पराली जलाने से होता है बड़ा नुकसान, खेतों में मिलाने से होगा यह फायदा, उप कृषि निदेशक मेरठ ने किसानों को दी सलाह
मेरठ में कृषि विभाग की ओर से जिले के सभी गन्ना परिषदों को मल्चिंग मशीनें उपलब्ध कराई गई हैं। यह किसानों को किराये पर मिलती हैं। गन्ने के अवशेष खेत में मल्चिंग करने से प्रति एकड़ 50 किलो यूरिया की बचत होती है।
मेरठ, जागरण संवाददाता। उप कृषि निदेशक ब्रजेश चंद्र ने किसानों को सलाह दी है कि वह खेत में गन्ने के अवशेष को न जलाएं। उन्होंने कहा कि जलाने की बजाय इसे मल्चिंग की सहायता से खेत में मिश्रित कर दें। गन्ने के अवशेष को जलाने के नुकसान बताते हुए उन्होंने कहा कि एक ग्राम मिट्टी में लगभग एक लाख जीवाणु होते हैं। जो जलाने पर 80 से 100 डिग्री तापमान के बीच खत्म हो जाते हैं। यह जीवाणु फसल के लिए अहम योगदान रखते हैं। जीवाणु का भोजन जीवाश्म होता है।
ऐसे बढ़ेेेेगी खेत की उर्वरा क्षमता
उन्होंने बताया कि एक हेक्टेयर में दस टन पराली जलती है, जिससे कई लाख गुना धुएं के रूप में हानिकारक गैस निकलती हैं। यह गैस हमारे पर्यावरण में जहर घोलता है। सबसे बड़ा नुकसान ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है। उन्होंने बताया कि जलाने के काफी नुकसान हैं। इसकी जगह यदि गन्ने के अवशेष को खेत में ही छोटी पत्ती के रूप में मिला दिया जाए तो यह खेत की उर्वरा क्षमता बढ़ाने में काफी कारगर होता है। बताया कि कृषि विभाग की ओर से जिले के सभी गन्ना परिषदों को मल्चिंग मशीनें उपलब्ध कराई गई हैं। यह किसानों को किराये पर मिलती हैं। गन्ने के अवशेष खेत में मल्चिंग करने से प्रति एकड़ 50 किलो यूरिया की बचत होती है। उन्होंने किसानों को जैविक विधि व जैविक रसायन से खेती करने की सलाह दी। गन्ने के पुराने बीज को खेत में बुवाई के समय न इस्तेमाल करने की सलाह देते हुए नये बीज को लगाने का सुझाव दिया।