शमशेर बहादुर सिंह पुण्यतिथि: झरने की तरह तड़प रहा हूं, मुझको सूरज की किरणों में जलने दो..
शमशेर बहादुर सिंह पुण्यतिथि हिंदी साहित्य में अपनी अलग विधा के लिए प्रख्यात साहित्यकार शमशेर बहादुर सिंह हैं । महामारी का खौफ हो या कुछ और लेकिन बुधवार को पुण्यतिथि पर साहित्यकारों ने उन्हें भुला दिया ।
मेरठ, [ओम बाजपेयी]। उर्वर दोआब वाले मेरठ परिक्षेत्र ने कला और साहित्य के फूल भी खिले हैं। हिंदी साहित्य में अपनी अलग विधा के लिए प्रख्यात साहित्यकार शमशेर बहादुर सिंह हैं। महामारी का खौफ हो या कुछ और, लेकिन बुधवार को पुण्यतिथि पर साहित्यकारों ने उन्हें भुला दिया। वह पूर्व में मुजफ्फरनगर व वर्तमान में शामली के एलम के निवासी थे।
वर्तमान में जैसे हालात हैं, कमोबेश वैसी ही परिस्थितियों का शिकार शमशेर बहादुर अपने जीवन काल हुए थे। शमशेर बहादुर जब आठ वर्ष के थे, उनके सिर से मां प्रभुदेयी देवी का साया उठ गया। 24 वर्ष के थे तो उनकी पत्नी का निधन तपेदिक से हो गया। इसके बाद उन्होंने लंबा एकाकी जीवन व्यतीत किया। कवि यश मालवीय कहते हैं-साहित्यकार दूधनाथ सिंह का शमशेर बहादुर से लंबा संपर्क रहा। उन्होंने शमशेर से अपने संस्मरणों और उनकी रचनाओं की समीक्षा पर आधारित पुस्तक एक शमशेर भी है लिखी थी। यश मालवीय कहते हैं, मां और पत्नी को असमय खो देने की पीड़ा उनकी रचनाओं में महसूस होती है। उनकी लंबी कविता टूटी हुई बिखरी हुई आज के माहौल का स्पंदन महसूस किया जा सकता है। वह पैदा हुआ है जो मेरी मत्यु संवारने वाला है।
इसी कविता दूसरा अंश है-
एक झरने की तरह तड़प रहा हूं।
मुझको सूरज की किरणों में जलने दो।
जीवन परिचय
शमशेर बहादुर
जन्म 13 जनवरी 1911
निधन 12 मई 1993
प्रमुख काव्य संग्रह
चुका भी हूं नहीं मैं
टूटी हुई बिखरी हुई
काल तुझसे होड़ है मेरी
उदिता
बात बोलेगी
प्रमुख गद्य रचनाएं
दो आब ’ प्लाट का मोर्चा
सम्मान
साहित्य अकादमी पुरस्कार, मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार, कबीर सम्मान
प्रगति, शोध छात्र ’
यश मालवीय ’
खुद को वह मुजफ्फरनगरी कहते थे..
‘चुका भी हूं नहीं’ में क्रांति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले कवि शमशेर सिंह कविता में बिंबों के माध्यम से अपनी बात कहते थे। मुजफ्फरनगर के विश्रंति वशिष्ठ की पुस्तक शमशेर विमर्श पुस्तक में उन्हीं का लिखा शेर है-
जी को लगती है तेरी बात खरी है शायद, वही शमशेर मुजफ्फरनगरी है शायद।
शमशेर बहादुर के संपर्क में आए लोग बताते हैं कि बोलचाल में अक्खड़पन और चरित्र में दृढ़ता थी। मेरठ में भी उनका कुछ समय गुजरा। उनकी बहन मेरठ में रहती थीं। कवि यश मालवीय बताते हैं कि नौचंदी मेले की एतिहासिकता से संबंध एक अध्ययन को लेकर वह मेरठ में सवा महीने रुके थे। मोती प्रयाग निवासी प्रगति ने मेरठ कालेज से शमशेर बहादुर सिंह के साहित्य में समकालीन बोध विषय पर शोध किया है। बताती हैं कि वह मात्र प्रेम और सौंदर्य के कवि नहीं हैं। राजनीतिक स्थितियों, युद्ध शांति, गरीबी, दंगे, सामाजिक अव्यवस्था, मध्यम वर्ग की छटपटाहट को क्रांतियों में बखूबी उकेरा है। हिंदी-उर्दू और गंगा जमुनी तहजीब पर उनकी गद्य पुस्तक दोआब खासी चर्चित रही है।