कोरोना महामारी में दफन हो रही संवेदनाएं, जिंदगी की आस में और मौत के बाद भी परेशां हो रहे तीमारदार
महामारी की मार के बीच अव्यवस्थाओं के चलते संवेदनाएं कहीं दफन सी हो गई हैं। स्थिति यह है कि कोरोना संक्रमित मरीज और उसकी जांच करवाने अथवा उसे भर्ती करवाने मेडिकल कालेज आने वाले परिवार के लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
मेरठ, जेएनएन। महामारी की मार के बीच अव्यवस्थाओं के चलते संवेदनाएं कहीं दफन सी हो गई हैं। स्थिति यह है कि कोरोना संक्रमित मरीज और उसकी जांच करवाने अथवा उसे भर्ती करवाने मेडिकल कालेज आने वाले परिवार के लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बुधवार को एक के बाद एक कई ऐसी दुखद घटनाएं सामने आयीं, कि जब मरीज के साथ स्वजन की आंखें भी भर आईं। एक ओर हापुड़ के मरीज का आक्सीजन लेवल कम देख उसे भर्ती करने से इंकार कर दिया गया, दूसरी ओर कोरोना संक्रमण से दम तोड़ चुके मरीज का शव पाने के लिए स्वजन को घंटों भटकना पड़ा।
शामली निवासी रूपेश जैन ने अपने पिता सुमेश जैन को कुछ दिन पहले कोरोना से संक्रमित होने पर मेडिकल कालेज में भर्ती कराया था। यहां उपचार चला। चिकित्सक कभी हालत गंभीर तो कभी बेहतर बताते रहे। मंगलवार की रात अचानक मरीज की मौत हो गई। सुबह उनके स्वजन को मौत होने की सूचना से संबंधित पर्ची थमा दी गई। अचानक मिली इस हाहाकारी सूचना से परेशान स्वजन शव पाने के लिए घंटों इस दर से उस दर भटकते रहे। दोपहर दो बजे किसी तरह शव को बाहर लाया गया। दुखी मन से विलाप करते हुए स्वजन शव को लेकर रवाना हुए।
इसी क्रम में, हापुड़ के रेलवे रोड निवासी रामलाल को उनके स्वजन गंभीर हालत में एंबुलेंस से लेकर मेडिकल कालेज पहुंचे। यहां काफी देर भटकने के बाद मेडिकल स्टाफ ने आक्सीजन लेवल की जांच की। विडंबना देखिए कि आक्सीजन लेवल 60 से नीचे मिलने पर उन्हें भर्ती करने से ही इंकार कर दिया गया। घंटों स्वजन मरीज को भर्ती करने की गुहार लगाते रहे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अंतत: मेडिकल से निराश स्वजन वहां से चले गए। सवाल यह है कि जब सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान में मरीज की भर्ती केवल इस आधार पर नहीं होगी कि उसका आक्सीजन लेवल 60 है, तो आखिर उसके बाद वह कहां जाएगा।
दूसरा पहलू
पहले नियम पूरे कीजिए, फिर मिलेगा सामान
कोरोना से ठीक हो चुके अथवा दुनिया छोड़ चुके मरीजों के स्वजन को अपना सामान मेडिकल कालेज से वापस पाना जंग लड़ने के समान साबित हो रहा है। अगर मोबाइल वापस चाहिए तो बिल प्रार्थना-पत्र के साथ लगाना होगा। बैग चाहिए तो रंग के साथ आकार और कंपनी का नाम भी बताना होगा। अन्य सामान के लिए भी इसी तरह की शर्तें लागू की गई हैं। शर्तें पूरी न होने की स्थिति में सामान भी वापस नहीं मिल रहा है। बुधवार को कई लोग अपने मरीज का सामान लेने के लिए मेडिकल कालेज पहुंचे, लेकिन तय किए गए नियम पूरे न कर पाने के कारण निराश होकर वापस लौट गए।
जांच के लिए भी कतार
कोरोना के लक्षण मिलने के बाद जांच कराने के लिए लोग मेडिकल कालेज पहुंच रहे हैं, लेकिन यहां भी उनको राहत नहीं मिल रही है। बीमार होने के बाद भी घंटों कतार में लगकर अपनी बारी का इंतजार हो रहा है। कई मरीज तो अपने स्वजन को कतार में लगाकर खुद वाहन में लेट जाते हैं। उधर, कतार में लगे लोगों का आरोप है कि सिफारिश वाले मरीजों की कतार तोड़कर जांच होती है, जबकि अन्य को डपटकर चुप करा दिया जाता है।