हर बार गिरकर उठने वाला ही होता है खिलाड़ी, मेरठ पहुंचे पैरालिंपियन ने छात्र-छात्राओं को किया प्रेेरित
देश के विभिन्न डीएवी स्कूल से पढ़कर आगे बढ़े खिलाड़ियों ने इस साल टोक्यो पैरालिंपिक में हिस्सा लिया था। इनमें से सुमित अंतिल स्वर्ण पदक विजेता रहे। अन्य दो प्रतिभागी रहे। टोक्यो पैरालिंपिक गेम्स में सबसे कम आयु के खिलाड़ी रहे नवदीप रहे।
मेरठ, जागरण संवाददाता। टोक्यो पैरालिंपिक गेम्स में भाला फेंक में स्वर्ण पदक विजेता सुमित अंतिल, एशियन गेम्स में भाला फेंक में स्वर्ण पदक विजेता नीरज यादव और जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाला फेंक में स्वर्ण पदक विजेता नवदीप सिंह ने शनिवार को डीएवी पब्लिक स्कूल मेरठ में छात्र-छात्राओं को जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित किया।
डीएवी में पढ़े, पैरालिंपिेक में लिया हिस्सा
देश के विभिन्न राज्यों के डीएवी स्कूल से पढ़कर आगे बढ़े इन खिलाड़ियों ने इस साल टोक्यो पैरालिंपिेक में हिस्सा लिया था। इनमें से सुमित अंतिल स्वर्ण पदक विजेता रहे, अन्य दो प्रतिभागी रहे। सुमित ने बच्चों से कहा कि जीवन में जैसा भी उतार-चढ़ाव आये, जैसी भी परिस्थितियां आएं स्वयं को प्रोत्साहित करते रहें। यह मानकर चलें कि जो भी होता है वह अच्छे के लिए होता है। साल 2015 में एक दुर्घटना में पांव क्षतिग्रस्त होने के बाद उन्होंने जैवलिन खेलना शुरू किया और आज पैरालंपिक गेम्स में देश के लिए पदक जीतकर लौटे हैं। कहा कि मेहनत करें, देश का नाम रोशन करें, देश को गर्व करने का मौका दें।
पैरालंपिक में सबसे कम आयु के खिलाड़ी रहे नवदीप
टोक्यो पैरालंपिक गेम्स में सबसे कम आयु के खिलाड़ी रहे नवदीप ने कहा कि हम भी किसी से प्रेरित होकर खेलने आगे बढ़े थे। आप भी हमसे प्रेरणा लें और आगे बढ़े। आप यह मान लें कि जब हम दिव्यांग होकर देश का नाम रोशन कर सकते हैं, तो आप हम से कहीं ज्यादा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सफलता हमेशा नहीं मिलती, लेकिन जब मिलती है तो खुशी बयां नहीं की जा सकती।
जीवन में कभी निराश न हों
नीरज यादव ने कहा कि जीवन में कभी निराश न हों। हमेशा स्वयं को प्रोत्साहित करते रहें। प्रोत्साहन से आत्मबल मिलता है। स्कूल की ओर से नई पीढ़ी के खिलाड़ियों व बच्चों को पैरालंपिक खिलाड़ियों से मिलवाने, उनके बारे में जानने, सुनने और प्रेरणा लेने के लिए आयोजित इस सम्मान समारोह में अतिथि के तौर पर उपस्थित एएसपी सूरज राय ने कहा कि हर खिलाड़ी का अपना एक संघर्ष होता है। कोई खिलाड़ी जब खेल को अपना करियर चुनता है तो एक तरह से वह समाज के खिलाफ एक विद्रोह जैसा है। ऐसे संघर्ष के बाद सफलता हासिल करने से बड़ी उपलब्धि कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी बच्चों को इनके बारे में जानना चाहिए। इनके संघर्ष के बारे में जानना चाहिए। उनसे सीखना चाहिए और उन संघर्षों में आगे बढ़कर वह कैसे सफलता की राह पर चलते रहे, इसे जानना चाहिए। इससे आपको आत्म बल मिलेगा और आप अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेंगे।
कोच विपिन कसाना भी रहे मौजूद
इस अवसर पर तीनों पैरालंपिक के साथ उनके कोच विपिन कसाना भी मौजूद रहे। स्कूल की ओर से आयोजित इस समारोह में सभी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने स्कूल के उन खिलाड़ियों को पदक पहना कर सम्मानित किया जिन्होंने सीबीएसई की राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं। प्रिंसिपल डॉ. अल्पना शर्मा ने सभी का स्वागत व अभिनंदन किया।
छात्रों ने पूछे सवाल, मिले प्रेरक जवाब
सवालों का जवाब देते हुए नवदीप ने कहा कि वह बचपन में शैतान नहीं थे, लेकिन पढ़ने वाले बच्चे भी नहीं थे। 10 साल की उम्र में उन्होंने कुश्ती सीखना शुरू किया। सुबह-शाम कुश्ती का प्रशिक्षण लेते और रात में स्कूल का काम करते। 2017 में स्नातक की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली पहुुंचे । यहां वह स्पोर्ट्स में ही जुड़े और उसके बाद जैवलिन फेंकना शुरू कर दिया। सुमित ने बताया कि जैवलिन में उन्होंने कोच विपिन कसाना का नाम सुना था। क्योंकि वह कॉमनवेल्थ गेम्स में दो बार फाइनल में पहुंचे थे। उनसे ही प्रशिक्षण का मौका मिला तो अपने हुनर को निखारना शुरू कर दिया। नवदीप ने कहा की उन्हें बचपन से ही खेल में जाना था और एथलीट ही बनना था। नीरज ने बताया कि वह बेहद शैतान हुआ करते थे और स्कूल से उनकी शिकायतें भी खूब आती थी। लेकिन सभी कहते हैं कि जब मां बाप, गुरुओं का सम्मान करेंगे तो आगे भी सम्मान मिलेगा। आज पदक जीतने के बाद जो पहले शिकायत करते थे वही सम्मान भी दे रहे हैं।
स्वर्ण जीतने के बाद के मनोभाव के बारे में पूछने पर सुमित ने बताया कि पैरालंपिक गेम्स में दबाव बहुत ज्यादा था। पदक जीतने के बाद भी वह एक सपने जैसा ही लग रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन कर हाल जाना और बधाई दी। उनको भी धन्यवाद के अलावा कुछ नहीं बोल सके।
सुमित ने बताया कि पदक जीतने के बाद जब तिरंगा ऊपर उठता है तो एक खिलाड़ी के लिए वह जीवन का बहुत सबसे महत्वपूर्ण पल होता है। वापस लौटने पर जब प्रधानमंत्री मिले, बात की, वह हमारे बारे में जानते थे। पिछली उपलब्धियों के बारे में बताया और पूछा भी। वह पल हमें हमारे बुढ़ापे तक भी याद रहेगा कि हम देश के प्रधानमंत्री से मिले थे। ऐसा सौभाग्य कम लोगों को मिलता है। हमने वह सफलता हासिल की इसलिए उनसे मिलने का मौका मिला। असफलता से उबरने के सवाल पर सुमित ने बताया कि पहली बार में सफलता नहीं मिलती। उन्हें भी एशियन गेम्स में पदक विजेता के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन वह सफल नहीं हो सके।
गिरकर उठना ही जिंदगी है
सुमित ने कहा कि गिर कर उठना ही जिंदगी है। जब हम निराश होते हैं तो हमें अपने आसपास के लोगों व समाज से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ जाना चाहिए। मानसिक शक्ति के बारे में पूछे जाने पर नवदीप सिंह ने कहा कि यह शक्ति उन्हें समाज से मिली है। नवदीप ने बताया कि 10 साल की उम्र उनमें वह दिव्यांग थे। यह सभी को पता था लेकिन फिर भी बताते थे कि हम दिव्यांग हैं। उसे ही अपनी ताकत बनाया और जिद की कि एक दिन देश का नाम रोशन करूंगा और देश को गौरव करने का मौका दूंगा। नवदीप ने कहा कि वह खेल में और बेहतर करने का प्रदर्शन करेंगे। जहां तक बात देश में खेल के माहौल की है तो उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों में माहौल बदला है और अगले कुछ सालों में यह और अच्छा देखने को मिलेगा।
खेेेल हो या पढ़ाई न माने हार
नीरज यादव ने बताया कि जब पहली बार खेल का विचार मन में आया तो उन्होंने दोस्तों को जानकारी दी। दोस्तों ने प्रेरित किया और वह आगे बढ़ चले। कहां के देश का प्रतिनिधित्व करना और देश के तिरंगे को ऊपर उठता देखना यही खिलाड़ी का सपना होता है और जब हम पदक लेकर लौटते हैं तो देश में लोगों का प्यार और सम्मान उन्हें और बेहतर करने को प्रोत्साहित करता है। सुमित ने कहा कि खेल हो या पढ़ाई हार नहीं माननी चाहिए। जो भी हो रहा हो उसे अच्छा मानकर आगे बढ़ते चले और अपनी कमियों को दूर करते चले।
नवदीप ने कहा कि सभी की शुरुआत जीरो से ही हुई है। असफलता के बाद ही सफलता मिलती है। दो-तीन सफलताओं के बाद फिर असफलता मिलती है और उसके बाद जब सफलता मिलती है, तभी उसका महत्व पता चलता है। गिरकर उठने वाले ही अच्छे खिलाड़ी होते हैं। हमने भी यह मुकाम एक दिन में हासिल नहीं किया। हर किसी ने 5 से 10 साल मेहनत की और यहां तक पहुंचे हैं। नीरज यादव ने कहा कि असफलता को हार न माने। स्वयं से हार न माने। जोश बरकरार रखें। कोच विपिन कसाना ने ओलिम्पियन खिलाड़ियों का मार्गदर्शन देने में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इनके साथ जुड़ना एक अलग अनुभव रहा। इनकी तमाम समस्याओं के बाद भी यह खेल पर ही फोकस रहे और मेहनत करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। सभी खिलाड़ियों द्वारा प्रेरणा स्त्रोत विपिन कसाना को ही कहे जाने पर विपिन ने बताया कि उनके भी कोच ने शुरू में कहा था कि जीवन में किसी को प्रेरित कर सको, तो इससे बड़ी उपलब्धि कुछ नहीं होती। अगर उन्होंने इन खिलाड़ियों को प्रेरित किया है तो वह उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है और वह यह चाहते हैं कि खिलाड़ी आज जिन बच्चों के बीच आए हैं उन्हें प्रेरित कर सके और इनमें से अगले ओलिम्पियन निकले।