Rahat indori death News: राहत की आहट से धड़कने लगता था पश्चिम का दिल

शायर डा. राहत इंदौरी के निधन से लाखों कद्रदान गमजदा दो साल पहले दैनिक जागरण के कवि सम्मेलन में राहत इंदोरी मेरठ आए थे।

By Prem BhattEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 02:27 PM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 02:27 PM (IST)
Rahat indori death News: राहत की आहट से धड़कने लगता था पश्चिम का दिल
Rahat indori death News: राहत की आहट से धड़कने लगता था पश्चिम का दिल

राजन शर्मा, मेरठ।

चरागों को उछाला जा रहा है।

हवा पर रौब डाला जा रहा है।।

जनाजे पर मेरे लिख देना यारों।

मोहब्बत करने वाला जा रहा है।।

दो साल पहले मेरठ की सरजमीं पर ताजदारे गजल डा. राहत इंदौरी ने जब ये शेर सुनाया तो शायरी के हजारों कद्रदान झूमने लगे, लेकिन ये सब इस बात से एकदम बेपरवाह थे कि 11 अगस्त 2020 को राहत का जनाजा उठने की खबर सच में आएगी और मेरठ ही नहीं, बल्कि पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश गमजदा और सोगवार हो जाएगा। दरअसल राहत साहब का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों से अटूट रिश्ता था।

12 अगस्त 2018 को मेरठ के राजा रानी मंडप में दैनिक जागरण की जानिब से अखिल भारतीय कवि सम्मेलन को आयोजन किया गया था। इसमें डा. राहत इंदौरी के साथ ही कई नामचीन ने शिरकत की थी। हर कवि व शायर ने जमकर दाद बटोरी। रात दो बजे के करीब डा. राहत इंदौरी ने माइक संभाला। हजारों के मजमे के बीच दुबली-पतली काया लिए डा. राहत इंदौरी ने आसमान से नजरें मिलाईं और दायां हाथ उठाकर इस शेर के जरिए हुंकार भरी तो एकबारगी लगा कि मानो वो समंदर को अपनी अंगुली पर नचा रहे हैं। शेर था कि-

इक हुकूमत है जो इनाम भी दे सकती है

इक कलंदर है जो इंकार भी कर सकता है।

इस शेर के बाद उन्होंने बदरंग होती सियासत को ललकारा-

कुछ बेजमीर लोगों ने ओहदों के वास्ते

तस्वीर ही बिगाड़ दी हिंदुस्तान की।

फिर बोले कि सियासत को रास्ते पर लाने के लिए आम आदमी को वोट की ताकत समझनी चाहिए। उन्होंने इस शेर से अपनी बात समझाई कि-

सुपुर्द कौनसे कातिल को ख्वाब करना है,

फिर एक बार हमें इंतिखाब करना है।।

इस महफिल में रसिक श्रोताओं ने राहत साहब का एक-एक शेर सिर आंखों पर लिया। वो भी इतने मस्त हो गए कि करीब एक घंटे तक शायरी की बरसात करते रहे। बाद में उन्होंने कहा कि मैं पूरी दुनिया में बड़े शौक से घूमता हूं, लेकिन मेरठ और आसपास के जिलों में आकर दिली सुकून मिलता है।

मुजफ्फरनगर से किया शायरी का आगाज

डा. राहत इंदौरी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जज्बाती रिश्ते की तस्दीक के लिए यह वाकया एकदम सटीक है। सन् 1980 में मुजफ्फरनगर के नुमाइश पंडाल में आलमी मुशायरा आयोजित किया गया था। इसमें संगीतकार नौशाद, मजरूह सुल्तानपुरी, अहमद फराज, कतील शिफाई, बशीर बद्र, साधना खोटे और राहत इंदौरी ने शिरकत की थी। संचालन कर रहे डा. अनवर जलालपुरी ने अपनी रेशमी आवाज बिखेरते हुए राहत इंदौरी को आवाज दी। बताया कि ये नौजवान शायर आपके उत्तर प्रदेश में नूर इंदौरी की सलाह पर पहली बार मुशायरा पढ़ने आया है, इसलिए हौंसलाअफजाई की दरख्वास्त है। राहत इंदौरी ने जैसे ही माइक संभाला तो उनका डील-डौल व लिबास देखकर जनता ने ठहाके लगाने शुरू कर दिए। दरअसल उन्होंने सफेद पैंट और चौड़े कॉलर वाली हरी कमीज पहन रखी थी। ऊपर से लंबे-लंबे बाल। लेकिन माहौल की परवाह किए वगैर उन्होंने पहला शेर पढ़ा तो चारों तरफ से दाद आने लगी। बहरहाल, राहत इंदौरी ने मुशायरा लूट लिया। आयोजकों ने उन्हें निर्धारित डेढ़ सौ रुपये मानदेय के बजाए ढाई सौ रुपये दिए। इस ऐतिहासिक महफिल का आगाज उन्होंने इस शेर से किया था-

मयकदे वीरान रातों के हवाले हो गए

जितने पीने वाले थे अल्लाह वाले हो गए,

दूर थे जब तक सियासत से तो हम भी साफ थे,

कोयलों की खान में पहुंचे तो काले हो गए।। 

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