मेरठ में तैयार होंगे ओलंपियन मुक्केबाज, कोच धर्मेंद्र सिंह ने शुरू की बाक्सिंग एकेडमी Meerut News
कामनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीतने और देश के पहले प्रोफेशनल बाक्सर बनने वाले धर्मेंद्र ने मेरठ के कंकरखेड़ा में बाक्सिंग एकेडमी शुरू की है। भारतीय मुक्केबाजी टीम के कोच धर्मेंद्र वर्तमान में देश के मुक्केबाजों को टोक्यो ओलंपिक्स के लिए तैयार कर रहे हैं।
मेरठ, जेएनएन। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 19 बार भारतीय मुक्केबाजी का प्रतिनिधित्व करने वाले धर्मेंद्र सिंह यादव मेरठ में मुक्केबाज तराशेंगे। कामनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीतने और देश के पहले प्रोफेशनल बाक्सर बनने वाले धर्मेंद्र ने मेरठ के कंकरखेड़ा में बाक्सिंग एकेडमी शुरू की है। भारतीय मुक्केबाजी टीम के कोच धर्मेंद्र वर्तमान में देश के मुक्केबाजों को टोक्यो ओलंपिक्स के लिए तैयार कर रहे हैं। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने मेरठ को चुना है, जिससे मेरठ, बागपत, बड़ौत, बुलंदशहर आदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों से बेहतरीन टेलेंट को आगे बढ़ा सकें।
यहां मिलेंगे अच्छे बाक्सर
यहां का खानपान बेहतर है। खेल, पुलिस, सेना समेत तमाम फोर्स में जाने का यहां के युवाओं में जज्बा है। इसी को देखते हुए संभल निवासी धर्मेंद्र ने एकेडमी के लिए मेरठ को चुना। उनका मानना है कि मुक्केबाजी में जिस तरह के युवाओं की जरूरत होती है, ऐसे युवा यहां भरपूर हैं। धर्मेंद्र के अनुसार यहां ट्रेनिंग करने वाले मुक्केबाजों की दिल्ली के मुक्केबाजों के साथ प्रतियोगिताएं भी आयोजित होंगी। इससे खिलाडिय़ों की तैयारी और भी अच्छी हो सकेगी।
मुक्केबाजी में आगे बढ़ रहा देश
धर्मेंद्र के अनुसार भारतीय मुक्केबाजी टीम इस समय दुनिया में छठे स्थान पर है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के लिए हर आयु वर्ग में तीन-चार खिलाड़ी ऐसे हैं जो कब और किसे हराकर आगे निकल जाएं कुछ नहीं कहा जा सकता। इसका कारण हमारी मुक्केबाजों में आपसी प्रतिस्पर्धा अधिक होना है। प्रतिस्पर्धा से निकलकर आगे बढऩे वाले बाक्सर ही सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। वर्तमान में पांच पुरुष व चार महिला बाक्सरों को ओलंपिक कोटा मिल चुका है जबकि चार अन्य खिलाड़ी कोटे की दौड़ में शामिल हैं। भारतीय मुक्केबाजी टीम वर्तमान में इटली में प्रशिक्षण कैंप के लिए गई है।
देश का नाम किया है रोशन
धर्मेंद्र सिंह यादव ने वर्ष 1990 में एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। वर्ष 1991 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया। वर्ष 1989 से 1994 तक उन्होंने 19 बार मुक्केबाजी में भारत का प्रतिनिधित्व किया। साढ़े 16 साल की आयु में ही सीनियर टीम में जगह बनाई थी। वह पहले भारतीय बाक्सर थे जो प्रोफेशनल बाक्सिंग में उतरे और छह में एक भी फाइट नहीं हारे।