Meerut मंडल में 341 वेंटिलेटर खाली पड़े लेकिन शहर में सिर्फ 14 फीसद का उपयोग, अप्रैल में 172 की मौत

सैकड़ों मरीज शरीर में आक्सीजन की कमी से जान गवां बैठे। जबकि मंडल की जांच कराई गई तो पता चला कि चार मई तक 30 फीसद कोविड बेड 17 फीसद आक्सीजन बेड और 53 फीसद वेंटिलेटर वाले बेड खाली पड़े हैं।

By Himanshu DwivediEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 12:35 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 12:35 PM (IST)
Meerut मंडल में 341 वेंटिलेटर खाली पड़े लेकिन शहर में सिर्फ 14 फीसद का उपयोग, अप्रैल में 172 की मौत
मेरठ में वेंटिलेटर वेड का उपयोग सिर्फ 14 फीसद।

मेरठ, जेएनएन। कोरोना महामारी के दौरान इलाज का प्रबंधन भी बिखर गया। प्रशासन ने बड़ी संख्या में निजी अस्पतालों को कोविड केंद्र बनाया, लेकिन मरीजों को उपचार नसीब नहीं हुआ। गंभीर मरीजों के लिए वेंटिलेटर अंतिम उम्मीद होती है, जिसे मेरठ में आजमाया ही नहीं गया, जबकि पश्चिमी उप्र में मेरठ इलाज का सबसे बड़ा केंद्र अर्थात मेडिकल हब माना जाता है। सैकड़ों मरीज शरीर में आक्सीजन की कमी से जान गवां बैठे। मंडल की जांच कराई गई तो पता चला कि चार मई तक 30 फीसद कोविड बेड, 17 फीसद आक्सीजन बेड और 53 फीसद वेंटिलेटर वाले बेड खाली पड़े हैं।

अपर निदेशक डा. राजकुमार ने बताया कि मंडल की समीक्षा बैठक में कोविड केंद्रों में बेडों की संख्या पर रिपोर्ट तलब की गई। कोविड केद्रों को साफ कहा गया है कि बेडों की उपलब्धता होने पर मरीजों को वापस लौटाना नियम विरुद्ध होगा। मेरठ के कोविड केंद्रों में 198 वेंटिलेटर हैं, जिसमें सिर्फ 29 पर मरीज रखे गए हैं। जबकि पड़ोसी जिलों ने वेंटिलेटरों का बेहतर प्रयोग किया है। इधर, दो सप्ताह से आक्सीजन संकट बढ़ने की वजह से कोविड केंद्रों में हाई फ्लो नेजल कैनुला, बाईपैप व वेंटिलेटरों का प्रयोग भी कम हो पा रहा है।

मेरठ मंडल में वेंटिलेटर और उनका उपयोग

जिला >> वेंटिलेटरों की संख्या >> इतने पर मरीज >> उपयोग प्रतिशत

मेरठ >> 198 >> 29 >> 14.65

गाजियाबाद >> 138 >> 48 >> 34.78

गौतमबुद्धनगर >> 206 >> 146 >> 70.87

बुलंदशहर >> 44 >> 40 >> 90.91

हापुड़ >> 52 >> 44 >> 84.62

बागपत >> 10 >> 00 >> 00

कुल >> 648 >> 307 >> 47.38

अप्रैल में रिकार्ड 172 मरीजों की मेडिकल में मौत

कोरोना की नई लहर पिछले साल जून और सितंबर से खतरनाक साबित हुई। गत सितंबर में 152 की मौत हुई थी, वहीं अप्रैल में 15-30 तारीख के बीच सिर्फ 15 दिनों में इससे ज्यादा मौतें हुईं। शासन ने मौतों की वजह पूछी है। ज्यादातर में काíडयक अरेस्ट और रेस्पिरेटरी फेल्योर मिला है। आसपास के जिलों के गंभीर मरीजों को मेरठ रेफर किया गया। एल-3 केंद्र मेडिकल कालेज में इलाज के दौरान मरीजों को बचाने का भरपूर प्रयास भी हुआ, लेकिन खतरनाक निमोनिया और हार्ट स्ट्रोक से बड़ी संख्या में मरीज जान गंवा बैठे।

प्राचार्य डा. ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि यह वायरस ज्यादा जानलेवा है। कई मरीजों में तीन दिन में ही निमोनिया बन जा रहा है। आक्सीजन की मात्र शरीर में तेजी से गिरने के साथ ही इन्फ्लामेट्री मार्कर तेजी से बढ़ते हैं। दिमाग की नसों में रक्त का थक्का पहुंचना भी मौत वजह है। कुल भर्ती 742 में से 400 डिस्चार्ज। मरने वाले 172 में मेरठ के 81, बागपत के 11, गाजियाबाद के 15, हापुड़ के 20, बुलंदशहर के 14, गौतमबुद्धनगर के 03 व बाकी अन्य जगहों से थे। 

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