Mahendra Singh Tikait Death Anniversary: किसानों के जेहन में जिंदा है बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की 33 साल पूर्व की हुंकार
भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जीवन सदा सर्वदा किसान और किसानी के लिए समर्पित रहा। अनेक आंदोलन उनकी जीवनगाथा के गवाह बने। दिल्ली के वोट क्लब पर 33 साल पूर्व बाबा की बुलंद आवाज किसानों के जेहन में आज भी जिंदा है।
[संजीव तोमर] मुजफ्फरनगर। भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जीवन सदा सर्वदा किसान और किसानी के लिए समर्पित रहा। अनेक आंदोलन उनकी जीवनगाथा के गवाह बने। दिल्ली के वोट क्लब पर 33 साल पूर्व बाबा की बुलंद आवाज किसानों के जेहन में आज भी जिंदा है।
गांवों में बिजली न मिलने से किसानों की परेशानी देख चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने 27 जनवरी 1987 को करमूखेड़ी बिजलीघर को घेर लिया था। आंदोलन के दौरान किसान जयपाल और अकबर अली की पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई थी। इस आंदोलन के बाद चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का कद काफी बढ़ गया। वहीं चौधरी चरण सिंह के देहांत के बाद किसान दुखी थी और उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में करना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन सरकार ने अनुमति नहीं दी थी। तब बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसान दिल्ली कूच कर गए थे। सरकार को किसानों की बात माननी पड़ी, जिसके चलते दिल्ली के किसान घाट पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का अंतिम संस्कार किया गया।
मेरठ से दिल्ली तक भरी हुंकार
27 जनवरी 1988 को मेरठ कमिश्नरी पर महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के साथ डेरा डाल दिया था। वहीं पर किसानों ने खाने के लिए भट्टियां सुलगा दीं। 35 सूत्रीय मांगों को लेकर यह आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से 24 दिन चला। बाद में बाबा ने ऐलान किया कि अब धरना दिल्ली में होगा। 25 अक्टूबर 1988 को बाबा टिकैत के नेतृत्व में बड़ी संख्या में किसान दिल्ली के वोट क्लब पर पहुंच गए। तब बाबा ने कहा था खबरदार इंडिया वालों, दिल्ली में भारत आ गया है। सात दिन चले इस धरने के बाद राजीव गांधी सरकारी ने उनकी मांगें मान ली थीं। भाकियू प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक बताते हैं कि बाबा की हुंकार ने कई बार सरकारों को हिलाया। बाबा कहते थे कि आपसी द्वंद्व, विरोध आदि को भूलकर अपने वजूद की लड़ाई का भार अपने कंधों पर उठाओ। वहीं बुजुर्ग मेहर सिंह बताते हैं कि चौधरी महेंद्र सिंह जो कहते थे, करके दिखाते थे। उन्होंने किसानों को लड़ना सिखाया। वोट क्लब पर उनकी हुंकार आज भी कानों में गूंजती है।
आठ साल की उम्र में बने खाप चौधरी
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के पिता चौधरी चौहल सिंह बालियान खाप के चौधरी थे। पिता की मृत्यु के समय बाबा महेंद्र की उम्र महज आठ वर्ष थी। इतनी छोटी सी उम्र में उन्हें बालियान खाप की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। त्वरित निर्णय लेने की क्षमता बाबा में युवावस्था से ही थी। उन्होंने वर्ष 1950, 1952, 1956, 1963 में बड़ी सर्वखाप पंचायतें बुलाईं और दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, नशाखोरी, भ्रूण हत्या, दिखावे-आडंबर आदि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की।