Kali Nadi Campaign Meerut: हरी चुनरिया ओढ़कर निकलेगी काली नदी, दोनों किनारों की 200 हेक्टेयर भूमि पर होगा वनीकरण

यदि वर्तमान की बात करें तो मेरठ में काली नदी की दुरावस्था है। इसमें पानी नाममात्र नहीं। गंदगी अटी पड़ी है। घास-फूस झाडिय़ां उग आई हैं। बेशक यह बरसाती नदी है इसकी हालत नालों से भी बदतर है। मुख्य वजह इस क्षेत्र में जलस्तर की काफी नीचे चले जाना है।

By Prem Dutt BhattEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 10:00 AM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 10:00 AM (IST)
Kali Nadi Campaign Meerut: हरी चुनरिया ओढ़कर निकलेगी काली नदी, दोनों किनारों की 200 हेक्टेयर भूमि पर होगा वनीकरण
काली नदी के पास एक हेक्टेयर में रोपे जाएंगे करीब 1100 पौधे, गूलर व कठजामुन पर जोर।

रवि प्रकाश तिवारी, मेरठ। वह दिन दूर नहीं जब मैली-कुचैली सड़ांध मारती काली नदी हरी चुनरिया ओढ़ मेरठ के बीचों-बीच नागिन सी बलखाती निकलेगी। पेड़ों की ओट से सजा एक हरित गलियारा और उसकी छांव में कल-कल करती काली बहे, उसका अस्तित्व लौटे ...इस खातिर आम जनमानस के साथ सरकारी अमला भी जुट गया है। मेरठ में 40 किलोमीटर बहने वाली काली नदी के दोनों किनारों पर सघन पौधरोपण किए जाने का न सिर्फ रोडमैप तैयार किया गया है बल्कि मंगलवार को इसकी औपचारिक शुरुआत भी गांवड़ी गांव से कर दी गई। इस तरह आने वाले कुछ दिनों में काली के किनारे लाखों पौधे रोपे जाएंगे।

एक हेक्टेयर में 1100 पौधे

यूं तो मेरठ में नंगली से अतवाड़ा के बीच काली नदी की पैमाइश और चिह्नांकन सप्ताहभर में पूरा होगा, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक नदी के दोनों किनारों को मिलाकर 200 हेक्टेयर के आसपास जमीन निकलेगी। आदर्श व्यवस्था में वन विभाग एक हेक्टेयर में 1100 पौधे रोपता है, लिहाजा यहां दो से सवा दो लाख तक पौधे रोपे जा सकते हैं। डीएफओ राजेश कुमार तो कहते हैं कि चूंकि यह नदी का किनारा है, लिहाजा यहां सघन वनीकरण हो सकता है। यानी सवा दो लाख से भी ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं। बता दें कि काली मुजफ्फरनगर के अंतवाड़ा से निकलकर मेरठ से हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, कासगंज, एटा, फर्रूखाबाद होते हुए 598 किमी का सफर तय कर कन्नौज में गंगा से मिलती है।

पौधारोपण से क्या फायदा

वर्तमान में मेरठ में काली नदी की दुरावस्था है। इसमें पानी नाममात्र नहीं। गंदगी अटी पड़ी है। घास-फूस झाडिय़ां उग आई हैं। बेशक यह बरसाती नदी है, लेकिन इसकी हालत नालों से भी बदतर है। मुख्य वजह इस क्षेत्र में जलस्तर की काफी नीचे चले जाना है। ऐसे में नदी के आसपास सघन पौधरोपण से भू-जल स्तर बढ़ाने और जल संरक्षण में मदद मिलेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि पेड़-पौधे अपने आसपास का भू-जल स्तर बढ़ाते हैं। बारिश के पानी का संचयन भी बखूबी करते हैं। ऐसे में जब बड़ी संख्या में पौधे होंगे तो काली की खूबसूरती तो बढ़ेगी ही, उसे नवजीवन भी मिलेगा।

जिम्मेदारी स्वयं सहायता समूह को

काली किनारे लगने वाले पौधे लगें और सुरक्षित रहें, इसकी जिम्मेदारी महिलाओं के स्वयं सहायता समूह को देने की योजना है। महिलाएं पौधों की देखभाल करें, अगर कोई पौधा मर जाए तो उसकी जगह दूसरा लगाया जाए। देखरेख की यह जिम्मेदारी तीन वर्ष के लिए तय की जाएगी।

काली की यही पुरानी पहचान

अंग्रेजों के जमाने में काली नदी का खूब महत्व था। यही वजह है कि 1910 में अंग्रेजों ने देशभर के चुनिंदा लैंडमार्क का पोस्टकार्ड जारी किया था। इनमें एक पोस्टकार्ड काली नदी का भी है। इस पोस्टकार्ड को देखेंगे तो नदी के दोनों किनारों पर सघन पेड़ गवाही देते हैं कि शुरुआती दौर में काली किनारे सघन पौधरोपण था। समय के साथ लालच में पेड़ कटे तो नदी ने भी दम तोड़ दिया।

खेल विवि के बदले दी जा रही है जमीन

मेरठ के सलावा में खेल विश्वविद्यालय बनना है, 39.8 हेक्टेयर भूमि पर। इस जमीन पर छोटे-बड़े लगभग पांच हजार पौधे लगे हैं। विवि बनाने के लिए इन्हेंं स्थानांतरित करना होगा या काटना होगा। पूर्व में सिंचाई विभाग को सलावा के बदले हस्तिनापुर में जमीन दी जानी थी, लेकिन अब वही जमीन काली नदी किनारे सौंपी जाएगी। इस जमीन पर वनीकरण किया जाएगा।

इनका कहना है

डीएम की अगुवाई में काली पुनरूद्धार अभियान शुरू कर दिया गया है। नदी की सफाई के साथ ही सघन पौधरोपण अभियान भी चलाया जाएगा। काली को हमने खत्म किया है, इसे जीवित करने की जिम्मेदारी भी हमारी है, इसलिए जनभागीदारी भी ली जाएगी। सुंदरीकरण कार्यक्रम और जल संरक्षण अभियान भी काली के साथ चलेगा।

- सुरेन्द्र सिंह, कमिश्नर, मेरठ मंडल

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