मेरठ: कसेरूखेड़ा नाले की गंदगी और दुर्गंद्ध को कम करेगी बायोरेमेडिएशन तकनीक, ट्रायल पर परखे जाएंगे परिणाम
डिफेंस कालोनी और आसपास के क्षेत्र में व्याप्त कसेरूखेड़ा नाले की दुर्गंध व गंदगी महीनेभर में कम हो जाएगी। इसके साथ ही नाले का गंदा पानी साफ होकर काली नदी में जाने लगेगा। इसके लिए नगर निगम ने नोएडा की लेयर एंड इनवारो आर्गेनिक कंपनी से अनुबंध किया है।
जागरण संवाददाता, मेरठ। सबकुछ ठीकठाक रहा तो डिफेंस कालोनी और आसपास के क्षेत्र में व्याप्त कसेरूखेड़ा नाले की दुर्गंध व गंदगी महीनेभर में कम हो जाएगी। इसके साथ ही नाले का गंदा पानी साफ होकर काली नदी में जाने लगेगा। इसके लिए नगर निगम ने नोएडा की लेयर एंड इनवारो आर्गेनिक कंपनी से अनुबंध किया है। एक माह तक कंपनी नाले के गंदे पानी के सीओडी, बीओडी लेवल को सामान्य स्थिति में लाने का काम करेगी। दुर्गंध व गंदगी को खत्म करने का काम करेगी।
बायोरेमेडिएशन तकनीक के अंतर्गत कसेरूखेड़ा नाले पर रक्षापुरम एसटीपी के पास एक डोजिंग प्लांट लगाया है। जिसमें 2000 लीटर पानी क्षमता की टंकी है और नाले में बायोकल्चर डालने के लिए पाइप लाइन डाली गई है। 2000 लीटर पानी में प्रतिदिन 10 लीटर बायोकल्चर या ड्रेन क्लीनर मिलाया जाएगा। चूंकि नाले का डिस्चार्ज 10 एमएलडी है। एक लीटर ड्रेन क्लीनर एक एमएलडी गंदे पानी को शुरू करने के लिए पर्याप्त है। प्लांट बिजली से संचालित होगा। संचालन व देखरेख के लिए कंपनी ने दो कर्मचारी तैनात किए हैं। इस प्रक्रिया में प्रतिमाह तीन लाख रुपये खर्च होंगे। परिणाम अपेक्षित होने पर अनुबंध आगे बढ़ाया जाएगा। कंपनी के संचालक अनिल कपूर ने बताया कि ड्रेन क्लीनर नाले के पानी की दुर्गंध खत्म करेगा। नाले की गंदगी में इससे बैक्टीरिया पैदा होंगे, जो गंदगी को नाले के अंदर ही खत्म कर देंगे। नाले में बहकर आने वाले प्लास्टिक व कचरे की गंदगी को नदी में जाने से रोकने के लिए डोजिंग प्लांट के पास नाले में लोहे का जाल लगाया है।
नाले के गंदे पानी में कैंसर पैदा करने वाले पार्टिकल: कसेरूखेड़ा नाले में आसपास बसी बहुत सी कालोनियों का सीवर सीधे बहाया जा रहा है। दौराला की तरफ की कई फैक्टियों का गंदा पानी भी इसी नाले में आ रहा है। जिसके चलते नाले के गंदे पानी की बीओडी, सीओडी स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। सीओडी लेवल 350 मिलीग्राम प्रति लीटर, बीओडी लेवल 80 मिलीग्राम प्रति लीटर, टीएसएस ( टोटल सस्पेंडेड सालिड )1250 मिलीग्राम प्रति लीटर है। यह जांच में सामने आया है, जबकि सीओडी 100 मिलीग्राम प्रति लीटर, बीओडी 30 मिलीग्राम प्रति लीटर और टीएसएस 100 मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। यही नहीं, जांच में नाले के पानी में कैंसर उत्पन्न करने वाले पार्टिकल भी पाए गए हैं। यह रिपोर्ट आने के बाद एनजीटी ने सख्ती दिखायी है।
इसलिए अपना रहे बायोरेमेडिएशन तकनीक
गंगा और उसकी सहायक नदियों में जिन नालों का गंदा पानी गिरता है। एनजीटी ने उन नालों पर पांच लाख रुपये प्रतिमाह की पेनाल्टी लगा दी है। जिससे बचने के लिए केंद्र सरकार ने सभी नगर निकायों को ऐसे नालों पर बायो रेमेडिएशन तकनीक अपनाने के निर्देश दिए हैं। गाजियाबाद और आगरा में यही कंपनी इस तकनीक का प्रयोग कर नाले के पानी का शुद्धीकरण कर रही है।
एसटीपी व बायोरेमेडिएशन में कौन है कारगर
कंपनी संचालक अनिल कपूर का दावा है कि बायोरेमेडिएशन तकनीक एसटीपी का विकल्प है। एसटीपी से कहीं अधिक कारगर है, क्योंकि इसमें खर्चा कम है और जैविक विधि से नाले के पानी का शुद्धिकरण होता है। 10 एमएलडी डिस्चार्ज को ट्रीट करने के एसटीपी लगाने पर आठ से 10 करोड़ रुपये लगेंगे। एसटीपी संचालन व मेंटीनेंस पर भी काफी खर्च आता है, जबकि बायोरेमेडिएशन तकनीक पर प्रतिमाह तीन लाख रुपये का खर्च है। इसे डिस्चार्ज के अनुसार ड्रेन क्लीनर बढ़ाया व घटाया जा सकता है। यह जैविक विधि है।