कोरोना की तीसरी लहर से घबराने की जरूरत नहीं, बच्‍चों को कोरोना से बचाएगा शरीर का ये अहम अंग

COVID 3rd Wave Impact on Child खुश खबर चिकित्सकों की रिपोर्ट तीसरी लहर से बच्चों को खास खतरा नहीं। शासन को भेजा प्रेजेंटेशन सिर्फ 8-10 फीसद बच्चे होंगे संक्रमित। बच्चों के शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली और खून की स्वस्थ नसें उन्हें संभावित तीसरी लहर से भी बचा लेंगी।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 08:00 AM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 06:11 PM (IST)
कोरोना की तीसरी लहर से घबराने की जरूरत नहीं, बच्‍चों को कोरोना से बचाएगा शरीर का ये अहम अंग
बच्चों को कोरोना से बचाएंगी खून की स्वस्थ नसें।

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। कोरोना महामारी की दूसरी लहर निकल गई, लेकिन वायरस बच्चों की सेहत से खेल नहीं पाया। चिकित्सकों का दावा है कि बच्चों के शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली और खून की स्वस्थ नसें उन्हें संभावित तीसरी लहर से भी बचा लेंगी। बच्चों का फेफड़ा वयस्कों की तुलना में संक्रमण से लडऩे में ज्यादा कारगर होता है। उनमें कोमार्बिडिटी न होने की वजह से मृत्यु दर भी काफी कम रही। हालांकि तीसरी लहर से बचने के लिए एहतियात के तौर पर मेरठ में 600 पीडियाट्रिक बेड बनाने की सिफारिश की गई है।

0.7 फीसद ही आइसीयू में भर्ती

बाल रोग विशेषज्ञ डा. अमित उपाध्याय ने हाल ही में जिलाधिकारी के. बालाजी के समक्ष प्रेजेंटेशन दिया। उन्होंने पहली और दूसरी लहर के दौरान संक्रमण की चाल का वैज्ञानिक अध्ययन सामने रखते हुए बताया कि दोनों लहरों में कुल संक्रमितों में बच्चों की भागीदारी महज 8-10 फीसद ही रही। इसके अलावा महज 0.7 फीसद बच्चे ही आइसीयू में भर्ती हुए या उनकी मौत हुई। डाक्टर ने बताया कि पांच फैक्टर ऐसे हैं, जिनकी वजह से 18 साल तक बच्चे काफी हद तक सुरक्षित हैं।

पांच कारण, जिनसे बच्चे सुरक्षित

1. इनेट इम्युनिटी : जन्मजात प्रतिरोधक क्षमता। यह प्रतिरोधक क्षमता बच्चों में बेहतर मिलती है। नवजातों में स्तनपान के दौरान मां से इम्युनोग्लोबलिन्स ट्रांसफर होते हैं। सालभर प्रतिरोधक क्षमता मिलती है।

2. संक्रमण से संपर्क कम : कोरोना की पहली और दूसरी लहर में स्कूल और स्टेडियम बंद कर दिए गए। बच्चे बेवजह सामाजिक तौर पर होने वाली भीड़ में नहीं जाते। उनका अस्पतालों में भी आना जाना कम है, ऐसे में सुरक्षित रहते हैं।

3. खून की स्वस्थ नसें : बच्चों में थ्रंबोसिस यानी खून में थक्का बनने का खतरा कम होता है। उनकी खून की नसें स्वस्थ होती हैं। नसों के अंदर की एंडोथीलियम परत जल्द डैमेज नहीं होती। इसके डैमेज होने पर ही टिस्यू फैक्टर रिलीज होकर थक्के का खतरा बढ़ाते हैं।

4. एल्युवेलर इपीथीलियम रिजनरेशन की बेहतर क्षमता : बच्चे धूमपान नहीं करते। प्रदूषण के संपर्क में कम रहने व सीओपीडी जैसी बीमारियों से बचे रहते हैं, जिससे फेफड़े स्वस्थ रहते हैं। फेफड़ों के अंदर जहां गैस एक्सचेंज होती है, बच्चों में वहां की इपीथीलियम परत ज्यादा स्वस्थ होती है। ऐसे में कम आक्सीजन भी खून तक पहुंच जाती है जो निमोनिया को गंभीर होने से रोकेगी।

5. रिसेप्टर : बच्चों में वयस्कों की तुलना में एसीई-2 रिसेप्टर कम होते हैं, जिससे संक्रमण जल्द नहीं पकड़ता। एसीई-2 एक प्रकार का प्रोटीन है, जो कोशिकाओं पर चिपका रहता है। यही रिसेप्टर कोरोना वायरस को कोशिकाओं से सम्बद्ध करता है।

इनका कहना है...

बच्चे प्राकृतिक रूप से कोरोना वायरस से लड़ने में वयस्कों से ज्यादा सुरक्षित हैं। पहली और दूसरी लहर में उनमें करीब 8-10 फीसद ही संक्रमण मिला। मौत की दर 0.7 फीसद से कम रही। बच्चों में संक्रमण से एक्सपोजर, कोमार्बिडिटी व खून का थक्का बनने का रिस्क कम है, साथ ही एसीई-2 रिपेस्टर की कमी उन्हें कोरोना के संक्रमण से बचाती है। बच्चों के लिए वैक्सीन भी अब जल्द उपलब्ध हो जाएगी।

- डा. अमित उपाध्याय, बाल रोग विशेषज्ञ

chat bot
आपका साथी