भारत-पाक युद्ध 1965 : युद्ध विराम के पहले हर हाल में जीतना था डोगराई

वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में कश्मीर में घुसपैठियों को मार गिराने के बाद भ्

By JagranEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 06:30 AM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 06:30 AM (IST)
भारत-पाक युद्ध 1965 : युद्ध विराम के पहले हर हाल में जीतना था डोगराई
भारत-पाक युद्ध 1965 : युद्ध विराम के पहले हर हाल में जीतना था डोगराई

मेरठ,जेएनएन। वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में कश्मीर में घुसपैठियों को मार गिराने के बाद भारतीय सेना वाघा बार्डर होते हुए पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश कर गई थी। जीटी रोड पर लखनके, गोपालपुर होते हुए अपर ब्रांच द्वाबा कैनल, जिसे इच्छोगिल कैनल कहते हैं, स्थित डोगराई पर 22 सितंबर को कब्जा कर लिया था। 55 इंजीनियरिग रेजिमेंट्स के साथ उस लड़ाई में शामिल रहे मेरठ के मेजर ज्ञान सिंह यादव के अनुसार दुनियाभर से बढ़ रहे युद्ध विराम के दबाव के बीच भारतीय सेना ने 22 को ही डोगराई फतह का निर्णय लिया। मौके पर तैनात 13 पंजाब और 3 जाट बटालियन के योद्धाओं को आगे बढ़ने के लिए दुश्मन के माइन फील्ड में इंजीनियर्स ने रास्ता बनाया। आमने-सामने की लड़ाई में भारतीय वीरों ने दुश्मन को चित कर डोगराई पर तिरंगा फहरा दिया था। भारतीय युद्ध के इतिहास में 'बैटल ऑफ डोगराई' को सर्वाधिक वॉर कैजुअलटी वाला युद्ध माना जाता है।

पहली जीत के बाद पीछे खींचने पड़े थे कदम

कंकरखेड़ा स्थित डिफेंस एन्क्लेव निवासी मेजर ज्ञान सिंह यादव (तब सैपर, इंजीनियर्स रेजिमेंट) के अनुसार पाकिस्तान पर जवाबी हमले के पहले ही दिन छह सितंबर को तीन जाट ने डोगराई पर कब्जा कर लिया था। रिइंफोर्समेंट पहुंचने से पहले ही पाकिस्तान ने अपनी इज्जत बचाने के लिए पूरी ताकत डोगराई में झोंक दी। आला कमान के निर्देश पर तीन जाट एक कदम पीछे हटी और कैल के पीछे मोर्चा संभाल लिया और अंत तक जमे रहे। मेजर यादव के अनुसार पाकिस्तानी सेना के पास आधुनिक हथियार थे। वायु सेना में भारतीय ग्नैट के मुकाबले पाकिस्तान की आधुनिक सैबर फाइटर एयरक्राफ्ट थे। इसीलिए भारतीय सेना को दोबारा डोगराई जीतने में 15 दिन लग गए थे।

'दीवार' गिराकर जोरदार हुई अंतिम लड़ाई

मेजर जीएस यादव के अनुसार डोगराई कैनल दुश्मन के लिए एक दीवार का काम कर रही थी। उसके बाहर दुश्मन ने माइन फील्ड बिठाई थी जिसमें 21 सितंबर की रात 55 इंजीनियर्स के 71 फील्ड कंपनी ने करीब 300 मीटर रास्ता बनाया। 22 सितंबर के भोर में माइन फील्ड पार कर हमला कर दिया, जिससे दुश्मन भौचक्का रह गया। वहां पाकिस्तान की एक डोगरा, 16 पंजाब, तीन बलूच, आठ पंजाब व 16 बलूच तैनात थी। तीन जाट के जवान दुश्मन पर कहर बनकर टूट पड़े। हथियार के बाद गन बैनट और फिर खाली हाथ भी लड़े। उस लड़ाई में भारतीय सेना के 80 जवान शहीद हुए थे। वहीं, दुश्मन के 350 से अधिक सैनिक मारे गए और करीब 150 पकड़े गए थे। तीन जाट बटालियन के कमान अधिकारी ले. डी. हाइड और मोदीनगर में फतेहपुर गांव के रहने वाले मेजर आशाराम त्यागी शहीद हुए थे। दोनों को मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजा गया था।

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