मेरठ: इधर चल रही थी शहर संवारने की बैठक, उधर नाले में तलाशा जा रहा था बालक
एक शहर की दो तस्वीरें दोनों पहलू देखिए और अंदाजा लगा लीजिए की विकास की हकीकत क्या है। सोमवार को एक ओर विकास प्राधिकरण में मेरठ को स्मार्ट बनाने का खाका खींचा जा रहा था वहीं दूसरी ओर नाले में गिरे मासूम की तलाश जारी थी।
मेरठ, (जय प्रकाश पांडेय)। एक शहर की दो तस्वीरें, सिक्के के दो पहलुओं की तरह, दोनों पहलू देखिए और अंदाजा लगा लीजिए की विकास की हकीकत क्या है। सोमवार को एक ओर विकास प्राधिकरण के सभागार में मेरठ शहर को सुंदर और स्मार्ट बनाने का खाका खींचा जा रहा था, वहीं दूसरी ओर कमेला रोड पर ओडियन नाले में गिरे दस बरस के अर्श की तलाश जारी थी। एक ओर विकास प्राधिकरण के सभागार में, हम यह कर सकते हैं-हम वह कर सकते हैं, जैसी लाइनें दोहराई जा रही थीं, वहीं दूसरी ओर कूड़े से अटे-पटे नाले में गिरे एक बालक को सलामत बाहर निकाल लेने के लिए जिद्दोजहद जारी थी। अंतत:, वही हुआ जिसकी आशंका थी। कूड़ा, गोबर और गंदगी से पट चुके अजगर समान ओडियन नाले से दस वर्षीय बालक को सही सलामत बाहर निकालने के प्रयास धराशाई हो गए, मंगलवार को अजगर ओडियन ने उसकी लाश ही उगली।
अर्श की मौत ने एक बार फिर पूरे नगर विकास के ढांचे को कठघरे में खड़ा कर दिया है। यह शर्मनाक है कि आज भी क्रांतिधरा को लेकर जब भी चर्चा होती है, वही बिजली, पानी, कूड़ा, गोबर, जलनिकासी जैसी निहायत बेसिक सुविधाओं की उपलब्धता-अनुपलब्धता पर आकर ही अटक जाती है। ..और ऊपर से बुरा हाल यह कि इन्हें भी ठीक-ठाक रखने की हमारे पास कोई योजना नहीं। किसी शहर के लिए इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण भला और क्या होगा कि उसके लोग नालों में गिर-गिरकर मरते रहें। अव्वल तो शहर के भीतर दस-दस फीट गहरे और दस-बारह फीट चौड़े खुले नालों का होना ही अपने आप में समाज के प्रति अपराध है, अब यदि ऐसे विशाल नालों की साफ-सफाई और उन्हें कवर करने का कोई इंतजाम भी न हो तो स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
यह नाले बनाए गए थे वर्षा जलनिकासी के लिए, लेकिन आज इनमें मल-जल, गोबर और कूड़ा बहाया जा रहा है। बुरी तरह पट चुके ये नाले वर्षा होने पर उफन जाते हैं और भयंकर रूप धारण कर दुर्घटना का कारण बन जाते हैं।
गुजरे दिनों में इन नालों को ढकने का एक प्लान बना था। योजना यह भी थी कि इन नालों को ढकने में जो खर्च आएगा, उतना खर्च तो इन्हें ढकने के बाद प्राप्त होने वाली जमीन को पाìकग, वेंडिंग जोन में तब्दील कर हासिल किया जा सकता है। हालांकि क्या हुआ उस प्लान का, इसका जवाब मानों टेनिस की गेंद हो गई ..कभी इस पाले-कभी उस पाले।
दिल पर हाथ रखकर सोचिए उस परिवार के बारे में, जिसका दस बरस का बालक नाले में डूब गया हो। नाले के किनारे खड़े होकर उस बालक के परिवार वाले भरी आंखों से टकटकी लगाए नाले को यूं देख रहे थे मानों अभी वह बालक नाले से बाहर आ जाएगा। अफसोस, ऐसा नहीं हुआ। अर्श डूब गया, और हमारी व्यवस्था फर्श में गर्क हो गई।