कोरोनाकाल में अब काढ़ा बनाम कैप्सूल

पाच हजार वर्ष पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के सामने आधुनिक चिकित्सा विज्ञान बड़े सवाल लेकर खड़ा हो गया है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 07:22 AM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 07:22 AM (IST)
कोरोनाकाल में अब काढ़ा बनाम कैप्सूल
कोरोनाकाल में अब काढ़ा बनाम कैप्सूल

मेरठ, जेएनएन। पाच हजार वर्ष पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के सामने आधुनिक चिकित्सा विज्ञान बड़े सवाल लेकर खड़ा हो गया है। आइएमए ने आयुष मंत्रालय को पत्र लिखकर पूछा कि आयुर्वेदिक दवाओं से कितने मंत्रियों एवं माननीयों को ठीक किया गया। उन्हें क्यों रेमिडीसीवीर और प्लाज्मा थेरेपी की शरण में आना पड़ा। इसपर आयुर्वेद के तरकश से भी कई तीर एक साथ आइएमए पर छोड़ दिए गए। मेरठ में भी आइएमए के चिकित्सकों ने बैठक की, और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की वकालत करने की सहमति बनी, लेकिन मीटिंग खत्म होते ही सभी काढ़ा पीने अपने घरों की ओर दौड़े। वो भी मनते हैं कि आयुर्वेदिक खानपान ने भारत को बचा लिया। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकात वैद्य भी हैं। उन्होंने आइएमए से पूछा कि एलोपैथ में रसायन छोड़कर प्राकृतिक रूप से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली कौन सी दवा है। आयुर्वेद तो भरा पड़ा है।

दो निशाना साधकर दिया खेल विवि

एक तीर से दो निशाना साधना खिलाड़ियों के लिए असंभव, लेकिन सियासत में सामान्य बात है। राज्य सरकार ने मेरठ जिले के ऐसे क्षेत्र में खेल विश्विद्यालय बनाने का निर्णय लिया है, जो संसदीय क्षेत्र मुजफ्फरनगर में पड़ता है। सरकार एक तीर से दो निशाना साधने में सफल हुई। पश्चिम यूपी में भरपूर खेल प्रतिभाएं हैं, जिन्हें प्रैक्टिस के लिए नई दिल्ली, लखनऊ और पटियाला जाना पड़ता था। इस क्षेत्र में कुश्ती, कबड्डी, निशानेबाजी, तीरंदाजी, जुडो, एथलेक्टिस और हाकी के एक से बढ़कर एक खिलाड़ी पैदा हुए हैं। मेरठ की ओर से कई जन प्रतिनिधि तक खेल विवि की माग करते रहे, लेकिन वो सरकार को समझाने में सफल नहीं हुए। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकात बाजपेयी और मुजफ्फरनगर के सासद व केंद्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान का प्रयास रंग लाया, और अब दोनों अपनों को तसल्ली दे सकते हैं।

यहा बे-जमीन रह जाएगा औद्योगिक ख्वाब

प्रदेश सरकार ने 2018 फरवरी में लखनऊ में इन्वेस्टर्स समिट आयोजित किया, जिसमें मेरठ में निवेश की बारिश का दावा किया गया। भारी भरकम रकम के निवेश का करार भी हो गया। हालाकि उद्यमियों ने मेरठ में जमीन खोजनी शुरू की तो पता चला कि यहा प्रशासन की झोली में कुछ भी नहीं। लंबा वक्त निकल चुका है, और प्रशासन एक इंच जमीन नहीं खोज सका। यूपीएसआइडीसी एक निष्क्रिय संस्था की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। गत दिनों सरकार ने परतापुर कताई मिल की 89 एकड़ जमीन में उद्योग बसाने का निर्णय लिया, तो उद्यमियों के चेहरे पर चमक आई। कानपुर की टीम ने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर कताई मिल के निरीक्षण की औपचारिकता पूरी की। टीम के सदस्यों में कोई उत्साह नहीं था। उधर, काजमाबाद गून में ढाई सौ एकड़ जमीन पर उद्योग बसाने के लिए किसान भी राजी नहीं हैं।

कोरोना थमने तक आप भी थमिए

कोरोना संक्रमण का पारा गिरता देखकर लोगों की सास में सास आई है। सात माह से बंधक बने शहर ने दौड़ना शुरू कर दिया है। उधर, कोरोना वायरस थकने लगा है। संक्रमण की दर और मौत की दर में लगातार गिरावट बड़ा संकेत है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की धड़कन बिगड़ी हुई है। कारण, त्योहारी सीजन शुरू होने के साथ ही भीड़ बढ़ने लगी है। वायरस के प्रति लोगों के मन में डर भी कम हो रहा है। ऐसे में जरा सी लापरवाही बीमारी के नियंत्रण का पूरा तानाबाना बिगाड़ देगी। वैक्सीन आने में देर है। उपलब्ध दवाएं सौ फीसद कारगर नहीं हैं, ऐसे में बचाव ही दवा है। सíदया शुरू होने के साथ वायरस की आक्रामकता बढ़ने की आशका है। चिकित्सक इसे खतरनाक मानकर मास्क और शारीरिक दूरी बनाने की सीख दे रहे हैं। अब भी जिले में मौतों का आकड़ा अचानक उछल जाता है।

chat bot
आपका साथी