कोरोना से खूब लड़ी थीं प्रसूताएं, अंतत: जीती ममता

वो एक डरावना दौर था। मेडिकल कालेज के कोविड वार्ड में स्ट्रेचर पर गंभीर मरीजों की कतार लगी रहती थी।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 23 Mar 2021 04:10 AM (IST) Updated:Tue, 23 Mar 2021 04:10 AM (IST)
कोरोना से खूब लड़ी थीं प्रसूताएं, अंतत: जीती ममता
कोरोना से खूब लड़ी थीं प्रसूताएं, अंतत: जीती ममता

मेरठ, जेएनएन। वो एक डरावना दौर था। मेडिकल कालेज के कोविड वार्ड में स्ट्रेचर पर गंभीर मरीजों की कतार लगी रहती थी। वहीं, दूसरे गेट से दम तोड़ चुके मरीजों को बाहर निकाला जा रहा था। ऐसे भयावह माहौल में महिला डाक्टरों की टीम ने अदम्य साहस दिखाते हुए गर्भवती महिलाओं का न सिर्फ इलाज किया, बल्कि उनका सुरक्षित प्रसव भी कराया गया। माताएं अपने शिशुओं से कई दिन दूर रहीं। कोविड वार्ड आज भी उनकी आंखों के आगे उभर आता है। इनमें से ज्यादातर महिलाएं स्वस्थ हैं और उनके बच्चे करीब छह माह से ज्यादा उम्र के हो गए हैं।

मेडिकल कालेज की प्रोफेसर एवं सीएमएस डा.रचना चौधरी कहती हैं वायरस ने हर उम्र वर्ग पर हमला बोला, गर्भवती महिलाएं ज्यादा मुश्किल दौर से गुजरीं। मेडिकल की महिला डाक्टरों ने टीम ने बहादुरी के साथ न सिर्फ माताओं का इलाज किया, बल्कि उनके शिशुओं की भी पूरी देखभाल की गई। मई से गर्भवती महिलाओं की भर्ती शुरू हो गई। जून में कोरोना का प्रकोप सर्वाधिक रहा, जब बड़ी संख्या में मरीजों की मौत हो गई। संशय और खौफ के बीच महिला रोग विशेषज्ञों की टीम ने गर्भवती महिलाओं का इलाज अपने हाथ में लिया। 350 गर्भवती महिलाएं हुई भर्ती

कोरोनाकाल में गर्भवती 350 महिलाओं का इलाज किया गया। 100 मामलों में आपरेशन से डिलीवरी हुई, जबकि 40 प्रसव नार्मल हुए। छह महिलाएं गायनी की मरीज थीं। इस बीच, अस्पताल में भर्ती होने के बाद कोरोना से संक्रमित होने वालों की संख्या बढ़ती गई। 96 महिलाएं प्रसव के बाद संक्रमित हुई और मेडिकल के कोरोना वार्ड में भर्ती की गई। तत्कालीन प्राचार्य डा. आरसी गुप्ता बताते हैं कि प्रदेश के अन्य राजकीय मेडिकल कालेजों की तुलना में मेरठ में कोरोना पीड़ित प्रसूताओं की रिपोर्ट बेहतर रही। कोविड वार्ड प्रभारी डा. सुधीर राठी ने बताया कि आठ कंसल्टेंट, चार सीनियर रेजीडेंट और 24 जूनियर डाक्टरों ने दिनरात मेहनत कर प्रसूताओं और शिशुओं के जानमाल की रक्षा की। भूलते नहीं वो दस दिन...

शारदा रोड निवासी छवि राठी माहेश्वरी बताती हैं कि वो अगस्त में कोरोना पाजिटिव हुई। कोरोना वार्ड में भर्ती होने के बाद दस दिन नवजात बच्ची से दूर रहना पड़ा, जो आज भी अखरता है, लेकिन डाक्टरों की मेहनत और घर वालों के सहयोग से वो स्वस्थ हो गई। बच्ची गौरांगी माहेश्वरी घरवालों की दुलारी बनी हुई है।

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