Delhi-Meerut Expressway: समान मुआवजे के साथ किसानों ने गति भी तो मांगी
खेतों के बीच से एक्सप्रेस-वे निकल रहा है। एक्सप्रेस-वे के दोनों तरफ दीवार खड़ी हो रही है। किसान चाहते हैं कि दीवार के किनारे- किनारे यह पतली सी ही सही सड़क बना दी जाए तो उनके ट्रैक्टर-ट्राली आसानी से निकल जाएंगे।
मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी]। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के मेरठ से डासना तक के 32 किमी खंड पर किसानों का अवरोध चलता रहा है। एक समान मुआवजा व एक्सप्रेस-वे के दोनों तरफ सर्विस रोड मुख्य मांग है। दोनों मांगों की प्रकृति अलग है। सर्विस रोड किसानों की प्रगति में सहयोगी होगी। खेतों के बीच से एक्सप्रेस-वे निकल रहा है। एक्सप्रेस-वे के दोनों तरफ दीवार खड़ी हो रही है। किसान चाहते हैं कि दीवार के किनारे- किनारे यह पतली सी ही सही, सड़क बना दी जाए तो उनके ट्रैक्टर-ट्राली आसानी से निकल जाएंगे। अब तक चकरोड पर संघर्ष करते थे सो करते थे, लेकिन अब जब ऐसा विकास उनके खेतों से गुजर रहा है तो उनकी अपनी खेती को गति देने की मांग कहां गलत है। बहुत से प्रोजेक्टों में ऐसा हुआ भी है। वैसे भी एक्सप्रेस-वे का सीधा नाता किसानों से है भी नहीं।
सांसद हैं या प्रोजेक्ट हेड
कुछ दिनों से सांसद राजेंद्र अग्रवाल विकास प्रोजेक्टों के अपडेट में ऐसे तल्लीन हैं मानों वह सभी प्रोजेक्ट हेड की भूमिका में हों। खैर, जनप्रतिनिधि चुना भी इसीलिए जाता है, तो इसमें ताज्जुब की बात नहीं होनी चाहिए। हालांकि जब कोई जनप्रतिनिधि राजनीतिक या व्यक्तिगत विवादों से परे हो, विवादित बयानों से भी
उसका नाता न हो तो उसकी चर्चा समाज में होती नहीं। इन कारणों की वजह से ही सांसद की थोड़ी चर्चा लाजिमी हो जाती है। जिस संसदीय क्षेत्र में विकास खुद दौड़ कर आ रहा हो या जनप्रतिनिधियों के प्रयास से आ रहा हो, मगर उसका फॉलोअप उसे तेजी से पूरा करने पर मजबूर करता है। जिस जिले में विकास के ढेरों
प्रोजेक्ट हों, और वहां के अधिकारियों के पास बताने के लिए कुछ खास अपडेट न हो, तो जब सांसद हर अपडेट रखने में रुचि रखते हों तो बेशक, यह प्रशंसनीय है।
इनकी देरी भी स्वीकार है
शहर को दो सौगातें मिलने वाली थीं, मगर उनका क्या हुआ, फिलहाल उनके बारे में संबंधित विभागों को कुछ अता-पता नहीं है। एक था हेरिटेज वॉक और दूसरा था लाइट एंड साउंड-शो। हेरिटेज वॉक का प्रस्ताव शासन के पास लंबित है। लाइट एंड साउंड शो का ट्रायल ठीक लोकसभा चुनाव से पहले हुआ था, इसके बाद इसका
क्या हुआ किसी को पता नहीं। पर्यटन विभाग को न ही सांसद को। खैर, इन दोनों के लिए भीड़ चाहिए होती है, लेकिन अब जब कोरोना का साया है तो इनका कार्य थोड़ी देरी से भी शुरू हो तो भी कोई बात नहीं। वैसे भी सरकार अति आवश्यक कार्य को छोड़कर बाकी विकास कार्य पर धन देने से मना कर चुकी है। हालांकि मेरठ
का स्वतंत्रता क्रांति से नाता बताने वाले दोनों प्रोजेक्ट धरातल पर आ जाएं तो अच्छा ही रहेगा। पहचान को और सम्मान मिल जाएगा।
मेरठ की स्थानीय जरूरतें
मेरठ जिले को बहुत कुछ मिलता जा रहा है। ज्यादातर ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिनके बारे में ज्यादा मेहनत हुई न ही जनता ने अभियान चलाए। खैर, सरकार ने जो दिया सबको अच्छा ही लगा। प्रोजेक्टों की बौछार के बीच थोड़ी सी स्थानीय जरूरतें भी हैं, जिनका समाधान स्थानीय स्तर पर नहीं है। शहर के खुले नाले, इनर रिंग रोड, कड़ा निस्तारण के लिए बड़ा प्लांट, मेरठ को विभिन्न शहरों से जोडऩे के लिए एक्सप्रेस-वे, ट्रेनें व हवाई जहाज की रीजनल कनेक्टिविटी ये बेहद जरूरी हो चले हैं। इनमें से कुछ नितांत स्थानीय जरूरतें हैं, मगर उन पर जब सुनवाई होगी तब शहर किसी एक्सप्रेस-वे के प्रोजेक्ट मिलने की खुशी से ज्यादा खुश होगा। जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की यदि प्रतिक्रिया का मोल उच्च स्तर पर होता हो तो इसे महत्वपूर्ण श्रेणी में दर्ज कराएं ताकि मेरठ अपनी छवि और व्यवसाय सुधार सके। अपनों तक पहुंच सके।