Kargil War Story: बड़े गर्व से मुनेश ने कायम रखा देश व पिता का यश, पढ़िए कारगिल युद्ध में शहीद यशवीर की कहानी
कारगिल में शहीद हुए हवलदार मेजर यशवीर सिंह तोमर की पत्नी ने लाकडाउन में की छोटे बेटे की भी शादी कर दी। आज इनका परिवार एक पेट्रोल पंप के सहारे जी रहा है।
अमित तिवारी, मेरठ। कारगिल के ऑपरेशन विजय में शहीद हुए वीर चक्र हवलदार मेजर यशवीर सिंह तोमर की पत्नी वीरनारी मुनेश गम को पीछे छोड़ पति की शहादत के गौरव के साथ जीवन में आगे बढ़ीं। ससुराल की छत्रछाया में दोनों बेटों को 12वीं तक पढ़ाने के बाद आत्मविश्वास जागा तो उसके आगे का सफर उन्होंने अकेले ही शुरू किया। पति संग बनाई परिवार की योजनाओं को एक-एक कर पूरा करती रहीं। लॉकडाउन में छह मई को छोटे बेटे की भी शादी करने के बाद अब अपना परिवार पूरा कर लिया है। शादी व खुशी के मौकों पर परिवार में पति और पिता की कमी ने आंखें नम जरूर की, लेकिन सभी एक साथ हिम्मत बांधकर आगे बढ़ते गए।
कुछ पूरे हुए, कुछ अधूरे रह गए
मुनेश के अनुसार शहीद हवलदार मेजर यशवीर सिंह को सेना से बहुत लगाव था। वह अक्सर कहा करते थे कि सेना में ड्यूटी करते हुए दोनों बेटों को फौज में भर्ती कराने के बाद ही निकलेंगे। रोहटा रोड पर ही जमीन लेकर मकान बनाने की योजना बनाई थी। शहादत के बाद मिले पेट्रोल पंप को शुरू में बड़े बेटे उदय सिंह ने संभाला। छोटे बेटे पंकज तोमर ने जब सेना में जाने का मन बनाया तो उनकी उम्र छह महीने अधिक हो चुकी थी। मुनेश ने शहीद की इच्छा पूरी करने के लिए रोहटा रोड फाजलपुर में मकान तो बना लिया पर बेटों को फौज का हिस्सा न बना पाने का दुख है। उनकी योजना भी यही थी कि बेटों के फौज में भर्ती होने के बाद वह भी उनके साथ-साथ रहा करेंगी और सेवानिवृत्ति के बाद अपना मकान बनाएंगी।
मां ने नहीं होने दी कोई कमी
मुनेश के छोटे बेटे पंकज तोमर के अनुसार मां ने कभी कोई कमी नहीं होने दी इसलिए छोटी उम्र में अधिक एहसास नहीं हुआ। बड़े होने पर पिता की शहादत का मोल दूसरों से सुना तब एहसास हुआ। जब मन बनाया तो चूक हो चुकी थी, जिसका दुख हमेशा रहेगा। खेल कोटे से भी शामिल होने के लिए पंकज के पास स्कूल नेशनल में 100 मीटर और फुटबाल नेशनल का पदक व सर्टिफिकेट था।
हरियाणा के झज्जर जिले से अंडर-15, अंडर-17 और अंडर-19 क्रिकेट खेला। कंधे में परेशानी हुई तो क्रिकेट भी छूट गया। फिर बड़े भाई के साथ पेट्रोल पंप और तीन साल पहले गैस एजेंसी का काम शुरू किया।
दुश्मन बंकर पर बरसाए थे गोले
12 जून 1999 की रात करीब ढाई बजे शून्य डिग्री तापमान में शहीद यशवीर सिंह 90 जवानों की अगुवाई करते हुए 16 हजार फुट ऊंची चोटी पर लगातार 48 घंटों से चढ़ाई कर रहे थे। चोटी पर बने बंकरों में छिपे दुश्मन पर जवानों की गोली का असर न होता देख उन्होंने सभी को फायरिंग बंद करने को कहा। सभी से हथगोले एकत्र किए। बंकरों के निकट जाकर बंकरों पर गोले फेंकने शुरू कर दिए। गोलों के साथ ही दुश्मन भी फटते गए और चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। उसी दौरान दूसरी चोटी के बंकर से दुश्मन ने तीन गोलियां दाग दी। अधिक रक्त बह जाने से वह शहीद हो गए। राष्ट्रपति केआर नारायणन ने शहीद हवलदार मेजर यशवीर सिंह को मरणोपरांत वीर चक्र से अलंकृत किया।
बस एक ही कमी रह गई
अब दादी बन चुकी मुनेश के मन में अब एक ही कमी खलती है। करगिल शहीद परिवारों को जो पेट्रोल पंप मिले उसकी जमीन तेल कंपनियों के ही नाम है। मुनेश कहती हैं कि यदि भविष्य में वह नहीं रहती हैं और परिस्थितियां बदलने पर बेटे उस जमीन पर कुछ अपना काम करना चाहें तो उन्हें परेशानी हो सकती है। इसकी जानकारी सभी को बाद में मिली। अब जो भी शहीद होते हैं मुनेश उनकी वीर नारियों को यह जानकारी भी साझा करती हैं।