सेना में सेवा और सेना के नाम पर ही फर्जीवाड़ा

फर्जी कागजात बनाने के इस गिरोह में एक पूर्व सैनिक भी शामिल है। रघुवीर सिंह देहरादून के राजपुर में जोहड़ी गांव के रहने वाला है। 56 वर्षीय रघुवीर सिंह को पाल के नाम से जाना जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 Jan 2021 07:16 AM (IST) Updated:Fri, 22 Jan 2021 07:16 AM (IST)
सेना में सेवा और सेना के नाम पर ही फर्जीवाड़ा
सेना में सेवा और सेना के नाम पर ही फर्जीवाड़ा

मेरठ, जेएनएन। फर्जी कागजात बनाने के इस गिरोह में एक पूर्व सैनिक भी शामिल है। रघुवीर सिंह देहरादून के राजपुर में जोहड़ी गांव के रहने वाला है। 56 वर्षीय रघुवीर सिंह को पाल के नाम से जाना जाता है। वह 2006 में 42 साल की आयु में सेना के सप्लाई डिपो देहरादून से सेवानिवृत्त हुआ। 2008 से 2013 तक जोहड़ी गांव के उपप्रधान भी रहे और पिछले 2 साल से वह बेटे संजय छेत्री के साथ फर्जीवाड़े के धंधे को आगे बढ़ा रहे थे। संजय छेत्री भी पूर्व सैनिक हैं। इनके साथ विकी थापा देहरादून में क्लेमेंटाउन के दूधली बडकली का रहने वाला है। प्रिटिग प्रेस संचालक भैरव दत्त कटनाला है जो पटेल नगर में पंचायत भवन रोड बंजारावाला निवासी है। यह रघुवीर का करीबी भी बताया जाता है। वहीं दीपक और संजय क्षेत्री को प्राथमिक जांच के बाद छोड़ दिया गया है।

आइएसआइ लिक भी तलाश रही एजेंसियां

सेना की खुफिया एजेंसी के साथ ही एसटीएफ भी इस रैकेट में खाड़ी देशों के रैकेट की मिलीभगत के साथ ही पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ का लिक भी तलाश रही है। पिछले दिनों हापुड़ से सिग्नल रेजीमेंट के एक पूर्व सैनिक को पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। ऐसा माना जा रहा है कि पूर्व सैनिकों के कागजात का इस्तेमाल असल में पूर्व सैनिकों से मेलजोल बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। उसके जरिए धीरे-धीरे उनको अपने झांसे में लेकर सेना की खुफिया जानकारी एकत्र करने की साजिश भी हो सकती है। पूर्व सैनिक द्वारा पाकिस्तान को सूचनाएं भेजने का मामला बेहद ताजा है और पश्चिमी यूपी से ही जुड़ा हुआ है, जो मेरठ छावनी के अंतर्गत ही आती है।

फर्जी कागजात पर पेंशन लेने की अब तक पुष्टि नहीं

जांच में अभी तक इन फर्जी कागजात पर पेंशन लेने की पुष्टि नहीं हुई है। सेना की पेंशन व्यवस्था में एक सैनिक से संबंधित भर्ती होने से पहले के कागजात के साथ उनकी सेवा काल के हर विवरण कागजात पर दर्ज होते हैं। इसलिए इस व्यवस्था में फर्जी कागजात घुसा पाना लगभग मुमकिन नहीं है। फिर भी जो भी फर्जी कागजात जिन भी विभागों से संबंधित मिले हैं, उन विभागों को नामों की सूची देकर सूचित किया जाएगा। यह भी संभव है कि सेना के फर्जी कागजात तैयार करने के लिए पूर्व सैनिकों के नाम और उनकी सेवा विवरण का इस्तेमाल भी किया गया हो। इसलिए कागजातों की जांच विभागों तक भी की जा सकती है।

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