विशेष कॉलम पछुआ हवा : कताई मिल के उलझे धागे सुलझे, यहां सन्‍नाटे को मिलेगा विराम Meerut News

परतापुर की कताई मिल बीस साल से बंद पड़ी है जिसमें अब औद्योगिक सिटी बसने वाली है। कताई मिल घाटे की वजह से बंद हुई थी जिसके बाद यहां सिर्फ चुनावी मतगणना होती थी। आखिर सीएम योगी ने मिल में उद्योग नगरी बसाने पर मुहर लगा दी है।

By Prem BhattEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 01:30 PM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 01:30 PM (IST)
विशेष कॉलम पछुआ हवा : कताई मिल के उलझे धागे सुलझे, यहां सन्‍नाटे को मिलेगा विराम Meerut News
मेरठ में परतापुर की कताई मिल एक बार फिर शुरू होने की संभावना है।

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। परतापुर की कताई मिल बीस साल से बंद पड़ी है, जिसमें अब औद्योगिक सिटी बसने वाली है। कताई मिल घाटे की वजह से बंद हुई थी, जिसके बाद यहां सिर्फ चुनावी मतगणना होती थी। इसके बाद मिल परिसर का सन्नाटा अगले चुनाव में टूटता था। 89 एकड़ में बसी मिल को लेकर लंबी राजनीतक कवायद चली। इस वजह से कताई मिल फुटबाल बन चुकी थी। फरवरी 2018 में लखनऊ में इन्वेस्टर्स समिट के बाद कताई मिल पर प्रशासन की नजर पड़ी। फाइलें चलीं, और जिला प्रशासन की टेबल पर कागजों का ढेर लग गया। लखनऊ तक एक रिपोर्ट ही भेजी गई, और सन्नाटा पसर गया। इस बीच डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने इस परिसर में खेल विवि का प्रयास किया। हालांकि तीन बार सर्वे के बाद भी मिल सन्नाटे में थी। आखिर सीएम योगी ने मिल में उद्योग नगरी बसाने पर मुहर लगा दी है।

कोरोना की दूसरी ऊंची लहर

कोरोना गर्मियों में सुस्त पडऩे के बाद एक बार फिर रफ्तार पर है। विज्ञानी इसे कोरोना की दूसरी लहर बता रहे हैं, जो सितंबर माह में रिकार्ड ऊंचाई छू गई। जिले में मरीजों की संख्या तीन गुना तो मौतों का आंकड़ा सात गुना तक बढ़ गया। मुख्यमंत्री ने कोरोना नियंत्रण के लिए छठवीं बार लखनऊ से टीम भेजी है। बैठकों का अंतहीन दौर जारी है। विशेषज्ञों ने दावा किया है कि मौसम में बदलाव के साथ कोरोना वायरस और आक्रामक हो जाएगा। सर्दियों में कोरोना का सितम बर्दाश्त करना पड़ सकता है। मंडलायुक्त अनीता मेश्राम ने निजी अस्पतालों को साथ आने के लिए कहा है, लेकिन निजी अस्पतालों और प्रशासन के बीच गहरी खाई है। स्वास्थ्य विभाग थकने लगा है। हालांकि कोरोना की दूसरी लहर के पीछे एक बात सुकून दे रही है कि यह लहर ज्यादा कहर नहीं ढा पाएगी। रिकवरी रेट बढ़ा है।

किसानी सियासत को खाद पानी

किसान एक बार फिर राष्ट्रीय चर्चा में हैं। कृषि विधयेक को लेकर भड़के किसानों ने मेरठ के परतापुर चौराहे पर हंगामा कर दिया। उन्हेंं डर है कि मंडियों का वजूद खत्म हो जाएगा, न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म कर दिया जाएगा। उनके मन में कई और शंकाएं भी हैं, जिसे सत्ता विरोधी सियासी दल खाद-पानी देने में लगे हैं। 2022 के प्रदेश विधानसभा चुनावों को देखते हुए सपा, कांग्रेस और रालोद ने किसानों की नब्ज टटोलना शुरू कर दिया। विरोध प्रदर्शन करने उतरे ज्यादातर किसानों को विधेयक के बारे में जानकारी नहीं है, जाहिर है कि उकसाने की होड़ शुरू हो गई है। पश्चिमी उप्र में रालोद की जमीन खिसक रही है। भारतीय किसान यूनियन किसानों की आवाज बनकर गन्ना आंदोलन भी चला चुका है, लेकिन वो सियासी फसल काटने की स्थिति में नहीं है। हां, कांग्रेस के बेजान पंजे में एक मुद्दा तो लगा है।

डाक्टर साहब भी नाराज हैं

मेडिकल कालेज में कोरोना मरीजों की मौतों का ठीकरा निजी अस्पतालों पर फोड़ा गया तो रिएक्शन आना स्वाभाविक था। आइएमए और नॄसग होम एसोसएिशन ने जिला प्रशासन की टेबल पर दर्जनों प्रश्नों वाला कागज रख दिया, जिसमें ज्यादातर बातें सोचने पर मजबूर करती हैं। निजी डाक्टरों ने अधिकारियों से पूछा है कि उन्हेंं अब क्या करना है। यानी, अगर मरीजों को अटेंड न करें तो कहा जाएगा कि निजी अस्पताल सहयोग नहीं कर रहे हैं। अगर मरीज को भर्ती कर लें, और उसकी तबीयत में सुधार न आए, फिर उसे कोरोना हो जाए तो जवाब देना मुश्किल होगा कि मरीज को तत्काल मेडिकल कालेज क्यों नहीं भेजा। प्रशासन ने निजी अस्पतालों को एंटीजन किट दी है, जबकि वो ट्रू-नेट मांग रहे हैं। मार्च-अप्रैल से यह द्वंद्व बना हुआ है, जो अब तक जारी है। हालांकि, कई निजी अस्पतालों में भयावह लापरवाही भी बरती गई है।

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