Kargil Vijay Diwas: यह देश है वीर जवानों का... सपूतों की शहादत को नहीं भूलेगा मेरठ शहर

26 जुलाई 1999 से कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर यह लड़ाई लड़ी गई। कारगिल की यह लड़ाई 20 मई 1999 को शुरू हुई तो मेरठ और आसपास के जवान भी तिरंगे की खातिर अपने प्राणों की आहुति देने में आगे रहे।

By Prem Dutt BhattEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 07:00 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 07:00 AM (IST)
Kargil Vijay Diwas: यह देश है वीर जवानों का... सपूतों की शहादत को नहीं भूलेगा मेरठ शहर
Kargil Vijay Diwas कारगिल युद्ध में अग्रिम पंक्ति में रहे मेरठ के जांबाज।

मेरठ, जागरण संवाददाता। Kargil Vijay Diwas 26 जुलाई की तारीख इतिहास के पन्नों में हमेशा- हमेशा के लिए दर्ज है। यह वही तारीख है जो भारतीय सेना की आन- बान- शान को बताती है। कारगिल विजय दिवस उन वीर शहीदों को याद करते हुए नमन करने का दिन है, जिन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे खदेड़ दिया। इस विजय दिवस के पीछे मेरठ के कई शहीदों की शहादत भी है। जिन्हें यह शहर हमेशा याद रखेगा। शहर में जगह- जगह लगी वीर शहीदों की प्रतिमाएं आज भी नई पीढ़ी को भारतीय सेना के अदम्य साहस की प्रेरणा देती हैं। कारगिल युद्ध में अग्रिम पंक्ति में रहे थे मेरठ के जांबाज।

20 मई 1999 कारगिल

26 जुलाई 1999 से कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर यह लड़ाई लड़ी गई। कारगिल की यह लड़ाई 20 मई 1999 को शुरू हुई तो मेरठ और आसपास के जवान भी तिरंगे की खातिर अपने प्राणों की आहुति देने में आगे रहे। रिटायर्ड मेजर राजपाल सिंह बताते हैं कि जब मेरठ छावनी से सेना कारगिल के लिए निकली तो पुष्पवर्षा भी हुई। छावनी की सड़कों पर लोग तिरंगा लेकर खड़े थे। एक तरफ जहां सैनिक कारगिल की दुर्गम पहाडिय़ों पर दुश्मनों को धाराशाई कर रहे थे। तो उन सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए सामान्य नागरिक भी पीछे नहीं रहे। युद्ध के समय हर किसी की नजर टीवी और समाचारपत्रों पर रहती थी।

मेजर तलवार ने फहराया था तिरंगा

मेजर मनोज तलवार ने 11 जून 1999 को 19 हजार फीट ऊंची चोटी टूरटोक लद्दाख में गए थे। एक तरफ पाक सेना गोले बरसा रही थी। जिसकी परवाह न करते हुए मेजर आगे बढ़ते रहे और चोटी पर तिरंगा फहराते हुए शहीद हुए थे। मेजर तलवार का पार्थिव शरीर जब तिरंगे में लिपटा हुआ मेरठ उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ा था। मेजर तलवार की कमिश्नर आवास के पास प्रतिमा लगी है। जो उधर से गुजरने वाले लोगों उनके बलिदान की कहानी बताती है।

17 को धूल में मिलाकर शहीद हुए थे जांबाज योगेंद्र

कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर जांबाज योगेंद्र ने 17 पाकिस्तानी दुश्मनों को खत्म करते हुए खुद शहीद हुए थे। हस्तिनापुर के इस वीर सपूत के बलिदान पर भारतीय सेना ही नहीं पूरे देश को गर्व है। हस्तिनापुर के पाली गांव में जांबाज सिपाही योगेंद्र 18 साल की आयु में सेना में भर्ती हुए थे। ग्रेनेड बटालियन के साथ उन्होंने कारगिल में अपने अदम्य साहस को दिखाया था।

इनकी शहादत को नहीं भूलेंगे हम

कारगिल की लड़ाई में मेरठ के कई सपूतों ने अपने साहस को दिखाते हुए शहीद हुए थे। इसमें सबसे पहले 13 जून 1999 को मेजर मनोज तलवार और यशवीर सिंह शहीद हुए थे। तीन जुलाई को नायक जुबैर अहमद शहीद हुए। 28 जून को लांस नायक सत्यपाल सिंह की शहादत हुई। पांच जुलाइ को ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव शहीद हुए थे। तिरंगे लिपटकर शहीदों का पार्थिव शरीर जब शहर में आया था तो जनसैलाब उमड़ गया था।

कारगिल में पीछे नहीं रही थी मेरठ छावनी

कारगिल वार में मेरठ छावनी पीछे नहीं रही। यहां से सेना की दो रेजीमेंट कारगिल हिल पर भेजी गई थी। मेजर राजपाल बताते हैं कि 18 गढ़वाल राइफल्स को कारगिल के द्रास सेक्टर में भेजा गया था। दुर्गम पहाडिय़ों पर गढ़वाल ने दुश्मनों पर कहर बरपाया और द्रास की चोटियों पर कब्जा किया। इसके अलावा मेरठ छावनी से 197 कारगिल रेजीमेंट को भेजा गया। इस रेजीमेंट ने ताबड़तोड़ गोले बरसाकर दुश्मन को खत्म कर दिया। रेजीमेंट की वीरता को देखते हुए वर्ष 2005 में रेजीमेंट को कारगिल टाइटल मिला।

chat bot
आपका साथी