मेरठ के दो नालों का गंदा पानी खास तकनीक से होगा शुद्ध, जानिए नगर निगम की क्या है तैयारी

मेरठ नगर निगम आबूनाला और ओडियन दोनों नालों में बायो रेमेडिएशन तकनीक के डोङ्क्षजग पंप बायोकल्चर मिलाने के लिए लगाएगा। इसके साथ ही दोनों नालों में फाइटो रेमेडिएशन तकनीक का उपयोग भी किया जाएगा। इसकी तैयारी कर ली गई है।

By Parveen VashishtaEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 06:01 AM (IST) Updated:Mon, 25 Oct 2021 06:01 AM (IST)
मेरठ के दो नालों का गंदा पानी खास तकनीक से होगा शुद्ध, जानिए नगर निगम की क्या है तैयारी
मेरठ के दो नालों का गंदा पानी साफ करने को नगर निगम की तैयारी

मेरठ, जागरण संवाददाता। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कसेरूखेड़ा नाले ( आबूनाला-एक) में बायो रेमेडिएशन तकनीक से नाले के गंदे पानी को शुद्ध करने की प्रक्रिया के बाद अब नगर निगम ओडियन और आबूनाला-दो के गंदे पानी के शुद्धीकरण के लिए भी इसी तकनीक पर काम करने जा रहा है। बायो रेमेडिएशन के साथ ही फाइटो रेमेडिएशन तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाएगा। नगर निगम ने 23 अक्टूबर को टेंडर निकाल दिया है। टेंडर के जरिए कंपनियों से प्रस्ताव मांगे गए हैं।

छह नवंबर को खोली जाएगी तकनीकी बिड

महाप्रबंध जलकल कुमार गौरव के अनुसार आबूनाला-दो बेगमपुल से काली नदी तक है और ओडियन नाला ब्रह्मपुरी से काली नदी तक है। दोनों नालों में बायो रेमेडिएशन तकनीक के डोजिंग पंप बायोकल्चर मिलाने के लिए लगाए जाएंगे। इसके साथ ही दोनों नालों में फाइटो रेमेडिएशन तकनीक का उपयोग भी किया जाएगा। टेंडर के जरिए कंपनियों से नालों के सर्वे, प्रोजेक्ट की डिजाइन, मेंटीनेंस, संचालन आदि के संबंध में प्रस्ताव मांगे गए हैं। छह नवंबर को तकनीकी बिड खोली जाएगी। इसके बाद कंपनियों के साथ बैठक पर प्रस्ताव पर चर्चा की जाएगी। तकनीकी व फाइनेंशियल बिड के आधार पर ही एक कंपनी को काम सौंपा जाएगा। महाप्रबंधक जलकल कुमार गौरव ने बताया कि कसेरूखेड़ा नाले के गंदे पानी को शुद्ध करने के लिए बायो रेमेडिएशन तकनीक का इस्तेमाल दो माह से हो रहा है। अभी तक ट्रीटेड पानी की जो रिपोर्ट आयी है। उसमें पानी की गुणवत्ता मेंं सुधार पाया गया है। अब कसेरूखेड़ा नाले में फाइटो रेमेडिएशन तकनीक के इस्तेमाल की तैयारी है। अनुबंधित एजेंसी को इसकी शुरुआत करने के लिए निर्देशित कर दिया गया है।

ये हैं दोनों तकनीक

बायो रेमेडिएशन तकनीक

इस तकनीक में नालों पर जलप्रवाह की विपरीत दिशा में डोजिंग प्लांट लगाए जाते हैं। नाले के गंदे पानी में डोजिंग प्लांट से 24 घंटे निरंतर एक प्रकार का बायो कल्चर डाला जाता है। जिससे गंदे पानी में माइक्रोब्स पैदा हो जाते हैं। वे गंदगी को खा जाते हैं। ये माइक्रोब्स पानी में पहले से होते हैं, लेकिन सुप्त अवस्था में पाए जाते हैं। बायो कल्चर के जरिए इन्हें सक्रिय किया जाता है। इस तरह बायोरेमेडिएशन तकनीक के जरिए गंदे पानी का ट्रीटमेंट किया जाता है।

फाइटो रेमेडिएशन तकनीक

इस तकनीक में नाले में कुछ -कुछ दूरी पर पत्थर की एक लेयर बनाई जाती है। छोड़े गए स्थान पर जलीय पौधे जैसे क्याना, कोलेशिया, केटटेल, छोटा बैंबू आदि लगाए जाते हैं। इन पौधों की जड़े जाल का काम करती हैं। पहले पत्थर की लेयर से नाले का पानी गुजरता है। फिर पौधों की जड़ों से होकर। जो स्लज को रोक लेते हैं। जड़ें पानी में घुली नाइट्रेट व फास्फेट को अवशोषित कर लेती हैं और आक्सीजन को पानी में छोड़ती हैं। इस तरह गंदे पानी को शुद्ध किया जाता है।

chat bot
आपका साथी