Special Column: न रहता मोबाइल न बजती घंटी, रसोई का स्‍वाद वो भी सियासत के संग

शासन कोरोना से ज्यादा मोबाइल फोन को लेकर अलर्ट है। कदाचित मोबाइल तांक झांक की संस्कृति का जटिल वायरस माना गया है।

By Prem BhattEdited By: Publish:Mon, 25 May 2020 02:00 PM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 02:00 PM (IST)
Special Column: न रहता मोबाइल न बजती घंटी, रसोई का स्‍वाद वो भी सियासत के संग
Special Column: न रहता मोबाइल न बजती घंटी, रसोई का स्‍वाद वो भी सियासत के संग

मेरठ, [संतोष शुक्‍ल]। शासन कोरोना से ज्यादा मोबाइल फोन को लेकर अलर्ट है। कदाचित मोबाइल तांक झांक की संस्कृति का जटिल वायरस माना गया है। इसीलिए कोरोना के मरीजों के हाथ से मोबाइल वापस लेने का फरमान सुना दिया गया। यह 40 डिग्री से ज्यादा गर्मी में उबलते मरीजों के लिए जोर का झटका था। मोबाइल अपनों से बात करने, डाक्टरों एवं पैरामेडिकल स्टाफ को फोन करने और मनोरंजन का अकेला माध्यम है। किंतु शासन को अब मोबाइल में संक्रमण नजर आने लगा है। गत दिनों प्रभारी मंत्री श्रीकांत शर्मा ने भी मरीजों से फोन पर सीधा संवाद उनका हाल जाना। असल में मोबाइल से वार्ड के अंदर की अव्यवस्था बजबजा कर बाहर आ जाती है। कई आडियो-वीडियो वायरल होने से चिकित्सा बेनकाब हो गई थी, जिस पर शासन ने ब्रेक लगा दिया। जबकि मोबाइल को रोजाना सैनिटाइज किया जा सकता है। पर इरादा कुछ और था।

रसोई का स्‍वाद, सियासत के संग

प्रशासन की रसोई से उठी भ्रष्टाचार की लपकें प्रदेश तक पहुंचीं। भाजपाइयों ने ठेके के मुद्दे पर प्रशासन को घेरा। भोजन की गुणवत्ता पर सवाल किए गए। सांसद समेत सभी विधायकों के बीच प्रभारी मंत्री के सामने प्रशासन की नाकामी बयां करने में होड़ मच गई। पूरा प्रशासनिक अमला बदल देने से कम पर भाजपाई रुकने वाले नहीं थे। किंतु प्रशासन भाजपाइयों की नब्ज को बखूबी समझता है। प्रभारी मंत्री ने अधकारियों को भोजन चखने के लिए कहा था, और पहुंच गए भाजपाई। उन्हें बड़े एहतराम के साथ बुलाया गया था। स्वाद लेते ही माननीय वाह वाह कर उठे। उनके मुंह से निकली तारीफ ने अधिकारियों का मनोबल बढ़ा दिया। तीर निशाने पर जो लगा था। फिलहाल गरीब की थाली की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है। ज्यादातर भाजपाई लंबे समय से इलेक्शन मोड में हैं, इसीलिए प्रशासन को क्लीनचिट जरा जल्द दे दी गई।

बंदी का विज्ञान, जनाब भी अनजान

प्रशासन के विज्ञान के आगे कई तर्कशास्त्री चकरा गए हैं। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए सप्ताह में दो दिन पूर्ण बंदी की गई है। इससे संक्रमण की कड़ियां टूटेंगी। वायरस कोई रास्ता नहीं पाएगा। इसके पीछे का विज्ञान और गणित क्या है, इसे लेकर अधिकारियों के अपने अनोखे तर्क हैं। किंतु इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डाक्टरों को अब तक समझ में नहीं आया है कि पांच दिनों तक आबादी के बीच संक्रमित होने वाला कोरोना दो दिन की बंदी में कैसे दम तोड़ देगा। डाक्टरों ने प्रशासन के विज्ञान को समझने के लिए विषाणु विज्ञानियों से भी संपर्क साधा। इधर, बंदी से जन सुविधाओं में बड़ी बाधा जरूर महसूस होने लगी है। प्रशासन की चूक से सामुदायिक संक्रमण हो चुका है। स्वास्थ्य विज्ञान कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं रख पाया। नतीजा हुआ कि प्रशासन ने बंदी को इलाज मान लिया, और संक्रमण बना रहा।

मारा ठुमका कोरोना गया भाग मितवा

कोरोना महामारी ने दुनिया को उदासी के समंदर में डुबो दिया है। किंतु दुश्वारियों की लहरों के बीच दीवाने न सिर्फ मनोरंजन के पल खोज लेते हैं, बल्कि वो अपने फन से कोरोना मरीजों की आंखों में चमक भी जगा रहे हैं। कोरोना वार्ड में भर्ती मरीजों ने दर्द और दहशत से उबरकर जिदंगी के चंद खूबसूरत पल जुटा लिए। वो डांस और मिमिक्री के जरिए मरीजों में भरोसा जगाते हैं। एक दूसरे की वीडियो बनाकर वायरल करते हैं। न सिर्फ भरोसे का संदेश गया, बल्कि कई ठीक भी हुए। मेडिकल कालेज में एक कोरोना मरीज ने कविताओं के जरिए साहस की लौ जलाया, तो दूसरे ने योगासान और प्राणायाम सिखाकर जिंदगी पर चढ़ती डर की परछाई को खत्म किया। एक वार्ड में कोरोना मरीज फिल्मी गानों पर अनुशासन के साथ डांस करते मिले। वो दो पल के जीवन से एक उम्र चुरा गए हैं। 

chat bot
आपका साथी