उपलब्धियों में झलकता है गुरु 'द्रोण' का अक्स

प्राचीन भारत में चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु विष्णु गुप्त चाणक्य हों या फिर आधुनिक भारत में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के गुरु रमाकांत विठ्ठल आचरेकर।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 05 Sep 2019 03:00 AM (IST) Updated:Thu, 05 Sep 2019 06:33 AM (IST)
उपलब्धियों में झलकता है गुरु 'द्रोण' का अक्स
उपलब्धियों में झलकता है गुरु 'द्रोण' का अक्स

मेरठ, जेएनएन : प्राचीन भारत में चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु विष्णु गुप्त चाणक्य हों या फिर आधुनिक भारत में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के गुरु रमाकांत विठ्ठल आचरेकर। उनके कठिन परिश्रम, सटीक मार्गदर्शन और प्रशिक्षण ने ही एक को भारत का चक्रवर्ती सम्राट तो दूसरे को क्रिकेट के भगवान का दर्जा दिलाया। इसी तरह हर किसी के जीवन में गुरु का विशेष महत्व रहता है। गुरुओं ने किसी को पढ़ाकर आगे बढ़ाया तो किसी को खूब खेलने का अवसर देकर महान बनाया। मेरठ की धरती पर जन्मे एक से बढ़कर एक खिलाड़ियों को भी उनके गुरुओं ने उसी मेहनत से तराशा है। तभी तो हर खेल में मेरठ के खिलाड़ी दुनिया फतह करने में जुटे हैं। शहर के उदीयमान खिलाड़ी इस शिक्षक दिवस पर अपने सफलता में उन्हीं गुरुओं का अक्स देख रहे हैं और उन्हें इस सफलता के योग्य बनाने के लिए कोटि-कोटि नमन कर रहे हैं।

पिता की तरह संभाला, गुरु बनकर बनाया

क्रिकेट मैदान की पिच पर सफलता की ओर बढ़े मेरे हर कदम पर मार्गदर्शन और प्रशिक्षण मेरे कोच संजय रस्तोगी का रहा है। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी। उन्होंने आर्थिक मदद करने के साथ ही प्रशिक्षण में भी मदद की। अपने बच्चे की तरह पाला और गुरु बनकर मेरे हुनर को तराशा। छोटी उम्र से ही मैं उन्हीं के संरक्षण में प्रशिक्षण लेता आ रहा हूं। मैदान पर उन्होंने कभी कोई नरमी नहीं दिखाई और ग्राउंड के बाहर कभी सख्त नहीं दिखे। जिले की टीम से प्रदेश की टीम तक और अब इंडिया टीम का हिस्सा बनने के बाद भी वह मेरे प्रदर्शन पर नजर रखते हैं। गलत खेल का प्रदर्शन करने पर बताते हैं और सही मार्गदर्शन भी देते हैं। बल्लेबाजी करने के दौरान उनकी हर सीख को मैं याद रखता हूं, जिससे गलती की गुंजाइश कम रहे।

-प्रियम गर्ग, क्रिकेटर

हर दांव में छिपी है गुरुजनों की सीख

एक पहलवान के तौर पर मेरा हर दांव मेरे गुरु की देन है। हर दांव की काट और उसे अपना हथियार बनाने की कला हमारे उस्ताद ही हमें सिखाते हैं। मेरे जीवन में कुश्ती गुरु प्रेमनाथ की सीख का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उनके बाद राजकुमार गोस्वामी जी से भी मुझे जो दांवपेच सीखने को मिले उनसे मैंने पहलवान के तौर पर स्वयं को स्थापित किया। गुरु का स्थान माता-पिता से ऊंचा होता है। वही हमारे जीवन और भविष्य के निर्माता होते हैं। स्कूल में पढ़ाई से लेकर कुश्ती के शुरुआती दांव-पेच सिखाने में अहम योगदान देने वाले गुरुजनों को हृदय से नमन करती हूं। सीसीएसयू में पढ़ाई और प्रशिक्षण के दौरान कुश्ती कोच डा. जबर सिंह सोम के मार्गदर्शन में कई कुश्ती प्रतियोगिताओं में सफलता भी मिली। उन्हीं के मार्गदर्शन में हरियाणा की प्रतियोगिता में गीता फोगाट को हराने के बाद मेरा आत्मविश्वास और बढ़ता गया।

-दिव्या काकरान, पहलवान

गुरुजी..रवि की तो लाइफ बन गई

महज डेढ़ साल की उम्र में लकवा से पीड़ित होने के बाद किसी तरह परिजनों ने पाल-पोशकर बड़ा किया। आधा शरीर किसी तरह काम करता है। पिता रणवीर सिंह के साथ मिट्टी के बर्तन का काम करते हुए तीन साल पहले एथलेटिक्स कोच गौरव त्यागी से मुलाकात होने के बाद मेरा जीवन ही बदल गया। मैं जहां मुश्किल से चल पाता था, वहीं अब 100 और 200 मीटर की दौड़ लगा रहा हूं। इतना ही नहीं पेरिस में आयेाजित ओपन व‌र्ल्ड पैरा एथलेटिक्स ग्रांड प्रिक्स में स्वर्ण पदक जीतकर लौटा हूं। मेरे इस आत्मविश्वास और प्रदर्शन का कारण मेरे कोच ही हैं। पेरिस में चिकित्सकों के मेडिकल परीक्षण के बाद दिव्यांगता में मेरी कैटेगरी टी-35 हो गई है। मैंने इसकी जानकारी सबसे पहले उन्हीं को दी और बताया कि मेरी लाइफ बन गई। अब इसी महीने व‌र्ल्ड चैंपियनशिप के लिए क्वालीफाई करूंगा और उसके बाद पैरालिंपिक मेरा अगला लक्ष्य होगा। तभी गुरु गौरव की मेहनत को सार्थक कर सकूंगा।

-रवि कुमार, पैरा एथलीट

मेरे गुरु की कॉल मेरे लिए दवा का कार्य करती है

मुझे हमेशा से ही युद्धकला वाले खेल पसंद हैं। इसीलिए मैंने 2007 में वुशू प्रशिक्षण लेना शुरू किया। साल 2009 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक और बेस्ट प्लेयर का खिताब जीता। मैंने अपने प्रदेश और देश के लिए ढेरों पदक जीते हैं। वैसे तो एक खिलाड़ी के प्रशिक्षण और खेल के दौरान बहुत सारे कोच आते हैं, जो समय-समय पर मार्गदर्शन करते रहते हैं। इन सभी में कोई एक ऐसा गुरु जरूर होता है जिसका साथ हर पल प्रोत्साहित करता रहता है। मेरे जीवन में मेरे ऐसे कोच कुलदीप हांडू हैं, जो जम्मू-कश्मीर पुलिस में डीएसपी भी हैं। वह इंडिया वुशू टीम के प्रमुख कोच हैं और स्वयं भी 11 बार नेशनल चैंपियन और अंतरराष्ट्रीय वुशू खिलाड़ी रहे हैं। मैं उनके साथ कैंप में रहूं या न रहूं, वह हमेशा फोन कर प्रशिक्षण के बारे में पूछते रहते हैं। उनका फोन कॉल मेरे लिए मेडिसन का कार्य करता है और मैं अपनी ट्रेनिंग जारी रखता हूं। उनके शब्द मुझे बिना रुके, बिना थके अभ्यास करते रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मेरी नजर में गुरु का दर्जा भगवान के समान है। मेरे पिता भी शिक्षक हैं। मेरा मानना है कि एक खिलाड़ी को आगे बढ़ाने के पीछे प्रशिक्षक का बहुत बड़ा योगदान है।

-उचित शर्मा, वुशू खिलाड़ी

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