Airport In Meerut: आखिर मेरठ की उड़ान से वास्ता क्यों नहीं रखती सरकार, पढ़िए यह खास रिपोर्ट

Airport In Meerut मेरठ में हवाई सेवा के लिए हर मानक पर फिट बैठने के बावजूद हो रही लगतार उपेक्षा। सालों से उडऩे का सपना संजोए बैठे मेरठ का हवाई अड्डा आज भी हवा में ही है। लोगों के भीतर उड़ान को लेकर एक दर्द भी है।

By Prem Dutt BhattEdited By: Publish:Sat, 27 Nov 2021 07:45 AM (IST) Updated:Sat, 27 Nov 2021 09:56 AM (IST)
Airport In Meerut: आखिर मेरठ की उड़ान से वास्ता क्यों नहीं रखती सरकार, पढ़िए यह खास रिपोर्ट
कभी केंद्र तो कभी राज्य सरकार ने मेरठवासियों का सम्मान झकझोरा।

रवि प्रकाश तिवारी, मेरठ। Airport In Meerut जेवर में हवाई अड्डे के शिलान्यास कार्यक्रम के बाद एक बार फिर मेरठ के लोगों में उसके हक की अनदेखी की बहस छिड़ गई है। जेवर में एयरपोर्ट के शिलान्यास की खुशी यहां भी है मगर मेरठ की लगातार उपेक्षा का मलाल भी है। बार-बार मेरठ के हक को मारकर पास-पड़ोस की झोली भरने और मेरठ के नाम पर तमाम अड़चनें गिनाने को लेकर अब यहां का आम शहरी भी मुखर होने लगा है। सालों से उडऩे का सपना संजोए बैठे मेरठ का हवाई अड्डा आज भी हवा में ही है। उड़ान योजना में मेरठ से छोटे शहरों से भी जहाज उडऩे लगे, लेकिन यहां योजना पर मंथन ही चल रहा है।

गिना दिए सौ बहाने

कभी इंटरनल रेट आफ रिटर्न का रोना तो कभी अधिग्रहण का। कभी जीएमआर के अनुबंध का जिक्र तो कभी कुछ और...। कुल मिलाकर मेरठ को उड़ान न देने के अब तक सौ बहाने तो गिना दिए गए, लेकिन इन्हीं कसौटियों पर बरेली, हिंडन और जेवर जैसे शहरों को तोहफा दिया गया। यात्रियों की उपलब्धता, ऐतिहासिकता, पौराणिकता, प्रशासनिक केंद्र, शहर के अस्तित्व, औद्योगिक और शैक्षणिक मजबूती की कसौटी पर भी मेरठ तमाम शहरों से ऊपर का स्थान रखता है, लेकिन बात जब सुविधाओं और सेवाओं का आती है तो मेरठ के प्रति किसी का मोह नहीं झलकता। चाहे वो केंद्र सरकार हो या राज्य।

सात साल बाद भी खाली हाथ

हवाई अड्डे का सपना मेरठ में साकार होगा, इसकी बुनियाद 4 जुलाई, 2014 में रखी गई, लेकिन सात साल बाद भी वह खोखली साबित हुई। सात साल में हम आज भी वहीं खड़े हैं। एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया को सौंपने के बावजूद यहां की हवाई पट्टी पर एक ईंटा नहीं रखा गया। तब से अब तक सिफ बातें हुईं, बहाने हुए। मेरठ की कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी यह प्रमाण है कि आज भी यहां के जनप्रतिनिधि हवाई उड़ान को लेकर कोई ठोस बात नहीं कर सकते। विडंबना ही है कि मेरठ की लगभग 10 हजार करोड़ की इंडस्ट्री, 200 से ज्यादा शिक्षण संस्थान, पश्चिमी उप्र का सबसे बड़ा चिकित्सा हब भी सरकारों को उड़ान के लिए आकर्षित नहीं कर पा रहा।

1992 में रखी गई हवाई पट्टी की नींव

मेरठ के परतापुर में 1992 में हवाई पट्टी की नींव रखी गई थी। चार्टर्ड प्लेन, राजकीय विमान और हेलीकाप्टर मेरठ में उतरने लगे। एनसीआर के प्रमुख महानगर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजधानी का रसूख रखने वाले मेरठ ने तभी से उड़ान भरने के सपने संजोने शुरू किए। जनता के इस सपने को सियासतदां भांप गए, लिहाजा मेरठ का हवाई अड्डा सियासी नारों में खूब गूंजा। पक्ष-विपक्ष सभी ने अपने हिसाब से आश्वासन दिया, व्यंग्य कसा, कोसा भी। एक बार फिर चुनावी बिसात बिछने को है। पुराने सपने के नए नारे गढ़े जाएंगे लेकिन मेरठ आज भी वहीं खड़ा रह गया, जहां खड़ा था। शहरवासी ठगे गए, दशकों से बरगलाए गए। सत्ता पक्ष के पास अब कोई बहाना भी नहीं बचा।

मेरठ : हाल उड़ान का

- 1992 : मुख्यमंत्री मायावती द्वारा डा. भीमराव आंबेडकर हवाई पट्टी की स्थापना

- 2012 : नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह द्वारा मेरठ में हवाई अड्डे की घोषणा

- 2014 : हवाई अड्डे की खातिर 47 एकड़ की हवाई पट्टी 4 जुलाई को एएआइ को सौंपी गई

- 2014 : 13 दिसंबर को तय हुआ कि किसानों से 5800 के रेट पर खरीदी जाएगी जमीन

- 2015 : अप्रैल में लखनऊ में हुई बैठक में घाटे का सौदा बताकर एएआइ ने फिलहाल प्रोजेक्ट होल्ड करने की बात कही

- 2017 : उड़ान की संभावना तलाशने और डीपीआर के लिए मार्च में केरल की किटको कंपनी को सौंपा गया जिम्मा

- 2018 : योगी सरकार ने मेरठ हवाई अड्डे का मांगा मास्टर प्लान

- 2019 : लंबे इंतजार के बाद फरवरी के तीसरे सप्ताह में उड़ान योजना में मेरठ शामिल। लखनऊ और प्रयागराज का रूट मिला

- 2019 : जूम एयरलाइंस को मेरठ से उड़ान की जिम्मेदारी सौंपी गई

- 2021 : अगस्त में नई राह तलाशने को कमिश्नर, सांसद और उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुलाकात

अजित सिंह ने तो यहां तक कहा था...

साल 2012 में दैनिक जागरण के कार्यक्रम चलो आज कल बनाते हैं, में बतौर मुख्य अतिथि तत्कालीन उड्डयन मंत्री चौधरी अजित सिंह ने मेरठ को बड़ा सपना दिया था। उन्होंने कहा था कि मेरठ हवाई पट्टी पर वह हैदराबाद व तमिलनाडु के होसुर की तरह 600 करोड़ की लागत से विमान रखरखाव, मरम्मत एवं ओवर हाल (एमआरओ) सेवा शुरू कराने के इच्छुक हैं, ताकि देश-विदेश से विमान यहां ठीक होने के लिए आएं। पूर्व में ऐसा ही एक प्रोजेक्ट महाराष्ट्र के हिस्से में जा चुका है। यदि यह प्रोजेक्ट मेरठ में लांच हुआ तो निश्चित रूप से यहां का जबरदस्त आर्थिक विकास होगा। वैसे भी मेरठ मंडल समेत पूरे पश्चिमी उप्र में 18 हजार करोड़ का दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कारीडोर लांच होने वाला है। उसपर कार्य चल रहा है। ऐसे में इस प्रोजेक्ट के लांच होने पर मंडल के बेरोजगारों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और औद्योगिक विकास भी होगा।

जरा यह भी जान लीजिए

क्या जरूरी है उड़ान के लिए, कितनी चाहिए जमीन

मेरठ से उड़ान का सबसे बड़ा पेच जमीन का है। एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया को हवाई अड्डा निर्माण के लिए जमीन चाहिए जो राज्य सरकार अब तक दे नहीं पायी है। या कहें अधिग्रहित भी नहीं कर सकी है। तकनीकी पहलू को समझें तो किसी भी व्यावसायिक उड़ान के लिए निर्धारित न्यूनतम मानकों को पूरा किए बिना लाइसेंस नहीं मिलता। 50 सीटर विमान की खातिर रनवे की लंबाई कम से कम 1800 मीटर और चौड़ाई 30 मीटर होनी चाहिए। इसके अलावा बड़ा भू-भाग खाली छोडऩा पड़ता है। वर्तमान में मेरठ की हवाई पट्टी की चौड़ाई 23 मीटर और लंबाई 1500 मीटर है। ऐसे में 50 सीटर विमान उड़ाने से पहले रनवे की लंबाई-चौड़ाई बढ़ानी होगी। एयर ट्रैफिक कंट्रोल टावर, टर्मिनल बिल्डिंग, फायर सर्विस का स्थान और एंबुलेंस आदि की भी व्यवस्था करनी होगी। इसकी खातिर एएआइ ने वर्तमान में उपलब्ध जमीन 47 एकड़ के अलावा और 227 एकड़ भूमि की जरूरत पहले से बताई हुई है। इसमें सरकारी विभागों सहित वन विभाग की कुल 86 एकड़ भूमि एएआइ को ट्रांसफर होनी है। अगर सरकारी जमीनों का ट्रांसफर हो भी जाता है तो भी 141 एकड़ अतिरिक्त जमीन की जरूरत होगी।

एक एकड़ की कीमत करीब तीन करोड़

एयरपोर्ट बनाने के लिए किसानों की जमीन का अधिग्रहण करना पड़ेगा। वर्ष 2014 में जिला प्रशासन द्वारा तय की गई दर के अनुसार प्रति एकड़ लगभग तीन करोड़ रुपये खर्च बैठेगा। यानी, एयरपोर्ट चलाने के लिए प्रदेश सरकार को 520 करोड़ रुपये प्रथम चरण में सिर्फ आवश्यक भूमि अधिग्रहण पर खर्च करने होंगे। इसके बाद एएआइ को भी निर्माण कार्य में कम से कम 100 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।

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