कुंड सुंदरीकरण को 46.96 लाख का प्रस्ताव स्वीकृत, नहीं शुरू हुआ कार्य

जागरण संवाददाता घोसी (मऊ) नगर के मध्य में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे 2.1870 हेक्टेयर

By JagranEdited By: Publish:Wed, 08 Dec 2021 08:17 PM (IST) Updated:Wed, 08 Dec 2021 08:17 PM (IST)
कुंड सुंदरीकरण को 46.96 लाख का प्रस्ताव स्वीकृत, नहीं शुरू हुआ कार्य
कुंड सुंदरीकरण को 46.96 लाख का प्रस्ताव स्वीकृत, नहीं शुरू हुआ कार्य

जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : नगर के मध्य में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे 2.1870 हेक्टेयर क्षेत्रफल में निर्मित सीता कुंड मात्र पौराणिक या औषधीय महत्ता ही नहीं समेटे है वरन आकर्षक ²श्य प्रस्तुत करने के साथ ही जल संरक्षण की ²ष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। प्रदेश सरकार ने इस कुंड को जनवरी 2021 में सुंदरीकरण के लिए चयनित किया तो प्रदेश सरकार के कार्यकाल के चार वर्ष पूर्ण होने पर 20 मार्च 2021 को क्षेत्रीय विधायक विजय राजभर ने सार्वजनिक मंच से कुंड के जीर्णोद्धार के लिए 46.96 लाख की राशि स्वीकृत किए जाने की घोषणा की लेकिन कार्य प्रारंभ न हो सका। बीते दो दशक से अतिक्रमण से सिकुड़ रहे इस जलाशय का अभी तक न पूर्ण सीमांकन हुआ न जलकुंभी से मुक्ति मिली।

पश्चिम में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे तक विस्तृत और उत्तर में नवनिर्मित पुलिस उपाधीक्षक कार्यालय तक फैला सीताकुंड अब इन दिशाओं से काफी सिकुड़ गया है। जलाशय के किनारे देवालय की प्राचीन परंपरा के चलते निर्मित कई सती स्थान एवं काली मंदिर इसके क्षेत्रफल के प्रमाण हैं। चार दशक पूर्व तक सड़क से ही यह तमाम सती स्थान दिखते थे। अतिक्रमण के चलते कुंड ही नहीं वरन इन देव स्थानों का भी अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।

यह है कुंड की पौराणिक महत्ता

सीता कुंड के गर्भ में तमाम रहस्य है। यहां प्रचलित किवदंती एवं पौराणिक कथाओं के अनुसार कोढ़ रोग से पीड़ित चक्रवर्ती सम्राट राजा नहुष को ऋषियों ने 359 जलाशयों की खोदाई के बाद 360 वें जलाशय के जल से स्नान करने के बाद रोग मुक्त होने का उपाय बताया। पोखरे में दक्षिण तरफ खोदाई के दौरान अचानक गर्म जलधारा निकली। इस गर्म जल से स्नान करते ही राजा नहुष रोग मुक्त हो गए। आज भी इस पोखरी में उक्त स्थान पर जल गर्म रहता है। वर्तमान में भी पोखरी में लोग स्नान कर चर्म व्याधि से मुक्त होते हैं। हालांकि वैज्ञानिक उक्त स्थल पर जल में सल्फर की मात्रा अधिक होने का तर्क देते हैं। आश्चर्य यह कि उक्त स्थान पर पानी गर्म पर समूचे जलाशय का जल बेहद शीतल होता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार वनगमन के दौरान भगवान राम, अनुज लक्ष्मण एवं जगत जननी सीता ने यहां विश्राम किया था। देवी सीता इसी पोखरी में स्नान करती थीं। इसके चलते इसका नामकरण सीताकुंड हो गया। यहां की तमाम पोखरियों का नाम तत्कालीन महापुरुषों के नाम पर रखा जाना इसकी प्रमाणिकता को संदेह से परे रखता है। प्रस्ताव स्वीकृत है। पत्रावली वित्त मंत्रालय तक पहुंच चुकी है। मैं प्रयासरत हूं। इसी वित्तीय वर्ष में कार्य प्रारंभ होगा।

- विजय राजभर, क्षेत्रीय विधायक घोसी।

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