चायवाला बन सकते हैं पीएम तो चायवाली गांव का प्रधान क्‍यों नहीं? प्रधानमंत्री से 'प्रभावित' होकर लड़ रही चुनाव

उत्‍तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक ऐसी उम्‍मीदवार हैं जो चाय बेचती हैं और प्रधान पद के लिए अपने गांव से चुनाव लड़ रही हैं। वे कहती हैं कि जब एक चायवाला देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो वह गांव का प्रधान क्‍यों नहीं बन सकती?

By Himanshu DwivediEdited By: Publish:Sun, 11 Apr 2021 04:27 PM (IST) Updated:Mon, 12 Apr 2021 09:51 AM (IST)
चायवाला बन सकते हैं पीएम तो चायवाली गांव का प्रधान क्‍यों नहीं? प्रधानमंत्री से 'प्रभावित' होकर लड़ रही चुनाव
पंचायत चुनाव में प्रधान पद की उम्‍मीदवार मीनाक्षी।

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। त्रिस्‍तरी पंचायत चुनाव की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। उम्‍मीदवारों को चुनाव चिंह भी दिया जा रहा है। सभी दावेदार पंचायत चुनाव को लेकर जोर-आजमाइश कर रहे हैं। वहीं उत्‍तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक ऐसी उम्‍मीदवार हैं जो चाय बेचती हैं और प्रधान पद के लिए अपने गांव से चुनाव लड़ रही हैं। उनका कहना है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक जीवन से प्रभावित होकर चुनाव में खड़ी हुईं हैं। वे कहती हैं कि जब एक चायवाला देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो वह गांव का प्रधान क्‍यों नहीं बन सकती?

मुजफ्फरनगर के भोपा थाना क्षेत्र के गांव चोरवाल गांव में मीनाक्षी देवी अपने पति ज्ञान सिंह और तीन बच्‍चों के साथ रहती हैं।ज्ञान सिंह मजदूरी का काम करते हैं। शनिवार को मीनाक्षी देवी ने नांमाकन पत्र भर दिया। उनके पति का कहना है कि गांव में उनके सर्पोटर है, जिस कारण से वे चुनाव लड़ रही हैं। मीनाक्षी बताती हैं कि वे तीन साल से मोरना ब्‍लाक में चाय बेच रही हैं और इसी से अपना घर खर्च चलाती हैं।

ग्रेजुएट हैं मीनाक्षी देवी : उन्‍होंने बताया कि वे मेरठ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन भी किया है। जिसके बाद उनकी शादी हो गई और वे इस गांव में अपने पति के साथ रहने लगी। कुछ साल पहले ही उनकी वोटर आईडी कार्ड बना है। हालाकि इससे पहले उन्‍होंने कभी भी किसी तरह का चुनाव नहीं लड़ा है।

7000 हजार वोटरों वाला गांव: भोपा थाना क्षेत्र के इस गांव में लगभग 7000 वोटर हैं। आरक्षण में हुए बदलाव की वजह से इस गांव में इस बार एससी सीट आई है। जिस कारण से कई दावेदारों के सपने टूट भी गए हैं। वहीं कई लोगों को पहली बार चुनाव लड़ने का मौका भी मिला है। शनिवार तक हुए नामांकन में इस गांव में कई लोगों के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है। ज्ञान सिंह का दावा है कि गांव वालों के कहने पर ही उन्होंने अपनी पत्‍नी को चुनाव में उतारा है।

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