अस्थमा से पढ़ाई में भी पिछड़ सकता है बच्चा
वर्ल्ड अस्थमा डे -20 साल में तीसरी सबसे घातक बीमारी बनेगा अस्थमा -नए इनहेलर काफी कारगर, ध
वर्ल्ड अस्थमा डे
-20 साल में तीसरी सबसे घातक बीमारी बनेगा अस्थमा
-नए इनहेलर काफी कारगर, धावक व पर्वतारोही भी कर रहे इस्तेमाल
जागरण संवाददाता, मेरठ : अस्थमा बच्चों के विकास में बड़ी बाधक है। नियमित इलाज न कराया जाए तो बच्चा पढ़ाई में पिछड़ सकता है। दिमाग में आक्सीजन कम पहुंचने से आइक्यू कमजोर हो सकता है। खेलकूद एवं तमाम गतिविधियों में पिछड़ने से वह कुंठा का शिकार हो जाता है। अस्थमा अगले 20 साल में मौत की तीसरी सबसे खतरनाक वजह बन जाएगी। हालांकि नए इन्हेलर की मदद से अस्थमा का मरीज ओलंपिक खेलने के साथ ही पहाड़ों पर भी चढ़ रहा है। उक्त बातें सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ डा. वीरोत्तम तोमर ने सोमवार को एक पत्रकार वार्ता में कहीं।
वर्ल्ड अस्थमा डे की पूर्व संध्या पर प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि तमाम बच्चों में समय के साथ अस्थमा खुद ठीक हो जाता है। फिर भी इसका नियमित इलाज जरूरी है। कटाई-मड़ाई के सीजन में ओपीडी में बड़ी संख्या में अस्थमा के मरीज पहुंच रहे हैं। धूलकणों से सांस की नलियों में खुजली व सिकुड़न हो रही है। मरीज के फेफड़ों की पीक फ्लो मीटर से नियमित जाच हो तो अस्थमा के अटैक से बचाया जा सकता है। पीएफटी से पता चल जाता है कि मरीज को सीओपीडी है या दमा। नए इनहेलर सिर्फ पांच मिनट में सांस की नली खोल देते हैं, किंतु 80 फीसद मरीज इसका ठीक से उपयोग करना नहीं जानते। घर में पालतू पशु, पुरानी चादर, पर्दा, सोफा कवर, सीलन व पेंट से भी एलर्जी होती है। इनडोर एवं आउटडोर प्रदूषण से भी अस्थमा बढ़ा है। एसिडिटी से बचने के लिए शाम को कम मात्रा में भोजन करें। कई बार दमा का इलाज न कराने से यह सीओपीडी में बदल सकता है। थायरायड को नियंत्रित रखना भी जरुरी है।