धर्म समाज की रक्षा करने में सक्षम : लक्ष्मी त्रिपाठी
एक औरत होना आसान बात नहीं है। यह एक संघर्ष की शुरुआतभर है।
मेरठ, जेएनएन। 'एक औरत होना आसान बात नहीं है। यह एक संघर्ष की शुरुआतभर है। जब मेरा जन्म हुआ तो घरवाले मुझे लड़का मानते थे, जबकि मैं लड़की थी। लोग आज भी पूछते हैं कि आपको कब पता चला कि आप अलग हैं? मैं कहती हूं, मुझे तो कभी पता नहीं चला। अलग होने का अहसास तो मुझे समाज ने कराया।' यह कहना है आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का। वे श्री सीमेंट के सहयोग से प्रभा खेतान फाउंडेशन और अहसास वूमेन आफ मेरठ की ओर से आयोजित कलम विशेष सत्र में बतौर अतिथि वक्ता बोल रहीं थीं। दैनिक जागरण इस कार्यक्रम का मीडिया पार्टनर था। जूम पर आयोजित इस कार्यक्रम में न्यूयार्क से उन्नति सिंह ने अतिथि का स्वागत किया और अपरा कुच्छल ने उनसे बातचीत की। त्रिपाठी ने कहा कि संघर्ष ही जीवन है, जीवन ही संघर्ष है। अपनी पुस्तक 'मैं हिजड़ा, मैं लक्ष्मी' को लेकर उन्होंने कहा कि ट्रासजेंडरों की जिंदगी पर कोई किताब नहीं थी, इसलिए मेरी जीवन यात्रा पर मराठी, हिंदी और अंग्रेजी में यह किताब आई। 'रेड लिपस्टिक : द मेन इन माई लाइफ' मेरी जिंदगी के सारे मर्द, जिनमें मेरे पिता भी शामिल हैं, पर लिखी पुस्तक है। तीसरी किताब 'नारी की नजर से धर्म' आ रही है।
कोरोना से सावधानी की अपील करते हुए उन्होंने कहा कि मास्क पहनना, सैनिटाइजर लगाना, दो गज की दूरी जरूरी है, कोरोना कहीं गया नहीं है। त्रिपाठी ने कहा, महामंडलेश्वर के रूप में धर्म रक्षा का दायित्व है। पर इसका असली अर्थ है कि हम धर्म में शरणागत होकर रहें। धर्म स्वयं में प्रबल है, वह अपनी रक्षा करने के साथ ही समाज और मनुष्य की रक्षा करने में सक्षम है। त्रिपाठी ने कहा कि हमारी पीढ़ी और वर्तमान पीढ़ी को समझना होगा कि समय बदल रहा है और हमें इस बदलाव का हिस्सा बनना होगा।