अभी स्वावलंबन का सपना ही देख रही आधी दुनिया

सरकारी रिपोर्ट से साफ हो गया है कि आधी आबादी में महज 12 फीसद ही कामकाजी है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 24 Apr 2018 04:02 PM (IST) Updated:Tue, 24 Apr 2018 04:02 PM (IST)
अभी स्वावलंबन का सपना ही देख रही आधी दुनिया
अभी स्वावलंबन का सपना ही देख रही आधी दुनिया

मेरठ (जेएनएन)(जहीर हसन)। हम महिला सशक्तीकरण का दावा करते नहीं थकते, लेकिन जमीनी हकीकत बड़ी स्याह है। बागपत में महिलाओं को काम ही नहीं मिलता है। सरकारी रिपोर्ट से साफ हो गया है कि आधी आबादी में महज 12 फीसद ही कामकाजी है। बाकी महिलाओं का हाल खराब है। वे काम नहीं मिलने से अभी स्वावलंबन का सपना ही देख रही हैं। रोजगार के मामले में पुरुष व महिलाओं के बीच फासला जमीन-आसमान जैसा है। साफ है कि नौकरी करने के लिए महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलने देने और नौकरीप्रदाता होने पर उन्हें नौकरी में पुरुष से कमतर आंकने की मानसिकता बदलाव मांग रही है। 74 हजार को काम

आयुष्मान भारत योजना लागू करने के लिए सरकारी तंत्र आर्थिक गणना का विश्लेषण करने में जुटा है। विश्लेषण में कई रौचक जानकारी भी सामने आई है। जैसे आधी दुनिया की कामकाज में कम हिस्सेदारी का मामला भी प्रकाश में आया है। बागपत में कुल 6.3 लाख में मात्र 74 हजार महिलाओं को ही रोजगार मयस्सर है। बाकी 88 फीसद महिलाओं का हाल बेहाल है। रोजगार नहीं मिलेगा तो स्वावलंबी कैसे बनेंगी? पीछे हैं तीस कोस

काम मिलने में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है। बागपत में कुल पुरुष आबादी में 48 फीसद को रोजगार मिला है, जबकि महिलाओं की भागीदारी महज 12 फीसद है। साफ है कि महिलाएं पुरुषों से 31 फीसद पीछे हैं। शहरों के मुकाबले गांवों में ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिला है। देहात में जहां कुल आबादी में 13.6 फीसद महिला वर्कर हैं, वहीं कस्बों में महज 7.3 फीसद हैं। खेती में भी पीछे

बागपत में कुल 1.24 लाख किसानों में महज 16 हजार 735 ही महिला खेती करती हैं। साफ है कि पुरुषों से 86.5 फीसद पीछे हैं। जमीन की मालकिन होने में ही नहीं, बल्कि खेती में काम पाने में भी महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। कुल 74 हजार 500 कृषि वर्करों में 16 हजार महिला वर्कर हैं। साफ है खेती में महिलाओं को शायद इस वजह से काम नहीं मिलता कि कहीं वे पुरुषों से कम काम करेंगी। फैक्ट्रियों में हैं कम

बागपत के कुल 20 हजार 347 व्यक्ति फैक्ट्रियों में काम करते हैं, लेकिन इनमें महिला कम है। जहां 12 हजार 698 पुरुष वर्कर तो वहीं महिला महज 7649 हैं। समाजशास्त्री अनिल कुमार कहते हैं कि भले ही दुनिया तेजी से बदल रही हो, लेकिन अभी पुरुषवादी सोच नहीं बदली है। फैक्ट्रियों हो चाहे दूसरी जगह महिलाओं को आसानी से काम नहीं मिलता है। सोचना होगा कि रोजगार नहीं मिलेगा तो नारी सशक्तीकरण और स्वावलंबन का सपना कैसे पूरा होगा?

डीडीओ हुबलाल ने बताया कि हमने आर्थिक गणना के डाटा का विश्लेषण किया तो रोजगार के मामले में महिलाओं की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। प्रयास करेंगे राष्ट्रीय आजीविका मिशन तथा दूसरी रोजगार परक योजनाओं में महिलाओं को ज्यादा लाभान्वित कराएं।

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