सहारनपुर के बेहट में फल पट्टी ने रोक दिए उद्योगों के कदम, आम उत्पादकों को भी नहीं मिला लाभ

सहारनपुर के बेहट में फलपट्टी घोषणा का आम व्यवसायियों को कोई लाभ नहीं मिला लेेकिन पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए यहां उद्योगों की स्थापना पर रोक लगा दी गई। इसके चलते लोग फलपट्टी की अधिसूचना को वापस लेने की मांग उठा रहे हैं।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 11:27 AM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 11:27 AM (IST)
सहारनपुर के बेहट में फल पट्टी ने रोक दिए उद्योगों के कदम, आम उत्पादकों को भी नहीं मिला लाभ
सहारनपुर के बेहट में फल पट्टी ने रोक दिए उद्योगों के कदम

सहारनपुर, जागरण संवाददाता। जिले का बेहट क्षेत्र आम उत्पादन में देश ही नहीं विदेशों में भी नाम कमा चुका है। इसी कारण वर्ष 1989 में तत्कालीन सपा सरकार ने इस क्षेत्र को फल पट्टी अधिसूचित किया था। इस उद्घोषणा से क्षेत्र के आम व्यवसायियों को लगा था कि अब यहां के आम को विकास के पंख लगेंगे, लेकिन वह तो नहीं हुआ। यहां औद्योगिक विकास की संभावनाएं प्रदूषण के नाम पर जरूर बाधित हो गई।

अंतरराष्ट्रीय स्‍तर पर मिलता रहा है बेहट के आम को पुरस्कार 

बेहट को आम की विशेष प्रजातियां के उत्पादक के तौर पर वर्षों से जाना जाता रहा है। यहां का आम देश ही नहीं विदेशों में भी फलों के राजा का रुतबा पाता रहा है। आम की अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में यहां के आम को पुरस्कार मिलते रहे। विदेशों के आम आयातक फसलें शुरू होने से पहले यहां पहुंचकर अपने लिए आम के बाद चिन्हित लेते हैं ताकि सीजन के बीच में वह यहां से आम ले जा सके। यही नहीं दिल्ली और मुंबई आदि के आम व्यापारी भी अपने विदेशों के व्यापारिक संबंधों में यहां के आम को बागों से खरीद कर विदेशों में निर्यात करते हैं। यहां के आम व्यवसाय ने नाम तो कमाया ही है क्षेत्रवासियों के लिए आम के बाद आमदनी का भी एक बड़ा जरिया बने हैं। यहां का एक बड़ा भूभाग आम के बागों से आच्छादित है।

1989 में तत्कालीन सपा सरकार में बेहट क्षेत्र को फल पट्टी घोषित किया गया था। उस समय क्षेत्रवासियों को लगा था कि सरकार ने अब इस व्यवसाय की ओर ध्यान दिया है तो अब यहां की आम के बागों को परंपरागत व्यवस्थाओं से छुटकारा मिलेगा और सरकार आम उत्पादन में वृद्धि कराने के लिए बाजार और नई तकनीक व सुविधाओं के तौर पर आम व्यवसायियों की मदद करेगी। जिससे यहां का व्यवसाय और तरक्की करेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहां के आम व्यवसायियों को सरकार की ओर से न तो आम के लिए उन्नत तकनीक की सुविधा मिली और न ही बाजार उपलब्ध कराया गया। जिससे आज भी यहां का आम व्यवसायी अपने बल पर ही कोई नई तकनीक अपना ले तो अलग है वरना आम का व्यवसाय आज भी यहां परंपरागत तरीकों से हो रहा है।क्षेत्र के युवाओं की रोजगार की आस पर भी लगा ग्रहण

उस समय सरकार ने बेहट क्षेत्र को फल पट्टी घोषित किया। लेकिन इसके साथ ही पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए यहां उद्योगों की स्थापना पर रोक लगा दी गई। इस औद्योगिक विकास पर पाबंदी को उस समय यहां के लोगों ने तरजीह इसलिए भी बहुत नहीं दी, क्योंकि लोगों की सोच थी कि भले उद्योग ना लगे आम का व्यवसाय क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर के विकास के लिए पर्याप्त रहेगा। लेकिन लोगों का अनुमान पूरा नहीं हुआ। औद्योगिक विकास ना होने के कारण यहां का युवा रोजगार के क्षेत्र में भी पिछड़ गया। सरकार यदि यहां के युवाओं को आम उत्पादन के क्षेत्र में भी प्रशिक्षित करती तो शायद युवा पीढ़ी आम से ही अपने भविष्य को खास बना लेती।

पिछले कई साल से उठ रही फलपट्टी अधिसूचना वापस लेने की मांग

फलपट्टी से क्षेत्र के आम व्यवसायियों को कोई लाभ न होने के चलते कई सालों से क्षेत्र के लोग इस फलपट्टी की अधिसूचना को वापस लेने की मांग विभिन्न स्तर पर सरकार के सामने उठा चुके हैं। लेकिन अब तक यह आवाज नक्कारखाने में तूती की ही आवाज साबित हुई है। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि अगर सरकार इस अधिसूचना को वापस ले लेती है तो क्षेत्र में औद्योगिक विकास होगा। यहां पॉपुलर का बहुत बड़ा क्षेत्रफल है लेकिन पापुलर आधारित उद्योग हरियाणा के सीमावर्ती क्षेत्र में लगे हैं। जिसके चलते यहां का पापुलर उत्पादक किसान अपना पापुलर हरियाणा में ही बेचने को मजबूर है। पॉपुलर से प्लाई बोर्ड बनाया जाता है। यदि सरकार यहां औद्योगिक पाबंदियां न लगाती तो यह उद्योग यहीं लगते और लोगों को रोजगार मिलता। वैसे भी सरकार को इन उद्योगों से विभिन्न मदों से राजस्व की प्राप्ति होती। लेकिन इस फल पट्टी ने यहां के आम आदमी को तो नुकसान पहुंचा ही रखा है सरकार को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है। 

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