Meerut: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने पीएम को लिखा पत्र, कहा- राष्ट्रगान में 'सिंध' की जगह जुड़े कोई दूसरा शब्द

उत्‍तर प्रदेश के मेरठ से एक स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी ने पीएम को पत्र लिखकर मांग की है कि राष्‍ट्रगान में में से सिंध शब्‍द को हटा दिया जाए। इसको लेकर स्‍वतंत्रता सेनानी ने तर्क से यह बताने की कोशिश की है कि ऐसा क्‍यों होना चाहिए।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 01:58 PM (IST) Updated:Mon, 26 Oct 2020 10:42 PM (IST)
Meerut: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने पीएम को लिखा पत्र, कहा- राष्ट्रगान में 'सिंध' की जगह जुड़े कोई दूसरा शब्द
मेरठ के स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी अमरनाथ गुप्‍ता।

मेरठ, [विवेक राव]।  जन-गण-मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता। पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्राविड़, उत्कल, बंग...। राष्ट्रगान देश के स्वाभिमान और पहचान का गीत है, जिसका गान कर हर भारतीय गर्व महसूस करता है। राष्ट्रगान में कई प्रांतों का उल्लेख है। इसमें 'सिंध' शब्द को लेकर मेरठ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमरनाथ गुप्ता ने सवाल उठाया है। उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। 

पत्र में कहा है कि राष्ट्रगान में शामिल सभी प्रांत भारत में हैं लेकिन सिंध पाकिस्तान में है। उन्होंने सरकार को सुझाव दिया है कि अनुच्छेद 370 और 35ए खत्म हो चुका है। जम्मू कश्मीर पूरी तरह से भारतीय तिरंगे के नीचे है। ऐसे में राष्ट्रगान में 'सिंध' की जगह 'कश्‍मीर' अथवा कोई अन्य औचित्यपूर्ण शब्द लिखा जाना चाहिए।

अपनी जमीन बेचकर आए सिंध के लोग 

अमरनाथ बताते हैं कि विभाजन के समय सरदार पटेल ने पंजाब, बंगाल और सिंध प्रांतों के नेताओं से कहा था कि वह आवाज उठाएंगे। अगर विभाजन हो रहा है तो पंजाब, बंगाल और सिंध भी आधा बंटेगा। आधा पाकिस्तान में जाएगा, आधा भारत में। उस समय पंजाब में भीम सेन सच्चर और गोपीचंद भार्गव नेता थे। बंगाल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। इन दो प्रांतों से तो आवाज उठाई गई लेकिन सिंध के लोग अपनी जमीन, जायदाद अच्छे दामों में बेचकर भारत आ गए। इस तरह सिंध का बंटवारा पंजाब और बंगाल की तरह नहीं हो सकता। नतीजा सिंध पूरी तरह से पाकिस्तान का हो गया। 

उखाड़ फेंका था अंग्रेजों का झंडा 

मेरठ सदर में रहने वाले अमरनाथ गुप्ता ने नौ अगस्त 1942 को सीएबी स्कूल पर लगे अंग्रेजों के झंडे को उखाड़ फेंका था। उस समय उनकी आयु 14 साल थी। 1946 तक उन्हें शहर के किसी स्कूल में दाखिला नहीं मिला। वे अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करते रहे। आजादी के साथ 1947 में मेरठ कालेज में उन्हें दसवीं में प्रवेश मिला। उनका कहना है कि जो सपना देखा था, वह धीरे-धीरे पूरा हो रहा है। 

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