स्मृति शेष: शब्दों की तपिश से पत्थरों को पिघलाने वाला फनकार

अशोक साहिल के जाने के बाद तसल्ली थी कि काव्य शिल्पकार राजेंद्र राजन अपनी गजल और गीतों की सतरंगी धमक से साहित्य को रोशन करते रहेंगे लेकिन अफसोस कि शब्दों की तपिश से पत्थरों को भी रुला देने वाला यह फनकार अपनी दिल की रफ्तार को रोककर सबको रुला गया।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 10:22 PM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 10:22 PM (IST)
स्मृति शेष: शब्दों की तपिश से पत्थरों को पिघलाने वाला फनकार
लाल किला में काव्य पाठ करते राजेंद्र राजन का फाइल फोटो

मेरठ, [राजन शर्मा]। पिछले साल अशोक साहिल और अब राजेंद्र राजन। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोरोना के क्रूर काल ने एक बार फिर साहित्य और अदब को यतीम बना दिया। अशोक साहिल के जाने के बाद इस बात की तसल्ली थी कि काव्य शिल्पकार राजेंद्र राजन अपनी गजल और गीतों की सतरंगी धमक से साहित्य को रोशन करते रहेंगे, लेकिन अफसोस कि शब्दों की तपिश से पत्थरों को भी रुला देने वाला यह फनकार अपनी दिल की रफ्तार को रोककर सबको रुला गया।

साहित्य के संसार में अपनी सोच और फिक्र की गहराई से अलग मुकाम बनाने वाला ङ्क्षहदी गीत-गजल का विशिष्ठ दीपक गुरुवार को काल के थपेड़ों में बुझ गया। राजेंद्र राजेंद्र ङ्क्षहदी कविता के उन हस्ताक्षरों में से थे जो काव्य शिल्प के बदलते आयामों में भी अपनी राह चलते रहे। उन्होंने कविता की गरिमा और माधुर्य को उस वक्त भी बरकरार रखा जब मंचों पर सस्ती तालियों के फेर में कहकहों, तुकबंदी और चुटकलेबाजी हावी हो गई थी। कह सकते हैं कि उन्होंने मंच के अनुरूप खुद को कभी नहीं ढाला। राजेंद्र राजन की सांस भले ही थम गई हो, लेकिन उनके गीतों की गुनगुनाहट करोड़ों दिलों को हमेशा धड़काती रहेगी। सजने वाली महफिलों में राजेंद्र राजन की ये पक्तियां उनकी मौजूदगी का अहसास कराती रहेंगी।

महफिल तो गैर की हो पर बात हो हमारी,

इंसानियत जहां में औकात हो हमारी।

दुनिया बनाने वाले कुछ ऐसी जिंदगी दे,

आंसू तो गैर के हों पर आंख हो हमारी।।

चुनावी माहौल को शब्दों के पैकर में ढाला

मैं लिपटकर तुम्हें स्वप्न के गांव की,

एक नदी में नहाता रहा रातभर।

राजेंद्र राजन के काव्य में संयोग और वियोग का प्रतिबिंब झलकता था, लेकिन वक्त पडऩे पर राजनीति को भी उन्होंने आड़े हाथ लिया। चुनावी सीन को वो अपनी रचना में इस तरह उकेरते थे कि-

आने वाले है शिकारी हैं मेरे गांव में,

जनता है चिंता की मारी मेेरे गांव में।

फिर वही चौराहे होंगे प्यासी आंख उठाए होंगे,

सपनों भीगी रातें होंगी, मीठी-मीठी बातें होंगी।

मालाएं पहनानी होंगी फिर ताली बजवानी होंगी,

दिन को रात कहा जाएगा दो को सात कहा जाएगा।

कवियों के उद्गार

मैंने केवल दो गीत लिखे,

एक गीत तुम्हारे पाने का,

एक गीत तुम्हारे खोने का।

प्रेम के दोनों पक्ष एक ही गीत में ढालने की क्षमता रखते थे राजन। देशभर के रसिक श्रोता गोपाल दास नीरज, किशन सरोज और भारत भूषण जी के बाद राजेंद्र राजन को आंसुओं की आवाज मानते थे। इतने संवदेनशील व्यक्ति थे कि वो चलत-फिरते गीत ही थे।

हरिओम पंवार, विख्यात कवि।

गीत भी सरल हो और व्यक्ति भी। राजेंद्र राजन इसकी जिंदा मिसाल थे। हृदय से लिखे उनके गीत रसिक श्रोताओं के हृदय पर सीधे दस्तक देते थे। राजन जी धरती से जुड़े व्यक्ति थे, लेकिन उनके गीतों की ऊंचाई आसमान छूती थी।

पदमश्री सुरेंद्र शर्मा, हास्य कवि।

राजेंद्र राजन ने कविता और गीत की शालीनता को अपना परिचय बनाया। उनके गीतों के विष और पढऩे के मखमली अंदाज ने एक नई मर्यादा को जन्म दिया। वो इंसान और दोस्त भी लाजवाब थे। हमेशा यादों में बने रहेंगे।

नवाज देवबंदी, नामचीन शायर।

मेरे आदर्श कवि राजन जी बेहद विनम्र स्वभाव के थे। मंच पर सिर्फ और सिर्फ कविता वाचन। बेहद सुरीली आवाज और बेजोड़ स्वर। कंठ में मां सरस्वती विराजती हो जैसे। सदैव मुस्कराते हुए मिलते थे।

दिनेश रघुवंशी, प्रसिद्ध कवि।

राजेंद्र राजन जी का जाना हिंदी काव्य की वाचिक परंपरा की अपूरणीय क्षति है। उन्होंने गीतों की रचना ही नहीं की, बल्कि उन्हें आत्मा के तल पर जिया भी है।

डा. सुरेश अवस्थी, व्यंग्यकार।  

chat bot
आपका साथी