मेरठ : आज भी कारगर है छत्रपति शिवाजी की युद्धनीति, वेबिनार में विशेषज्ञों ने बताया दूरदर्शी
जूम एप पर दो दिवसीय वेबिनार में शिवाजी की युद्ध कौशल रणनीति पर चर्चा हुई। दूसरे दिन दून विश्वविद्यालय देहरादून के प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि शिवाजी महिलाओं के सम्मान को सर्वोपरि मानते थे। सती प्रथा का उन्होंने विरोध किया। वेबिनार में कई विशेषज्ञ शामिल रहे।
मेरठ, जागरण संवाददाता। भारतीय इतिहास में छत्रपति शिवाजी ने गुरिल्ला वार के रूप में एक नई युद्ध नीति बनाई, पहली बार नौसेना का गठन कर मराठा साम्राज्य को सुरक्षित किया। शिवाजी कहते थे युद्ध या शांति समय की परिस्थितियों को देखकर करना चाहिए। उनकी युद्धनीति आज भी प्रांसगिक है। रविवार को लद्दाख और जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की ओर से आयोजित वेबिनार में वक्ताओं ने यह बात कही।
दो दिवसीय वेबिनार में शिवाजी की युद्ध कौशल रणनीति पर चर्चा हुई। दूसरे दिन दून विश्वविद्यालय देहरादून के प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि शिवाजी महिलाओं के सम्मान को सर्वोपरि मानते थे। सती प्रथा का उन्होंने विरोध किया। शिवाजी ने जिस युद्धकला का विकास सत्रहवीं शताब्दी में किया। उसकी प्रासंगिकता आज भी है। उन्होंने जिस नौ सेना की परिकल्पना की थी। वर्तमान समय में नौ सेना हमारी सुरक्षा का आधार है।
प्रो. प्रियनाथ घोष ने शिवाजी की सोच को दूरदर्शी बताया। उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के सदस्य प्रो. हरिबंश दीक्षित ने कहा कि इतिहास हमेशा उनका सम्मान और अनुकरण करता है। जो युद्ध मे विजय प्राप्त करते है। युद्ध में नैतिकता का कोई स्थान नहीं होता है। एक बार युद्ध शुरू हो जाए तो पूरी क्षमता और पूरे संसाधन से शत्रु को पराजित कर विजय हासिल करना चाहिए।
यही शिवाजी की युद्व पद्धति सीख देती है। गौतम बुद्ध विश्विद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति प्रो.भगवती प्रसाद शर्मा ने कहा कि शिवाजी का मानना है कि समय आप के पक्ष में हो तो अपने शत्रु का सफाया कर अमन शांति बनाने का प्रयास करना चाहिए। धन्यवाद ज्ञापन डा. हरिशंकर राय ने किया। संयोजक डा. संजय कुमार ने कहा कि जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र मेरठ शिवाजी महाराज की युद्धनीति पर एक पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा। आयोजन सचिव में डा. भूपेंद्र सिंह, डा. हरिशंकर राय, डा. अनुराग जैसवाल, अभय श्रीवास्तव का योगदान रहा।