बढ़ते तापमान में गेहूं की पैदावार बढ़ाने पर जोर
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संस्थान (एफएओ) के अनुसार वर्ष 2050 तक पूरी जनसंख्या का पेट भरने के लिए गेहूं के उत्पादन में 60 फीसद बढ़ोतरी की जरूरत होगी।
मेरठ, जेएनएन। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संस्थान (एफएओ) के अनुसार वर्ष 2050 तक पूरी जनसंख्या का पेट भरने के लिए गेहूं के उत्पादन में 60 फीसद बढ़ोतरी की जरूरत होगी। भारत सहित दुनिया में गेहूं के ऐसे जीन खोजे जा रहे हैं, जिसकी मदद से बढ़ते तापमान और कम पानी में गेहूं की भरपूर पैदावार ली जा सकेगी। चौ. चरण सिंह विवि के जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग में आयोजित कांफ्रेंस में यह बात विशेषज्ञों ने कही।
गुरुवार को कांफ्रेंस के दूसरे दिन मैक्सिको के इंटरनेशनल मेज एंड व्हीट इंप्रूवमेंट सेंटर के प्रमुख रवि सिंह ने बताया कि यह सेंटर पारंपरिक क्रॉस ब्रीडिंग के माध्यम से लंबे समय से गेहूं की ऐसी नस्लों पर काम कर रहा है जो बीमारियों से बच सकें। भविष्य में गेहूं की ऐसी नस्लें विकसित करनी होगी जिस पर मौसम का प्रभाव नहीं पड़े। संस्थान उस दिशा में काम कर रहा है। कनाडा से आए रान एमडी पाव ने बताया कि एक गेहूं की नई नस्ल को विकसित करने और खेतों तक पहुंचाने में 10 से 15 साल तक समय लग सकता है। शोधकर्ताओं ने अब तक एक लाख से ज्यादा जीन और गेहूं के डीएनए का पता लगाया है। कृषि वैज्ञानिक जल्द ही जान सकेंगे कि कौन सा जीन सूखे का प्रतिरोधक है और उपज को बढ़ा सकता है। जीन एडिटिंग तकनीक से गेहूं की किसी भी नस्ल को विकसित किया जा सकता है। ग्लोबल व्हीट प्रोग्राम के निदेशक डॉ. हेंस ब्रोन और डॉ. हेलीन वालिस ने कहा कि शोधकर्ताओं को बहुत बड़े वादे करने से बचना चाहिए। जीन एडिटिंग से नुकसान भी हो सकता है। पोषण में बदलाव करने से कई बार कीट अधिक आकर्षित होते हैं। गेहूं का सेवन करने वाले को भी इसका नुकसान हो सकता है। नई दिल्ली से आए कुलदीप सिंह जीनोमिक अनुसंधान पर प्रकाश डाला। विभाग के डा. एसएस गौरव ने बताया कि विश्वविद्यालय में चार शीर्ष संस्थाओं से करार हुआ है, उससे शोध को बल मिलेगा। कांफ्रेस में प्रो. पीके गुप्ता सहित अन्य शिक्षक और छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे।
पीला रतुआ रोग का खतरा
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जनवरी और फरवरी में गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग आने की संभावना रहती है। हाथ से छूने पर धारियों से फफूंद के बीजाणु पीले रंग की तरह हाथ में लगते हैं। फसल के इस रोग के चपेट में आने से कोई पैदावार नहीं होती है। उत्तर भारत के पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में पीली रतुआ के प्रकोप से कुछ साल में लाखों हेक्टेयर गेहूं के फसल का नुकसान हुआ।