थे रालोद प्रमुख अजित सिंह।

[नवीन चिकारा, ओम बाजपेयी] मेरठ। रालोद मुखिया चौ. अजित सिंह बागपत के छपरौली के गांव किशनपुर बराल में एक बार गोली लगने से बाल-बल बच गए थे, लेकिन एक समर्थक की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद हालात बेकाबू हो गए थे, लेकिन उन्होंने स्थिति को बिगड़ने से बचा लिया था। चौ. अजित सिंह की बहन सरोज देवी छपरौली से विधायक थीं। उनके आकस्मिक निधन के बाद वर्ष 1987 में उपचुनाव हुआ। अजित सिंह ने पार्टी से नरेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह और उनकी पार्टी कांग्रेस अपना उम्मीदवार जिताना चाहते थे। उसी दौरान चौ. अजित सिंह छपरौली के गांव किशनपुर बराल गांव में सभा को संबोधित कर रहे थे। इसी बीच टकराव हो गया और किसी ने गोली चला दी। अजित सिंह के समर्थक चंद्रपाल सिंह ने गोली लगने से दम तोड़ दिया।

मेरठ से शुरू हुआ था राजनीतिक सफर

चौधरी अजित सिंह ने हमेशा राष्ट्रीय राजनीति की मगर मेरठ हमेशा उनके कार्यक्षेत्र का केंद्र रहा। सन 1986 में सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया तो पहला कार्यकर्ता सम्मेलन उन्होंने बच्चा पार्क स्थित पीएल शर्मा स्मारक सभागार में किया। इसके बाद उन्होंने बडौत के जैन इंटर कालेज में पहली जनसभा की। सन 1986 में मेरठ में हुए दंगे ने उन्हें झकझोर दिया। इसी दौरान हाशिमपुरा और मलियाना के दंगे हुए। इनमें कई लोगों की जानें गई थीं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और बाद में अजित सिंह से जुड़े रहे जगत सिंह बताते हैं कि टेक्नोक्रेट रहे अजित सिंह को राजनीति का यह रूप अंदर तक कचोट गया था। इसी के परिणामस्वरूप उन्होंने 1987 में मेरठ के बच्चा पार्क से लखनऊ तक पदयात्र निकाली। कई दिनों तक चली पदयात्र में चौधरी अजित सिंह ने जगह-जगह जनसभाएं कीं और लोगों से आपसी सौहार्द बनाए रखने की अपील की। 12 वर्षो तक चौधरी चरण सिंह और अजित सिंह के नेतृत्व वाले राजनीतिक दलों में मेरठ के जिलाध्यक्ष रहे पूर्व विधायक जगत सिंह बताते हैं कि उनमें कभी अहं की भावना नहीं रही। पूर्व प्रधानमंत्री के पुत्र थे, कई विभागों में केंद्रीय मंत्री थे, इसके बावजूद उनका व्यवहार सरल और सादगी भरा था। राजनीतिक अभियानों के दौरान जो सहजता से उपलब्ध हो जाता था, वही भोजन कर लेते थे।

हमारा आपका जमाना तो चला गया, हम तो शो पीस हैं

करीब एक माह पूर्व छह अप्रैल को चौधरी अजित सिंह के दिल्ली स्थित बसंत कुंज निवास पर पंचायत चुनाव का टिकट मांगने वालों की भीड़ लगी थी। चौधरी चरण सिंह की पारंपरिक विधानसभा सीट छपरौली से पांच बार विधायक रहे चौधरी नरेंद्र सिंह बताते हैं कि उस दिन वह उनसे मिलने गए थे। बेहद प्रसन्न लग रहे अजित सिंह ने उनको देखते ही सबसे कह दिया कि भाई, कुछ देर अकेला छोड़ दो। दो घंटे साथ रहे और अपनी चिर-परिचित शैली में प्रसन्न मन से बात की। उस दौरान चौधरी अजित सिंह कमजोर भले लग रहे थे लेकिन गर्मजोशी में कोई कमी नहीं थी। उन्होंने हंसकर कहा कि हम और आप तो शो पीस रह गए हैं अब, हमारा जमाना चला गया। अब तो, जयंत की ओर इशारा करते हुए कहा कि इनका जमाना आ गया है। कुछ लोगों द्वारा चौधरी चरण सिंह के कुछ पुराने फोटो दिखाने पर वो भावुक हो गए। उस समय उन्हें देख बिल्कुल आभास नहीं हुआ कि एक माह बाद ही वो हमको अकेला कर जाएंगे।

कमाल की थी लेटर ड्राफ्टिंग, सभी मानते थे लोहा

खडगपुर आइआइटी के छात्र रहे चौधरी अजित सिंह की सरकारी नियम कानूनों पर बारीक पकड़ थी। उनके संपर्क में रहे एक अधिकारी ने बताया कि अंग्रेजी हो या हिंदी, उनकी लेटर ड्राफ्टिंग कमाल की थी। अधिकारी जो लेटर ड्राफ्ट कर लाते थे, उसपर सुधार करते हुए जगह-जगह लाल निशान लगा देते थे या शब्दों को सही करते थे चौधरी साहब। सरकारी कार्यवाही के लिए वाक्य विन्यास कैसा होना चाहिए और प्रयुक्त शब्दों का क्या अर्थ निकलेगा, इसका उन्हें गहरा ज्ञान था। कई मंत्रलयों के कैबिनेट मंत्री रहे चौधरी अजित सिंह की लेटर ड्राफ्टिंग का लोहा विभाग के आइएएस अफसर भी मानते थे। 

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