Om Prakash Sharma Dies: शिक्षक राजनीति के वटवृक्ष थे ओमप्रकाश,50 साल से थे जीत की गारंटी, संघर्ष था मूलमंत्र Meerut News
ओमप्रकाश शर्मा ने शिक्षक राजनीति में एक मुकाम हासिल किया था। उनके विरोधी भी मानते हैं कि उनके राजनीतिक दबदबे तक पहुंचना किसी सियासतदां के लिए मुश्किल हागा। सूबे में सरकारों का आना-जाना लगा रहा। राष्ट्रीय दलों से सत्ता सरककर क्षेत्रीय दलों के पाले में आ गई।
मेरठ, जेएनएन। शिक्षक राजनीति के स्तंभ रहे ओमप्रकाश शर्मा की सियासी परछाई बेहद लंबी थी। शिक्षक राजनीति में लगातार 50 साल की मैराथन पारी खेलने के बाद पिछले चुनावों में क्रीज से बाहर हुए, लेकिन शिक्षकों के हित में उनकी आवाज आज भी बुलंद थी। राजनीति के पंडित बताते हैं कि उनकी एक आवाज पर सूबे के कोने-कोने से शिक्षक हाथ उठाकर खड़े हो जाते थे। सत्तर और अस्सी के दशक में उन्हें कई दिग्गजों ने मंत्री बनाने का भी आफर दिया, लेकिन वो सिद्धांतों की डगर से नहीं भटके।
नहीं हुए थे टस से मस
ओमप्रकाश शर्मा के विरोधी भी मानते हैं कि उनके राजनीतिक दबदबे तक पहुंचना किसी सियासतदां के लिए मुश्किल हागा। सूबे में सरकारों का आना-जाना लगा रहा। राष्ट्रीय दलों से सत्ता सरककर क्षेत्रीय दलों के पाले में आ गई। प्रदेश की सियासत में भारी बदलाव नजर आया, लेकिन शर्मा का वजूद दलगत सियासत की मोहताज नहीं रही।
बदलते दौर में चौधरी चरण सिंह की सरकार से लेकर कांग्रेस, जनता दल, सपा, बसपा और भाजपा ने सत्ता संभाला, लेकिन उनका राजनीतिक दुर्ग अभेद्य रहा। उनके आठ बार एमएलसी रहने के दौरान 19 मुख्यमंत्रियों ने यूपी की कमान संभाली। कहते हैं कि हेमवती नंदन बहुगुणा और मुलायम सिंह यादव ने उन्हें मंत्री बनाने के अलावा लखनऊ से संसदीय चुनाव लडऩे का प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन शर्मा टस से मस नहीं हुए।
87 साल की उम्र में भी जमकर लड़े चुनाव
शिक्षक राजनीति में ओम प्रकाश का करिश्माई दखल ऐसा रहा कि सूबे का शिक्षक उनकी एक आवाज पर उठ खड़ा होता था। 87 साल की उम्र में एमएलसी चुनाव लड़े। वक्त काफी आगे निकल चुका था। संगठन में भी भारी मतभेद उभरा, और जिलाध्यक्षों की उनके महामंत्रियों से ठन गई। संगठन में नए लोग भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं सके। लंबे समय से उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने सूबे में संगठन को बड़ी ताकत और विस्तार दिया। आखिरकार भाजपा प्रत्याशी श्रीचंद शर्मा से चुनाव हार गए। लेकिन उनका कद ऐसा था कि चुनाव जीतने के बाद श्रीचंद शर्मा ओमप्रकाश से मिलने उनके घर गए। पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
इनका कहना है
ओमप्रकाश शर्मा के निधन से शिक्षा जगत की राजनीति में रिक्तता आ गई है। वो कई दशकों तक राजनीति में अपने मूल्यों के साथ आगे बढ़ते रहे। संघर्ष किया, और शिक्षकों का भरोसा जीता। भगवान उन्हें अपने चरणों में स्थान दें।
- डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा
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