गुरु जबर सिंह ने अलका को बनाया 'अर्जुन'
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महिला कुश्ती को पहचान दिलाकर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय कुश्ती कोच डा. जबर सिंह सोम को जाता है। हरियाणा के बाद सर्वाधिक महिला पहलवान मेरठ से ही निकली हैं जिन्होंने दुनियाभर में देश का डंका बजाया।
जेएनएन, मेरठ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महिला कुश्ती को पहचान दिलाकर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय कुश्ती कोच डा. जबर सिंह सोम को जाता है। हरियाणा के बाद सर्वाधिक महिला पहलवान मेरठ से ही निकली हैं, जिन्होंने दुनियाभर में देश का डंका बजाया। इसकी शुरुआत उनकी पहली महिला पहलवान शिष्या अलका तोमर से हुई। अलका के दांव देख स्वजनों के चित्त खुले तो बेटों से अधिक बेटियां ताल ठोकने लगीं। कुश्ती की दुनिया में गुरु-शिष्या की यह जोड़ी किसी पहचान की मोहताज नहीं है। वर्ष 1998 में डा. जबर सिंह सोम के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण शुरू करने वाली अलका ने ओलंपिक गेम्स को छोड़कर हर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीते। विदेशों के 42 टूर में उन्होंने 22 पदक जीते और अपने गुरुजी का मान बढ़ाया।
पहले बचते थे, फिर हमारी पहचान बन गए
अलका बताती हैं कि पहले गुरुजी केवल बालकों को ही प्रशिक्षण देते थे। पिता नयन नयन सिंह तोमर उनके ही शिष्य रहे। दोनों चाचा और भाई को भी उन्होंने ही दांव-पेच सिखाए। वर्ष 1998 में स्टेडियम में कैंप के दौरान पिताजी गुरुजी से मिलाने ले गए। देखते ही उन्होंने कहा यह तो पहलवान बन सकती है। पिताजी ने कहा आपको ही सिखाना पड़ेगा, तो वह बचते हुए बोले कि वह केवल बालकों को ट्रेनिग कराते हैं। बालिकाओं को ट्रेनिंग देने की मांग जोरों पर उठी तो उन्होंने स्वीकार किया और अलका उनकी पहली बालिका शिष्या बनीं।
अब तक द्रोणाचार्य अवार्ड न मिलने का मलाल
अर्जुन अवार्डी अलका तोमर को इस बात का मलाल है कि इतनी उपलब्धि के बावजूद डा. सोम को अब तक द्रोणाचार्य अवार्ड से नहीं नवाजा गया। पांच से अधिक महिला पहलवानों को ट्रेनिग देकर उनके नाम 82 स्वर्ण पदकों के साथ 282 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पदक हैं। यह उपलब्धि केवल बालिका पहलवानों की है। डा. जबर सिंह सोम कहते हैं कि अलका जैसे बच्चे कम ही पैदा होते हैं, जो सपना देखते हैं और उसे सच करने के लिए उसे जीते भी हैं।