सिलेंडर पकड़कर रोते लोग, कांप जा रही रूह, आंखों से तो क्या, कल्पनाओं में भी ऐसा मंजर नहीं देखा

युवाओं के हाथ में सिलेंडर है और उनके चेहरे की हवाईयां उड़ी हुई हैं। न जाने आक्सीजन मिलने तक मरीज की जान बचेगी या नहीं। अस्पतालों में सिलेंडर पकड़कर रोते हुए लोगों को देखकर रूह कांप जा रही है।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Tue, 04 May 2021 02:13 PM (IST) Updated:Tue, 04 May 2021 02:13 PM (IST)
सिलेंडर पकड़कर रोते लोग, कांप जा रही रूह, आंखों से तो क्या, कल्पनाओं में भी ऐसा मंजर नहीं देखा
मेरठ में कोरोना संक्रमण से हर कोई खौफजदा।

मेरठ, जेएनएन। मैं ऐसे शहर में सांस ले रहा हूं, जहां सांस के बिना लोग तड़प-तड़पकर मर रहे हैं। सड़कों पर सन्नाटे को चीरती एंबुलेंस भागती मिल रही हैं और ई रिक्शे पर अंतिम सांसें गिनता मरीज। युवाओं के हाथ में सिलेंडर है, और उनके चेहरे की हवाईयां उड़ी हुई हैं। न जाने आक्सीजन मिलने तक मरीज की जान बचेगी या नहीं। अस्पतालों में सिलेंडर पकड़कर रोते हुए लोगों को देखकर रूह कांप जा रही है। प्रशासनिक महकमा दिशाहीन और ऊर्जाहीन हो चुका है। दिन का उजाला हो या शाम का धुंधलका, कहीं कोई रौनक नहीं, सिर्फ खौफ का शिकंजा है। कोविड वार्ड से निकले एक डाक्टर साहब ने सिसकते हुए कहा, आंखों से तो क्या, कल्पनाओं में भी ऐसा मंजर नहीं देखा।

रोता देख कोई ढांढस भी नहीं बंधाता

महामारी से अवसादग्रस्त मनोदशा लेकर लोग सड़कों पर नजर आए। सोचा कि फुर्सत के क्षणों में वीरान पड़ी सड़कों पर घूमकर मन को बहलाया या यूं कहें कि स्वयं को छला जाए लेकिन कोविड केंद्रों के आसपास के दृश्य ने अचानक झकझोर दिया। बागपत रोड स्थित कोविड अस्पताल के पास चार एंबुलेंस खड़ी हैं। उसमें रखा सिलेंडर तेजी से खत्म हो रहा है। एक जवान बेटा अपने पिता की गोद में धीरे-धीरे खामेश पड़ रहा है। अस्पताल के अंदर से रोता हुआ एक युवक बाहर आया। कहा, यहां न बेड और और न आक्सीजन, कहीं और ले जाना होगा। इसके बाद एंबुलेंस गढ़ रोड की तरह बढऩे लगी। बच्चा पार्क से आगे निकलते ही रेडियोडाइग्नोस्टिक केंद्रों पर नजर पड़ी। छाती की सीटी जांच कराने वालों की लाइन लगी है। कार में बैठे-बैठे मरीजों की सांस उखड़ रही है। सड़क पर हर पांच से दस मिनट के अंतराल पर एंबुलेसों की आवाज सुनाई पड़ जाती है। मेडिकल स्टोरों पर भीड़ है, लेकिन दुकानदार सहमा हुआ नजर आ रहा है। खरीदने वाले ने भी डबल मास्क लगा रखा है।

मेडिकल में महामारी का विकराल रूप

मेडिकल कालेज की तरफ बढ़ते गए तो कोरोना महामारी और विकराल होती गई। आनंद अस्पताल के पास एक परिवार आपस में लिपटकर रो रहा है। स्टाफ अब ढांढस नहीं बंधाता, क्योंकि इस बेरहम वायरस ने लोगों को एक दूसरे से दूर कर दिया है। अस्पताल में आक्सीजन संकट को लेकर स्टाफ के चेहरे पर डर है। परिजन सिलेंडर लेकर पहुंच रहे हैं, लेकिन यह नाकाफी है। न्यूटिमा अस्पताल में रविवार दोपहर आक्सीजन खत्म हो गई थी, जिसकी जानकारी प्रशासन को थी। अधिकारी हाथ पर हाथ धरे रहे, और पांच मरीजों ने आक्सीजन की कमी से दम तोड़ दिया। अस्पताल में तोडफ़ोड़ कर दी गई। इसका असर सोमवार को भी नजर आ रहा है। मैनेजर राजीव रस्तोगी ने बताया कि यहां हर घंटे 20 सिलेंडरों की खपत है, लेकिन प्रशासन सिलेंडर नहीं दे पा रहा, अब मरीजों को कैसे बचाएंगे? मेडिकल कालेज पहुंचने पर पूरा कैंपस मरीजों से भरा पड़ा है। पश्चिमी उप्र के तमाम जिलों से मरीज पहुंचे हुए हैं। मरीजों को सिलेंडर के जरिए आक्सीजन दी जा रही है, जो चंद मिनटों में खत्म हो जाएगी। कोविड वार्ड की चमकती-दमकती बिल्डिंग से डरावनी आवाजें आ रही हैं। यहां मौतों का सिलसिला थम ही नहीं रहा है। एक डाक्टर ने रोते हुए एक व्यक्ति से कहा, यहां मेडिकलकॢमयों को ही बेड नहीं मिल रहा है, आपको कहां भर्ती कर दूं। यह सुनकर गाजियाबाद से आए युवक का दिल बैठ गया। आपदा की जानलेवा व्यथा कहीं अंतहीन न बन जाए। 

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