मेरठ मेडिकल कालेज : प्रशासनिक अधिकारी का फोन आने पर ही कर रहे कोविड मरीज को भर्ती
मेडिकल अस्पताल मेरठ में मरीज को भर्ती कराना भी किसी जंग जीतने से कम नहीं रहा। दूर-दूर से मरीज को भर्ती कराने की आस में मेडिकल पहुंच रहे स्वजनों को पहले नो एडमिशन का राग ही सुनाया जाता है। ऐसे में कोरोना मरीजों के लिए दिक्कतें हो रही हैं।
मेरठ, जेएनएन। मेरठ में मेडिकल अस्पताल में मरीज को भर्ती कराना भी किसी जंग जीतने से कम नहीं रहा। दूर-दूर से मरीज को भर्ती कराने की आस में मेडिकल पहुंच रहे स्वजनों को पहले नो एडमिशन का राग ही सुनाया जाता है। बाद में जब मरीज के स्वजन किसी प्रशासनिक अधिकारी से बात कराते हैं तो उस मरीज को कोविड वार्ड में भर्ती कर लिया जाता है। मोदीनगर से आए जगदीश शर्मा को पहले 35 फीसद आक्सीजन सैचुरेशन बताकर भर्ती से मना किया गया और फिर प्रशासनिक अधिकारी के कहने पर भर्ती किया। सरधना की प्रकाशी को घंटों अस्पताल के बाहर इंतजार के बाद डीएम के नंबर पर फोन करने के बाद भर्ती कराया गया।
किसी तरह करा सके भर्ती
सरधना के जसवीर अपनी माता प्रकाशी को कोविड वार्ड में भर्ती कराने के लिए सुबह से ही मेडिकल कालेज के चक्कर काट रहे थे। दोपहर तक भी भर्ती न होने पर माता को बाहर ही रहना पड़ा। दैनिक जागरण टीम ने जसवीर को डीएम का नंबर मुहैया कराया। डीएम से बात करने के बाद प्रकाशी को मेडिकल के कोविड वार्ड में भर्ती किया गया। उन्हें प्यारेलाल से न बेड न आक्सीजन बताकर मेडिकल के लिए रेफर किया गया था। वहीं, गढ़ रोड के रूपचंद ने सचिन को कोविड वार्ड में रविवार शाम को भर्ती कराया था, लेकिन उन्हें सोमवार दोपहर बाद तक भी सचिन की कोई जानकारी नहीं मिल पाने से चिंतित थे। कंट्रोल रूम में फोन करते रहे पर कई बार फोन नहीं उठा। उठा तो भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी।
कंट्रोल रूम की सूचना पर भरोसा करें भी तो कैसे
मेडिकल कालेज में कोविड कंट्रोल रूम के नंबरों पर कई बार फोन करने के बाद भी उठते हैं। उस पर भी सूचना सटीक नहीं मिल पाती है। कोविड प्रभारी की ही मानें तो कंट्रोल रूम के पास मरीज की तीन-चार घंटे पुरानी सूचना होती है।
दो बार दी जाती है जानकारी
मेडिकल की सूचना खिड़की से मरीज की स्थिति की जानकारी दो बार दी जाती है। एक बार सुबह 11 से दोपहर एक बजे तक और दूसरी बार शाम पांच से सात बजे तक का समय है। वहीं, मरीज के खाने-पीने का सामान दिन में तीन बार सूचना खिड़की के जरिए ही भेजा जाता है। सुबह सात से नौ, दोपहर साढ़े 12 से ढाई और शाम को छह से आठ बजे तक सामान दे सकते हैं। हालांकि वह सामान भी मरीज तक पहुंचा या नहीं, इसकी जानकारी नहीं मिल पाती है।