पौराणिकता का प्रमाण खोज रही हस्तिनापुर नगरी, 1880 से हो रहा इसे चमकाने का कार्य

पांडवों के शौर्य की प्रतीक हस्तिनापुर नगरी आज अपनी ही पौराणिकता का प्रमाण खोज रही है। सात दशक पूर्व हुए उत्खनन में महाभारत काल के कुछ अवशेष प्राप्त हुए थे। 1857 में पुरातत्वविद् कनिंघल और 1880 में फ्यूहरर ने भी हस्तिनापुर का दौरा किया था।

By Himanshu DwivediEdited By: Publish:Thu, 22 Jul 2021 10:12 AM (IST) Updated:Thu, 22 Jul 2021 10:12 AM (IST)
पौराणिकता का प्रमाण खोज रही हस्तिनापुर नगरी, 1880 से हो रहा इसे चमकाने का कार्य
पौराणिकता का प्रमाण खोज रही हस्तिनापुर नगरी।

संवाद सूत्र, हस्तिनापुर। पांडवों के शौर्य की प्रतीक हस्तिनापुर नगरी आज अपनी ही पौराणिकता का प्रमाण खोज रही है। सात दशक पूर्व हुए उत्खनन में महाभारत काल के कुछ अवशेष प्राप्त हुए थे। उस समय खोदाई का नेतृत्व कर रहे प्रो. बीबी लाल ने कहा था कि भविष्य में यदि इस टीले की खोदाई होती है तो महाभारत काल समेत कई काल के रहस्यों से पर्दा उठेगा।

हस्तिनापुर के इतिहास की जड़ें महाभारत काल से जुड़ी हैं। महाभारत के अनुसार हस्तिनापुर कुरु वंश की राजधानी हुआ करती थी। हस्तिनापुर महाभारत काल का साक्षी रहा है, जिसके पुख्ता प्रमाण खोजने का कार्य जारी है। वर्ष 1950-52 में पुरातत्वविद् प्रो. बीबी लाल द्वारा हस्तिनापुर का पौराणिक इतिहास सामने लाने का प्रयास किया गया था, परंतु उस समय यह प्रयास अधूरा रहा गया था। अब पुन: एक प्रयास किया जा रहा है। पुरातत्वविद् डीबी गणनायक के नेतृत्व में पांडव टीले पर प्राचीन अवशेषों को खोजने व तराशने का कार्य प्रारंभ किया गया है। इसी क्रम में एक गोलाकार इमारत मिली। बरसात के कारण बार-बार कार्य बाधित हो रहा है। बुधवार को भी कार्य बाधित रहा। अब गुरुवार को कार्य पुन: शुरू होने की उम्मीद है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडव और कौरवों के मध्य भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पांडव जीत गए थे और उन्होंने 36 सालों तक हस्तिनापुर पर राज किया था। हस्तिनापुर में महाभारत कालीन पांडव टीला समेत कई अन्य ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं जो महाभारत काल की याद ताजा कर देते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने पांडव टीले को कई वर्ष पूर्व संरक्षित घोषित करके दायित्व निभा लिया था।

1880 से हो रहा हस्तिनापुर को चमकाने का प्रयास

1857 में पुरातत्वविद् कनिंघल और 1880 में फ्यूहरर ने भी हस्तिनापुर का दौरा किया था। इसके बाद 1950-52 में प्रो. बीबी लाल ने प्राचीन टीले की खोदाई कराई तो यहां से महाभारत कालीन धूसर मृदभांड और कई दूसरी सभ्यताओं के अवशेष मिले थे। प्रो. बीबी लाल ने अपने निष्कर्ष में कहा था कि इस खोदाई को अंतिम न समझा जाए। 

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